
साल 2015 में आई फिल्म ‘मसान’ ने भारतीय सिनेमा को एक नया अहसास दिया और कई नए कलाकारों को पहचान दिलाई। उन्हीं चेहरों में एक नाम था श्वेता त्रिपाठी का है। इस फिल्म से श्वेता ने डेब्यू किया। आज इस फिल्म को रिलीज हुए 10 साल पूरे हो चुके हैं। श्वेवता त्रिपाठी ने अमर उजाला डिजिटल से खास बातचीत में फिल्म ‘मसान’ से जुड़ी अपनी यादें और इमोशंस शेयर किए हैं।

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श्वेता त्रिपाठी
– फोटो : इंस्टाग्राम@battatawada
10 साल हो गए मसान को, ये सोचकर ही दिल भर आता है
श्वेता त्रिपाठी ने बातचीत की शुरुआत दिल से निकली एक सधी हुई बात से की। उन्होंने कहा, ‘10 साल हो गए मसान को, ये सोचकर ही दिल भर आता है। एक तो ये एक्सेप्ट करने में ही ऐसा लगता है कि 10 साल हो गए। मतलब 10 साल बहुत होते हैं क्योंकि 10 साल में एक बच्चा जो बड़ा होता है, वो स्कूल के फिफ्थ स्टैंडर्ड तक पहुंच जाता है। मेरे लिए ये मोमेंट वाकई में बहुत इमोशनल और स्पेशल है।’

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फिल्म ‘मसान’ में श्वेता त्रिपाठी और विक्की कौशल
– फोटो : एक्स (ट्विटर)
इस फिल्म ने मुझे इंडस्ट्री में पहचान दी
अपने डेब्यू और उस दौर को याद करते हुए श्वेता बोलीं, ‘जब भी मैं मसान के बारे में सोचती हूं, तो अपने आप होंठों मुस्कान आ जाती है। इस फिल्म ने मुझे इंडस्ट्री में जो पहचान दी, वो मेरे लिए बहुत खास है। जब स्क्रीन पर ‘इंट्रोड्यूसिंग श्वेता त्रिपाठी’ आता है और लोग आपका काम देखते हैं और समझते हैं, तो लगता है कि जो पैशन है, वो सही डायरेक्शन में जा रहा है।’

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श्वेता त्रिपाठी
– फोटो : इंस्टाग्राम@battatawada
शालू बनना इतना आसान था, बस चूड़ी, बिंदी और दुपट्टा पहनना था
फिल्म का पॉपुलर गाना ‘तू किसी रेल सी गुजरती है’ को लेकर श्वेता ने एक खास याद शेयर की। श्वेता बताती हैं, ‘हमारे शूट के पहले दो दिन सिर्फ इस गाने पर ही फोकस थे। मैं जैसे ही शालू के कुर्ता-पजामा, दुपट्टा, चूड़ी, बिंदी पहनती थी, वैसे ही शालू बन जाती थी। डायलॉग बोले बिना भी बहुत कुछ कहा गया उन सीन में। शूट बहुत सुंदर तरीके से हुआ था और लोकेशन्स रियल थे। लोग हमें पहचानते नहीं थे, तो वो सब कुछ और भी असली लगता था।’

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श्वेता त्रिपाठी
– फोटो : पीटीआई
पहले शायरी समझ नहीं आती थी, शालू के किरदार ने वो दुनिया खोल दी
श्वेता ने बताया कि हर किरदार कुछ न कुछ पीछे छोड़ जाता है। शालू के किरदार के जरिए उनकी जिंदगी में कविता और शायरी की शुरुआत हुई। ‘शालू को पोएट्री पसंद थी और उसी की वजह से मेरी जिंदगी में अकबर इलाहाबादी, बशीर बद्र जैसे नाम आए। पहले जब मुझसे पूछा जाता था कि शायरी पसंद है, तो मैं कहती थी हां, पर नहीं। तब समझ नहीं थी। लेकिन शालू ने मेरी दुनिया में एक नया दरवाजा खोला, अब पोएट्री मेरी जिंदगी का हिस्सा है और इसका पूरा क्रेडिट शालू को जाता है।’