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पीएम नरेंद्र मोदी ग़ज़ा शांति सम्मेलन में शिरकत करने शर्म अल-शेख़ क्यों नहीं गए?



इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, पीएम मोदी को शर्म अल-शेख़ सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण मिला था (फ़ाइल फ़ोटो)….मेंमिस्र का शर्म अल-शेख़ शहर सोमवार 13 अक्तूबर को एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है, जिसमें क़रीब बीस देशों के नेता और प्रतिनिधि शामिल होंगे.इस सम्मेलन का मक़सद ग़ज़ा पट्टी में युद्ध को समाप्त करने के लिए एक व्यापक समझौते को अंतिम रूप देना है.इसमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल हो रहे हैं. ट्रंप सोमवार दोपहर इसराइल की यात्रा के बाद मिस्र पहुँचने वाले हैं.इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी शामिल होने का न्योता दिया गया था, हालांकि वो इस सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हैं.बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंइस सम्मेलन के लिए भारत की तरफ से विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह मिस्र की राजधानी काहिरा पहुंचे हैं.उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष प्रतिनिधि के तौर पर शर्म अल- शेख़ में ग़ज़ा शांति सम्मेलन में शामिल होने के लिए ऐतिहासिक शहर काहिरा पहुंचा हूं.”इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, शर्म अल-शेख़ शहर पर्यटकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है और यहां कई अंतरराष्ट्रीय बैठकें हुई हैंशर्म अल-शेख़ एक प्रसिद्ध रिसॉर्ट शहर है जिसे अंतरराष्ट्रीय बैठकों के लिए जाना जाता है. इसमें अरब लीग की बैठकें, 2022 का विश्व जलवायु सम्मेलन और अरब-इसराइल वार्ताओं के कई दौर शामिल हैं.यह छुट्टियाँ मनाने के लिए यूरोपीय और मिस्र के पर्यटकों में काफ़ी लोकप्रिय है. इसे पर्यटकों की सैरगाह भी कहा जाता है.शर्म अल-शेख़ सम्मेलन मिस्र और अमेरिका के संयुक्त निमंत्रण पर आयोजित किया जा रहा है.इसका मकसद ग़ज़ा युद्ध को रोकने के लिए अंतिम समझौते तक पहुँचना, शासन और सुरक्षा का ढांचा तय करना, और युद्ध समाप्त होने के बाद ग़ज़ा में पुनर्निर्माण प्रक्रिया शुरू करना है.कौन से नेता हो रहे हैं शामिलइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री स्टार्मर शर्म अल-शेख़ पहुंचे हैंपिछले कुछ घंटों में दुनियाभर के कई नेताओं ने शर्म अल-शेख़ सम्मेलन में अपनी उपस्थिति की पुष्टि की है.इनमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन, जर्मनी के चांसलर फ़्रिड्रिख़ मर्त्ज़, इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी और कई अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हैं.दूसरी ओर, सम्मेलन में कई नेताओं की ग़ैरमौजूदगी भी रहेगी, इनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं.पीएम मोदी की दूरी की क्या हो सकती है वजहइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, जानकार मानते हैं कि भारत-अमेरिका संबंध मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं, ऐसे में पीएम मोदी का दूरी बनाना कूटनीतिक लिहाज से उचित कदम है (फ़ाइल फ़ोटो)मिडिल ईस्ट इनसाइट्स प्लेटफ़ॉर्म की संस्थापक डॉक्टर शुभदा चौधरी कहती हैं कि पीएम मोदी पहले से कई अहम कार्यक्रमों में व्यस्त हैं.उनका कहना है, “उन्हें मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फ़तह अल-सीसी और राष्ट्रपति ट्रंप ने साझा आमंत्रण दिया था, लेकिन यह काफ़ी देर से 11 अक्तूबर को दिया गया था. किसी भी राजनयिक मामले में अगर हेड ऑफ़ स्टेट को बुलाया जाता है तो समय दिया जाता है. इसके लिए 48 घंटे का समय काफ़ी कम है.”शुभदा चौधरी कहती हैं, “शर्म अल-शेख़ के मामले में कुछ बातें बहुत अजीब हैं. इसमें इसराइल और हमास दोनों ही शामिल नहीं हो रहे हैं. इसराइल ने सुरक्षा वजहों का हवाला दिया है जबकि हमास ने इस समझौते की कुछ शर्तों के कारण इसका बायकॉट किया है.”ज़ाहिर तौर पर शर्म अल-शेख़ में जिन दो पक्षों के बीच समझौते पर बातचीत होनी है, वो ही शामिल नहीं हैं और यह एक बड़ा सवाल है.जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी पीएम मोदी के शर्म अल-शेख़ सम्मेलन में शामिल नहीं होने के पीछे समय को एक वजह मानती हैं.वो कहती हैं, “पीएम मोदी को अंतिम समय में आमंत्रण दिया गया, यह कूटनीति और प्रोटोकॉल के लिहाज से सही नहीं है.”क्या टैरिफ़ है वजहइस बीच भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ़ को लेकर भी बातचीत जारी है और दोनों देशों के बीच संबंधों में इसे एक बड़े विवाद का मुद्दा माना जाता है.भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच काफ़ी अच्छे संबंध माने जाते थे. दोनों नेता एक-दूसरे को ‘अपना मित्र’ कहकर भी संबोधित करते रहे हैं.लेकिन ट्रंप के दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद इन संबंधों के ‘अच्छे होने पर’ भी सवाल खड़े किए जाते हैं.ख़ासकर ट्रंप के भारत पर टैरिफ़ लगाने के बाद माना जाता है कि मोदी और ट्रंप के बीच संबंध पहले जैसे नहीं रहे.वहीं पहलगाम हमले के बाद भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और पाकिस्तान के साथ शुरू हुए संघर्ष को ख़त्म कराने को लेकर ट्रंप ने कई बार दावा किया.हालांकि भारत ने कभी भी ट्रंप के दावों की पुष्टि नहीं की. ट्रंप के एकतरफा दावे को भी पीएम मोदी से उनके बीच बढ़ती दूरी के तौर पर देखा गया.वहीं पिछले दिनों भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ़ के मुद्दे पर बातचीत के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक एच-1बी वीज़ा की फ़ीस कई गुना बढ़ाकर एक लाख डॉलर कर दी.ऐसे में क्या पीएम मोदी नहीं चाहते थे कि वो इस मुद्दे का समाधान होने से पहले ट्रंप से मिलें?रेशमी काज़ी कहती हैं, “इस सम्मेलन में ट्रंप और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी मौजूद रहेंगे. पिछले कुछ समय में हमने देखा है कि इन दोनों देशों से हमारे रिश्ते काफ़ी मुश्किल दौर से गुज़रे हैं.””ऐसे में यह उचित समय नहीं है कि पीएम मोदी इन नेताओं से मिलें. कभी-कभी दो कदम पीछे खींचना भी देश के हित में होता है और मेरा मानना है कि यह काफ़ी चतुराई भरा कदम है.”पाकिस्तान की मौजूदगीइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी शर्म अल-शेख़ सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं (फ़ाइल फ़ोटो)शुभदा चौधरी कहती हैं कि भारत ने अपने प्रतिनिधि को शर्म अल-शेख़ भेजकर इस सम्मेलन और समझौते का समर्थन किया है, लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे किसी भी सम्मेलन में जहां पाकिस्तान मौजूद हो वहां आतंकवाद की निंदा की जाएगी, तभी भारत शामिल होगा.उनके मुताबिक़, “कूटनीतिक स्तर पर दो देशों के प्रमुख एक-दूसरे से मिलने के कतराते नहीं हैं. सारी चीज़ें कूटनीति से हल होती हैं. क्या आने वाले समय में भी भारत और अमेरिका के संबंध ऐसे ही रहेंगे? अगर आप इतिहास को देखेंगे तो इंदिरा गांधी के समय में भी अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन से काफ़ी विवाद था लेकिन वो समय से साथ ठीक हुआ.”हालांकि यह भी माना जाता है कि भारत ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर विदेश राज्य मंत्री को भेजकर यह संदेश भी दे दिया है कि वो मध्य-पूर्व में शांति और सुरक्षा को लेकर गंभीर है और इसका समर्थन करता है.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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