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जयशंकर का यूएन में भाषण: पाकिस्तान और ट्रेड वॉर का नाम लिए बिना बहुत कुछ कहा



इमेज स्रोत, X/@DrSJaishankarइमेज कैप्शन, भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संबोधन दिया है16 मिनट पहलेसंयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की तरफ़ से विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संबोधन दिया है. इस दौरान उन्होंने अपने भाषण में पहलगाम हमले और आतंकवाद का ज़िक्र किया. विदेश मंत्री ने पूरे भाषण में एक बार भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, लेकिन अपने बयानों से लगातार उसकी तरफ़ इशारा करते रहे.इससे पहले शुक्रवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने महासभा में हिस्सा लेते हुए एक से अधिक बार भारत का नाम लिया था और यहां तक कहा कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है और अब वह शांति चाहता है. उनके इस दावे के जवाब में भारत ने ‘राइट टू रिप्लाई’ का इस्तेमाल करते हुए कहा, “अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है.”जब भारत की तरफ़ से एस. जयशंकर ने मंच संभाला तो उन्होंने कहा, “हमारा एक पड़ोसी लंबे समय से वैश्विक आतंकवाद का केंद्र रहा है.”पाकिस्तान का नाम लिए बग़ैर उन्होंने कहा, “दशकों से बड़े अंतरराष्ट्रीय आतंकी हमलों का पता उसी देश तक जाता है और संयुक्त राष्ट्र की आतंकियों की सूची ऐसे ही नागरिकों से भरी हुई है.”जयशंकर ने अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र करते हुए कहा कि भारत ने अपने नागरिकों की रक्षा का अधिकार इस्तेमाल किया और दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया.अपने भाषण में जयशंकर ने वैश्विक सहयोग, संयुक्त राष्ट्र सुधार, ग्लोबल साउथ की स्थिति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में हुए बदलावों पर भी विस्तार से विचार रखे.वहीं, शहबाज़ शरीफ़ ने अपने संबोधन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तारीफ़ में कई वाक्य बोले, जबकि जयशंकर ने अमेरिका का नाम तक नहीं लिया, लेकिन ट्रेड नीतियों पर आलोचना ज़रूर की.न्यूयॉर्क में हो रहे यूएन महासभा के 80वें सत्र में 23 सितंबर से लेकर 29 सितंबर तक जनरल डिबेट हो रही है.इस बार भारत की तरफ़ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएन महासभा में शिरकत नहीं कर रहे हैं. विदेश मंत्री ने क्या-क्या कहा?जयशंकर ने अपने संबोधन में पाकिस्तान का नाम लिए बिना लगातार उस पर इशारा किया.उन्होंने कहा, “अपने अधिकार जताते हुए हमें ख़तरों का सामना भी दृढ़ता से करना होगा. आतंकवाद से लड़ना हमारी ख़ास प्राथमिकता है क्योंकि यह कट्टरता, हिंसा, असहिष्णुता और डर का मेल है. भारत ने आज़ादी के समय से ही इस चुनौती का सामना किया है, क्योंकि हमारा एक पड़ोसी लंबे समय से वैश्विक आतंकवाद का केंद्र है.”उन्होंने आगे कहा, “पिछले कई दशकों से बड़े अंतरराष्ट्रीय आतंकी हमलों का पता उसी देश तक जाता है. संयुक्त राष्ट्र की आतंकियों की सूची ऐसे ही नागरिकों से भरी हुई है. हाल ही में अप्रैल में पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों की हत्या इसका ताज़ा उदाहरण है. भारत ने अपने लोगों की रक्षा का अधिकार इस्तेमाल किया और इसके आयोजकों और अपराधियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया.”जयशंकर ने चेतावनी दी कि “क्योंकि आतंकवाद साझा ख़तरा है, इसलिए गहरी अंतरराष्ट्रीय साझेदारी ज़रूरी है.”उन्होंने कहा, ”जब देश खुलेआम आतंकवाद को राज्य नीति घोषित करते हैं, जब आतंक के अड्डे औद्योगिक स्तर पर चलते हैं, जब आतंकियों की सार्वजनिक रूप से सराहना होती है, तो ऐसे कृत्यों की बिना किसी शर्त निंदा की जानी चाहिए.”उन्होंने कहा, ”आतंकवाद को मिलने वाला पैसा रोकना ज़रूरी है. बड़े आतंकियों पर कार्रवाई के साथ-साथ पूरे आतंकवाद के ढांचे पर लगातार दबाव बनाए रखना होगा. जो देश आतंक को बढ़ावा देने वाले देशों का समर्थन करते हैं, उन्हें आखिरकार इसका नुकसान खुद ही झेलना पड़ेगा.”संयुक्त राष्ट्र सुधार पर भारत का रुख़जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की हालत पर सवाल उठाते हुए कहा, “एक निष्पक्ष रिपोर्ट कार्ड यह दिखाएगा कि संयुक्त राष्ट्र संकट में है. जब शांति, संघर्षों से ख़तरे में पड़ती है, जब विकास संसाधनों की कमी से रुकता है, जब आतंकवाद से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, तब संयुक्त राष्ट्र ठप हो जाता है.”उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र की साख गिरने का कारण सुधार का विरोध रहा है. ज़्यादातर सदस्य बदलाव चाहते हैं, लेकिन प्रक्रिया को ही नतीजे में बाधा बना दिया गया है. हमें इस सोच से आगे बढ़ना होगा और सुधार को गंभीरता से लेना होगा. अफ्रीका के साथ किया गया ऐतिहासिक अन्याय सुधारा जाना चाहिए. परिषद की स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों में सदस्यता बढ़नी चाहिए.”ट्रेड और टैरिफ़ पर क्या बोले?ऐसे वक्त में जब अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने भारत पर टैरिफ़ 50% तक बढ़ा दिया है और ट्रेड को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है, संयुक्त राष्ट्र महासभा में एस. जयशंकर ने अमेरिका या डोनाल्ड ट्रंप का नाम लिए बिना इसका ज़िक्र किया.उन्होंने कहा, “जब बात व्यापार की आई तो गैर-बाज़ारी तरीकों से नियमों और व्यवस्थाओं का फ़ायदा उठाया गया. इसकी वजह से दुनिया कुछ देशों पर निर्भर हो गई. ऊपर से अब टैरिफ़ में उतार-चढ़ाव और बाज़ार तक पहुंच को लेकर अनिश्चितता है. नतीजतन, डि-रिस्किंग (यानी जोख़िम कम करने की रणनीति) ज़रूरी हो गया है.”पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने क्या कहा था?इमेज स्रोत, David Dee Delgado/Bloomberg via Getty Imagesइमेज कैप्शन, शहबाज़ शरीफ़ ने अपने संबोधन में भारत-पाकिस्तान संघर्ष की बात की थीइससे पहले शुक्रवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने अपने संबोधन में आतंकवाद, पहलगाम हमले और भारत पाकिस्तान संघर्ष की बात की थी.अपने संबोधन में उन्होंने कहा था, “पाकिस्तान ने अपनी पूर्वी सीमा पर दुश्मन के उकसावे का जवाब दिया और पाकिस्तान ने भारत को पहलगाम हमले की निष्पक्ष जांच की पेशकश की थी.”उन्होंने आगे कहा था, “पाकिस्तान अपने संस्थापक क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना के दृष्टिकोण के अनुरूप हर मुद्दे को बातचीत और वार्ता के माध्यम से हल करना चाहता है.”पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत पर पहलगाम की घटना का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और कहा “पाकिस्तान बाहरी आक्रमण से पूरी तरह अपनी रक्षा करेगा.”उन्होंने कहा था, “हमने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है, अब हम शांति चाहते हैं और पाकिस्तान सभी लंबित मुद्दों पर भारत के साथ व्यापक और कारगर वार्ता करने के लिए तैयार है.”शहबाज़ शरीफ़ ने कहा था, “पाकिस्तान की विदेश नीति आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित है. हम विवादों का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं.”शहबाज़ ने संयुक्त राष्ट्र में शुक्रवार को दावा किया कि पाकिस्तान ने “भारत के 7 जेट विमानों को मार गिराया था.”इमेज कैप्शन, पाकिस्तान के पीएम ने यूएन में भारत के साथ हुए सैन्य संघर्ष पर बात कीशहबाज़ शरीफ़ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पुरस्कार देने की वकालत की और कहा कि अगर उन्होंने पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव में दख़ल नहीं दिया होता तो युद्ध के परिणाम विनाशकारी हो सकते थे.खुद ट्रंप कई बार ये दावा कर चुके हैं कि उन्होंने पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव रोका था. हालांकि भारत इस बात को नकारता रहा है कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष रोकने में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका थी.इसी साल जुलाई में संसद में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा इस मामले में तीसरे देश के हस्तक्षेप पर कहा था, “दुनिया के किसी भी नेता ने भारत को ऑपरेशन रोकने के लिए नहीं कहा.” वहीं हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसी से जुड़े सवाल के जवाब में कहा था कि कई सालों से एक राष्ट्रीय सहमति रही है कि पाकिस्तान के साथ हमारे सभी मामले आपसी यानी द्विपक्षीय हैं.भारत का दावा है कि पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान में स्थित नौ आतंकी शिविर नष्ट किए.पाकिस्तानी पीएम के दावों का भारत ने क्या दिया जवाब?संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने ‘राइट टू रिप्लाई’ का इस्तेमाल करते हुए शहबाज़ शरीफ़ के दावों का जवाब दिया.उन्होंने कहा, “इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है.”पहलगाम हमले का ज़िक्र करते हुए गहलोत ने कहा, “यह वही पाकिस्तान है जिसने 25 अप्रैल, 2025 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में, जम्मू और कश्मीर में पर्यटकों पर हुए बर्बर जनसंहार के लिए रेज़िस्टेंस फ़्रंट (चरमपंथी संगठन) को जवाबदेही से बचाया.”भारतीय राजनयिक ने कहा, “याद कीजिए, यही पाकिस्तान था जिसने ओसामा बिन लादेन को एक दशक तक छिपाए रखा, जबकि वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध में साझेदार होने का दिखावा कर रहा था. सच्चाई यह है कि पहले की तरह ही, भारत में निर्दोष नागरिकों पर आतंकवादी हमले के लिए पाकिस्तान ही ज़िम्मेदार है.”पेटल गहलोत ने कहा, ”इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि एक बार फिर पाकिस्तान का ढोंग सामने आ गया है. इस बार ये प्रधानमंत्री के स्तर पर दिखा है. एक तस्वीर हज़ार शब्दों को बयां करती है और इस बार हमने बहावलपुर और मुरीदके के आतंकवादी परिसरों में ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए आतंकवादियों की कई तस्वीरें देखीं.”पेटल गहलोत ने कहा, ”पाकिस्तान की सेना ने इसलिए ये अनुरोध किया क्योंकि भारतीय वायुसेना ने कई पाकिस्तानी एयरबेस पर हमला कर उसे नुक़सान पहुंचाया था. इसकी तस्वीरें सार्वजनिक तौर पर मौजूद हैं. अगर तबाह रनवे और जले हुए हैंगर जीत की तरह दिखते हैं, जैसा कि प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं तो पाकिस्तान इसका आनंद ले.”उन्होंने पाकिस्तान के भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव रोकने में अमेरिका की भूमिका को लेकर कहा कि काफी पहले ही भारत और पाकिस्तान में इस बात पर सहमति बनी थी कि दोनों देशों के बीच कोई भी मामला द्विपक्षीय होगा, इसमें तीसरे पक्ष की कोई जगह नहीं है.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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