Homeराष्ट्रीय समाचार"ब्रेस्ट टैक्स का सच: भूल मत जाना दलितों — एक दौर ऐसा...

“ब्रेस्ट टैक्स का सच: भूल मत जाना दलितों — एक दौर ऐसा भी था जब तुम्हारी बहनों को सिर्फ स्तन ढकने के लिए अपना जीवन देना पड़ा था”


ब्रेस्ट टैक्स क्या था?

ब्रेस्ट टैक्स (Breast Tax) 19वीं सदी में त्रावणकोर (आज का केरल) राज्य में लगाया गया एक अमानवीय कर था। यह टैक्स निम्न जाति की महिलाओं पर लगाया जाता था यदि वे अपने स्तनों को कपड़े से ढकना चाहें। यह व्यवस्था ऊँची जातियों की श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए बनाई गई थी। यह कर महिलाओं के स्तनों के आकार पर आधारित होता था — जितना बड़ा आकार, उतना अधिक टैक्स।

यह कर सिर्फ टैक्स नहीं था, यह मानसिक गुलामी और सामाजिक अन्याय का प्रतीक था। जिन महिलाओं पर यह टैक्स लागू था, वे पहले से ही समाज में दोयम दर्जे की नागरिक मानी जाती थीं। ब्रेस्ट टैक्स ने उनके शरीर पर नियंत्रण को सामाजिक रूप से मान्य बना दिया। यह नियम न केवल शारीरिक अपमान था बल्कि जातिगत हीनता का एक क्रूर चेहरा भी था।


त्रावणकोर के राजा किस जाति के थे?

त्रावणकोर के राजा मूलतः नायर जाति से थे, जिन्हें बाद में “क्षत्रिय” के रूप में धार्मिक और सामाजिक मान्यता दिलवाई गई थी। उनका शासन ब्राह्मणों और सामंतों के प्रभाव में चलता था और उन्होंने ऊँच-नीच की व्यवस्था को बनाए रखा।

राजा खुद को भगवान पद्मनाभ का दास कहते थे, लेकिन उनकी व्यवस्था में दलित महिलाओं को अपने शरीर को ढकने तक का अधिकार नहीं था। यह विरोधाभास त्रावणकोर की तत्कालीन सामाजिक संरचना की क्रूरता को दर्शाता है।


नांगेली कौन थीं? जिसने ब्रेस्ट टैक्स की चुप्पी को चीख में बदला

नांगेली, त्रावणकोर के मुल्लाचिपुरम गांव की एक दलित महिला थीं। जब कर वसूलने वाला अफसर उनके घर आया और ब्रेस्ट टैक्स मांगा, तो नांगेली ने कोई सिक्का नहीं दिया।

उन्होंने अपने स्तन काटकर पत्तल में रख दिए और अधिकारी को सौंप दिए। यह एक ऐसी प्रतिरोध की क्रिया थी जिसे इतिहास ने शायद भुला दिया हो, लेकिन ज़मीर ने नहीं।

इस बलिदान के बाद पूरे राज्य में विद्रोह फैल गया। लोगों में आक्रोश जागा और यह कर अंततः समाप्त कर दिया गया। नांगेली की मृत्यु ने सामाजिक बदलाव की नींव रखी।


ब्रेस्ट टैक्स कब और क्यों खत्म हुआ?

नांगेली की आत्मबलिदान से त्रावणकोर राज्य में भारी जनाक्रोश पैदा हुआ। समाज के सभी वर्गों से विरोध उठने लगा। यह विरोध इतना तीव्र था कि त्रावणकोर के राजा को ब्रेस्ट टैक्स को समाप्त करना पड़ा।

यह घटना 19वीं सदी के पूर्वार्ध में घटी थी और यह साबित करती है कि किसी एक महिला की कुर्बानी भी एक पूरे सामाजिक ढांचे को हिला सकती है। यह केवल टैक्स समाप्त नहीं हुआ, बल्कि इससे एक नई चेतना का जन्म हुआ।


ब्रेस्ट टैक्स से आज क्या सीखें?

  1. इतिहास को याद रखना जरूरी है: अगर हम नांगेली को भूल गए, तो हम अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा भी खो देंगे।
  2. सम्मान कानून से नहीं, संघर्ष से मिलता है: नांगेली का बलिदान बताता है कि कभी-कभी व्यवस्था को बदलने के लिए जान तक देनी पड़ती है।
  3. आज भी जातिगत अन्याय ज़िंदा है: भले ही आज ब्रेस्ट टैक्स न हो, लेकिन मानसिक गुलामी और सामाजिक भेदभाव अब भी जारी है।

महत्वपूर्ण सवाल-जवाब:

• ब्रेस्ट टैक्स किसने लगाया था?
त्रावणकोर राज्य की जातिगत सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत यह टैक्स लागू था।

• नांगेली का इतिहास?
नांगेली एक दलित महिला थीं जिन्होंने ब्रेस्ट टैक्स के विरोध में अपने स्तन काटकर बलिदान दिया।

• ब्रेस्ट टैक्स केरल में?
त्रावणकोर राज्य (केरल) में यह टैक्स सिर्फ दलित महिलाओं पर लागू था।

• ब्रेस्ट टैक्स कब खत्म हुआ?
नांगेली की मृत्यु के बाद, 19वीं सदी के पूर्वार्ध में यह टैक्स समाप्त कर दिया गया।

• त्रावणकोर के राजा किस जाति के थे?
वे नायर जाति से थे, जिन्हें बाद में क्षत्रिय माना गया।



नांगेली की कहानी कोई बीती बात नहीं — वह आज भी हमारे ज़मीर की ज़िंदा आग है। हमें हर पीढ़ी को यह बताना चाहिए कि एक दलित बहन ने अपने स्तन काटकर तुम्हें सम्मान दिलाया।

जब अगली बार तुम किसी मंदिर में देवी को फूल चढ़ाओ, तो एक बार नांगेली को भी याद कर लेना — उसने तुम्हारी बहनों के लिए इतिहास को लहू से लिखा था।

ब्रेस्ट टैक्स केवल एक टैक्स नहीं था, वह भारत की जातिगत पितृसत्ता का नग्न चेहरा था। नांगेली की कुर्बानी आज भी एक चेतावनी है — कि अगर तुम चुप रहे, तो आने वाली पीढ़ियाँ फिर से लहू देंगी।

हमें यह भी समझना होगा कि ब्रेस्ट टैक्स की समाप्ति कोई अंतिम जीत नहीं थी, बल्कि वह सिर्फ शुरुआत थी। आज भी जातिगत असमानता और स्त्रियों के प्रति भेदभाव अलग-अलग रूपों में ज़िंदा है। नांगेली की आत्मा तब ही सच्चा सम्मान पाएगी जब हम समाज से हर प्रकार की जातिगत और लैंगिक हिंसा को मिटा पाएंगे।

यह ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार या संस्थाओं की नहीं, बल्कि हम सभी की है। हमें अपने घर, मोहल्ले, गांव और शहर में समानता की वह लौ जलानी होगी जिसे नांगेली ने अपने लहू से जलाया था।

नांगेली की कहानी कोई बीती बात नहीं — वह आज भी हमारे ज़मीर की ज़िंदा आग है। हमें हर पीढ़ी को यह बताना चाहिए कि एक दलित बहन ने अपने स्तन काटकर तुम्हें सम्मान दिलाया।

जब अगली बार तुम किसी मंदिर में देवी को फूल चढ़ाओ, तो एक बार नांगेली को भी याद कर लेना — उसने तुम्हारी बहनों के लिए इतिहास को लहू से लिखा था।

ब्रेस्ट टैक्स केवल एक टैक्स नहीं था, वह भारत की जातिगत पितृसत्ता का नग्न चेहरा था। नांगेली की कुर्बानी आज भी एक चेतावनी है — कि अगर तुम चुप रहे, तो आने वाली पीढ़ियाँ फिर से लहू देंगी।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments