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सरकार की मंशा, जमीनी सच्चाई और एक आम नागरिक की सोच
परिचय
हम लंबे समय से सुनते आ रहे हैं कि भारत सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देना चाहती है। इसके पीछे एक नहीं, कई ठोस कारण हैं — प्रदूषण कम करना, तेल आयात पर निर्भरता घटाना और हरित ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ना। सरकार इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वालों को छूट भी देती है, ताकि लोग पेट्रोल-डीजल की गाड़ियों की बजाय EV अपनाएं।
लेकिन इस बदलाव की राह क्या इतनी आसान है?
सरकार का प्रयास: सोच दूरदर्शी, आधारभूत ढांचा अधूरा
भारत सरकार की सोच स्पष्ट है। वह चाहती है कि देशवासियों की पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम हो और लोग इलेक्ट्रिक ऊर्जा की ओर बढ़ें। इसी सोच के तहत सरकार ने इलेक्ट्रिक ट्रेनें भी चलाई हैं और वाहनों पर सब्सिडी देना शुरू किया है।
लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से पहले एक महत्वपूर्ण सवाल है — क्या देश इसके लिए तैयार है? क्या हर कस्बे, तहसील और शहर में चार्जिंग स्टेशन की सुविधा है?

इलेक्ट्रिक वाहन: फायदे तो हैं, लेकिन चुनौतियाँ बड़ी हैं
आप एक तरफ देखिए — इलेक्ट्रिक वाहनों का फ्यूल खर्च पेट्रोल/डीजल गाड़ियों से बहुत कम होता है। लेकिन दूसरी तरफ, इनकी खरीद कीमत अब भी ज़्यादा है।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अभी भी भारत के अधिकांश शहरों और गांवों में EV चार्जर उपलब्ध नहीं हैं। और जिन जगहों पर हैं भी, वहां चार्जिंग समय और सुविधाएं बड़ी समस्या हैं।
एक अनुभव जो बहुत कुछ कहता है…
मैंने खुद यह अनुभव किया है। जब हम अहमदाबाद से नागपुर के लिए निकले थे, हमें रास्ते में शानदार हाईवे तो मिले, लेकिन जैसे ही हम महाराष्ट्र की सीमा में पहुंचे, हमें 6-7 घंटे का सफर और तय करना था — और इस पूरे सफर में एक भी सीएनजी पंप नहीं मिला।
तो सोचिए — जब सीएनजी जैसी पुरानी टेक्नोलॉजी के लिए पंप नहीं हैं, तो EV के चार्जिंग स्टेशन की उम्मीद कैसे करें?
पेट्रोल बनाम EV: समय और संसाधन का सवाल
एक साधारण पेट्रोल पंप पर 5 मिनट में गाड़ी फुल टैंक हो जाती है। लेकिन वहीं अगर आप एक इलेक्ट्रिक गाड़ी को चार्ज करने जाते हैं, तो उसमें कम से कम 1 से 4 घंटे तक का समय लग सकता है।
अब सोचिए — एक पेट्रोल पंप पर अगर 10 गाड़ियाँ चार्जिंग के लिए खड़ी हों, तो वहां जगह, शेड, शौचालय, खाने-पीने की व्यवस्था, वेटिंग ज़ोन — सबकी ज़रूरत होगी। क्या हमारी वर्तमान व्यवस्था इसके लिए तैयार है?
गांव और तहसीलें: EV अभी सपना हैं
अब बात करते हैं गांवों की — जहां 60% से अधिक भारत की आबादी रहती है। वहां अभी तक 24 घंटे बिजली आनी भी सुनिश्चित नहीं हो पाई है। अगर वहां EV खरीदी भी गई, तो लोग चार्जिंग कहां और कैसे करेंगे?
जब तक सरकार हर गांव और कस्बे में चार्जिंग स्टेशन नहीं बनवाती, EV अपनाने की अपील सिर्फ शहरों तक ही सीमित रह जाएगी।
सरकार की रणनीति: पहले बुनियादी ढांचा बनाओ, फिर बदलाव की बात करो
यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे कि:
एक ट्रैफिक इंस्पेक्टर नए शहर में आया और उसने सड़क किनारे खड़ी गाड़ियों के चालान काटने शुरू कर दिए।
जब लोगों ने पूछा — “सर, इस शहर में पार्किंग कहां है?”
तो इंस्पेक्टर बोला — “मुझे नहीं पता, मुझे सिर्फ चालान काटने के आदेश हैं।”
ठीक वैसे ही, अगर सरकार लोगों को EV खरीदने को कहती है, लेकिन चार्जिंग स्टेशन की व्यवस्था नहीं करती — तो यह नीति व्यवहारिक नहीं कही जाएगी।
EV को सफल बनाना है तो यह करें:
हर जिले और तहसील में कम-से-कम 5 चार्जिंग स्टेशन हों
चार्जिंग टाइम को कम करने की टेक्नोलॉजी (जैसे बैटरी स्वैपिंग) को प्रोत्साहित करें
EV गाड़ियों की कीमत को मध्यम वर्ग के अनुसार बनाएं
ग्रामीण इलाकों में 24×7 बिजली और टेक्निकल हेल्पलाइन हो
प्राइवेट कंपनियों को चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने के लिए सब्सिडी दें
EV के फायदे स्पष्ट हैं, लेकिन डर भी हैं
इलेक्ट्रिक वाहन न केवल कम प्रदूषण करते हैं बल्कि दीर्घकालीन आर्थिक बचत भी करते हैं। मगर लोगों के मन में अभी भी यह डर है कि:
- अगर सफर के दौरान चार्ज खत्म हो गया तो क्या होगा?
- रात के समय कौन-से चार्जिंग स्टेशन खुले मिलेंगे?
- बारिश या गर्मी में बाहर चार्जिंग का इंतजार कैसे करें?
निष्कर्ष: भविष्य उज्ज्वल है, बशर्ते सरकार ज़मीन पर उतरे
इलेक्ट्रिक वाहन भारत के भविष्य का हिस्सा ज़रूर हैं, लेकिन इस भविष्य तक पहुंचने के लिए हमें एक लंबा और ठोस रास्ता तय करना होगा।
जब तक हर कस्बे और गांव में चार्जिंग की सुविधा नहीं होगी,
तब तक EV सिर्फ एक विकासशील सोच रहेगा — न कि एक सर्वसुलभ यथार्थ।
“इलेक्ट्रिक वाहन बेचने से पहले, उनके लिए चार्जिंग की व्यवस्था कीजिए — तभी यह क्रांति सफल होगी।”