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‘रूस को तेल के लिए पैसे देना ठीक नहीं’, अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा



इमेज कैप्शन, अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मार्गरेट मैकलियोड ने बीबीसी हिन्दी से कहा कि भारत और अमेरिका के पास आपसी सहयोग के अवसर बहुत ज्यादा हैं….मेंभारत और अमेरिका लगातार आपसी मतभेदों को ख़त्म कर क्या जल्द ही एक ट्रेड डील पर सहमत हो सकते हैं? भारत और अमेरिका के रिश्तों में चल रहे उतार चढ़ाव के पीछे क्या अमेरिका का मक़सद भारत के रक्षा बाज़ार पर कब्ज़ा करना है?अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता मार्गरेट मैकलियोड से बीबीसी हिन्दी के संपादक नितिन श्रीवास्तव ने कई अहम मुद्दों पर चर्चा की है और अमेरिकी विदेश नीति से जुड़े कई सवाल किए, जिसका सीधा संबंध भारत से है.ट्रंप कई बार कह चुके हैं कि भारत रूस से तेल ख़रीद रहा है. इससे यूक्रेन के ख़िलाफ़ जंग में रूस को मदद मिल रही है. ट्रंप का आरोप है कि रूस इस पैसे का इस्तेमाल इस जंग में कर रहा है.दूसरी तरफ भारत का कहना है कि वो अपने हितों को ध्यान में रखते हुए रूस से तेल ख़रीद रहा है और दुनिया के कई अन्य देश भी ऐसा कर रहे हैं. दोनों देशों के बीच रूस से तेल की यह ख़रीदारी एक बड़ा मुद्दा है.बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंक्या भारत और अमेरिका के रिश्ते वाकई बिगड़ चुके हैं?इमेज कैप्शन, मार्गरेट मैकलियोड के मुताबिक़ भारत और अमेरिका कई मामलों में साझेदार हैं.इससे पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच संबंधों को काफ़ी बेहतर माना जाता था. लेकिन दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने भारत पर भारी टैरिफ़ लगाकर उसे एक बड़ा झटका दिया.हालांकि इसी महीने पीएम मोदी के जन्मदिन पर राष्ट्रपति ट्रंप ने उनको बधाई दी और तारीफ़ की तो लगा कि दोनों नेताओं के रिश्ते में एक बार फिर से गर्मजोशी आ रही है. लेकिन फिर अमेरिका ने एच-1बी वीज़ा के आवेदन पर भारी फीस लगा दी और कई भारतीयों पर इसका असर पड़ने वाला है.मार्गरेट मैकलियोड के मुताबिक़ इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए कि अमेरिका और भारत के संबंध काफ़ी अच्छी स्थिति में हैं और दोनों बड़े पैमाने पर एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं.उनका कहना है कि कई बार आपसी संबंधों में कई मुद्दों पर एक राय नहीं होती है लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई है कि आपसी बातचीत के ज़रिए इन मुद्दों का समाधान निकाल लिया जाएगा.इस मक़सद से दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल आपस में मुलाक़ात और बातचीत भी कर रहे हैं.पिछले कुछ महीनों में अमेरिका ने पहले भारत पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया फिर उसने भारत के रूस से तेल ख़रीदने का हवाला देकर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ और बढ़ा दिया.मार्गरेट मैकलियोड से पूछा गया कि रूस से तेल ख़रीदना भारत के अपने आर्थिक हितों के मुताबिक़ रहा है. दुनिया के कई अन्य देश भी रूस से तेल ख़रीद रहे हैं तो क्या ट्रंप ने भारत के ख़िलाफ़ जो फ़ैसला लिया, वो जल्दबाज़ी में लिया गया और इसपर गहराई से विचार नहीं किया गया?इस सवाल पर उन्होंने कहा, “कई साल से हम देख रहे हैं कि रूस को जो पैसे मिल रहे हैं उसका इस्तेमाल वह हथियारों के लिए करता है. वह इसका इस्तेमाल यूक्रेन पर हमला करने के लिए करता है. राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि वो रूस-यूक्रेन जंग में होने वाली मौतों को रोकना चाहते हैं. वो हिंसा रोकना चाहते हैं और जल्द से जल्द रूस की वॉर मशीन को रोकना चाहते हैं.”बीबीसी हिन्दी ने उनसे पूछा कि रूस से अमेरिका के सहयोगी और नेटो के सदस्य देश भी तेल ख़रीद रहे हैं. और यह एक अजीब स्थिति है. ऐसा लगता है कि ट्रंप ने तेल ख़रीद के मुद्दे को उठाकर अमेरिका की विदेश नीति को मुश्किल में डाल दिया है?इस पर मार्गरेट ने कहा कि ट्रंप ने इस मुद्दे पर अपने सचिवालय में अपने यूरोपीय साझेदारों के साथ मंगलवार को बात भी की है. वो कहती हैं, ” यह तार्किक नहीं है कि आप रूस को तेल के लिए पैसे दे रहे हैं जो आप ही के सुरक्षा हितों के ख़िलाफ़ इसका इस्तेमाल कर रहा है.”उन्होंने कहा कि अमेरिकी सरकार ने यूएन के शिखर सम्मेलन में शांति, संप्रभुता और स्वतंत्रता के मुद्दों को ख़ासी अहमियत दी, जो संयुक्त राष्ट्र का बुनियादी सिद्धांत है.ट्रंप शांति चाहते हैं तो इसराइल के मुद्दे पर अलग रुख़ क्यों?इमेज स्रोत, @anwaribrahimइमेज कैप्शन, अरब-इस्लामी देशों की आपातकालीन शिखर बैठक में क़तर में इसराइल के हमलों की आलोचना की गई थी. (फ़ाइल फ़ोटो)एक तरफ अमेरिका शांति की बात कर रहा है. ट्रंप कई बार कह चुके हैं कि वो रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाना चाहते हैं. उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच में पहलगाम हमले के बाद शुरू हुए संघर्ष को रूकवाने का दावा भी किया.हालांकि भारत ने कभी भी ट्रंप के इस दावे की पुष्टि नहीं की है.दूसरी तरफ, फ़लस्तीन का भी मुद्दा है जहां लगातार जंग जारी है और इसराइली हमलों में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है.इन हमलों की वजह से अमेरिका का बड़ा सहयोगी इसराइल ख़ुद को काफ़ी अलग-थलग पा रहा है. हाल ही में क़तर में इसराइली हमले के बाद दुनियाभर के कई देशों ने उसकी आलोचना भी की.एक तरफ राष्ट्रपति ट्रंप कुछ बयान देते हैं और अगले दिन उनके व्यापार सलाहकार पीटर नवारो कुछ बयान देते हैं. क्या यह सब अमेरिकी विदेश नीति पर सवाल नहीं खड़े करता है?इस सवाल पर मार्गरेट ने कहा, “हम समझते हैं कि क़तर एक संप्रभु देश है और इसराइल का एकतरफा हमला उनकी संप्रभुता का उल्लंघन है. यह इसराइल और अमेरिका के राष्ट्रीय हित के मुताबिक़ नहीं है.”वो कहती हैं, “हम यह भी मानते हैं कि हमास को ख़त्म करना एक अच्छा मक़सद है क्योंकि जब तक हमास मौजूद है मिडिल ईस्ट या पश्चिम एशिया में शांति नहीं हो सकती.”एच-1बी वीज़ा विवाद पर क्या कहाइमेज स्रोत, AFP via Getty Imagesइमेज कैप्शन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि एच-1बी वीज़ा फ़ीस बढ़ाने से उनके देश के लोगों को ज़्यादा नौकरियां मिलेंगीभारत की बात करें तो एच-1बी वीज़ा को लेकर एक बार फिर से काफ़ी विवाद हो रहा है. एच1बी वीज़ा पाने वालों में सबसे बड़ी तादाद भारतीयों की होती है.बीबीसी हिन्दी ने पूछा कि भारतीयों का अमेरिका की सिलिकॉन वैली में ख़ासा योगदान भी रहा है जिसे अमेरिका तकनीकी जगत और कारोबारी क्षेत्र ने स्वीकार भी किया है. फिर इस तरह से एच-1बी वीज़ा की शर्तें कठोर करने का क्या मक़सद हो सकता है?इस मामले में मार्गरेट मैकलियोड ट्रंप की उन्हीं बातों पर जोर देती हैं जो ‘अमेरिका फर्स्ट’ पर आधारित हैं. यानी पहले अमेरिकी लोगों को नौकरी का अवसर मिले. इसके लिए ऐसी नीति अपनाई गई है.उनके मुताबिक़ अमेरिकी कर्मचारियों को बेहतर ट्रेनिंग और रोज़गार के अवसर मिलें इसके लिए एच-1बी वीज़ा की शर्तों को बदला गया है.वो दावा करती हैं कि केवल नौकरी ही नहीं कुछ कंपनियां एच-1बी वीज़ा का इस्तेमाल ट्रेनिंग देने के मक़सद से भी लोगों को अमेरिका बुलाने के लिए करती थीं, इसलिए इसकी फ़ीस बढ़ाई गई है, और यह अमेरिका के राष्ट्रीय हितों के मुताबिक़ है.इस लिहाज से देखें तो रूस से तेल ख़रीदना भी भारत की ‘इंडिया फ़र्स्ट’ नीति का हिस्सा है. क्या भारत की विदेश नीति में अमेरिका का दखल एक तरह से अमेरिकी वर्चस्व दिखाना नहीं है?मार्गरेट मैकलियोड इस सवाल पर कहती हैं, “यह एकदम सही है कि भारत भी सबसे पहले अपना राष्ट्रीय हित सोचे. लेकिन यह भी सही बात है कि हमारा कई चीजों में साझा फ़ायदा बहुत है और दोनों के पास आपसी सहयोग के अवसर बहुत ज्यादा हैं. हम ऐसा भविष्य देख रहे हैं जिसमें अमेरिका और भारत आपसी साझा हितों पर सहयोग करते हैं.”क्या नज़र भारत के डिफ़ेंस मार्केट पर है?इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, भारत अपने ज्यादातर हथियार रूस से ख़रीदता है. माना जाता है कि भारत के डिफ़ेंस मार्केट पर अमेरिका की नज़र है.भारत और अमेरिका दोनों ही दुनिया के बड़े लोकतंत्र हैं और भारत परंपरागत रूप से अपनी रक्षा ज़रूरतों के लिए रूस पर निर्भर करता है. लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि अमेरिका भारत के बाज़ार में अपने डिफ़ेंस प्रोडक्ट्स बेचना चाहता है.मार्गरेट मैकलियोड से इसी मुद्दे पर पूछा गया कि क्या यह ख़बर सही है कि अमेरिका के अरबों रुपये का हथियार उद्योग भारत के बाज़ार पर कब्ज़ा करना चाहता है या कम से कम अपनी एक जगह बनाना चाहता है?उन्होंने कहा, ” अमेरिका का रक्षा उद्योग दुनिया भर में बेहतरीन है. भारत अमेरिका के रक्षा उद्योग से भी काफ़ी फ़ायदा उठा सकता है. भारत उसके अच्छे इस्तेमाल के लिए भरोसा रख सकता है. हमने भारत के साथ काफी सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं.”क्या यह माना जा सकता है कि भारत और अमेरिका के बीच जो बातचीत चल रही है उसमें 25 फ़ीसदी टैरिफ़ पर समझौता हो सकता है और 25 फ़ीसदी हटाया जा सकता है?इस सवाल पर मार्गरेट मैकलियोड ने कहा, ” जब तक दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है मैं उसके बारे में विस्तार में बात नहीं करूंगी लेकिन अमेरिका की तरफ से लोग इसे काफ़ी सकारात्मक तौर से देख रहे हैं और हमें उम्मीद है कि हम एक ऐसे समझौते तक पहुंच पाएंगे जो दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद होगा.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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