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पाकिस्तान, जिसकी अर्थव्यवस्था कई वर्षों से सांसें गिन रही है, एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की कृपा से जिन्दा रहने की कोशिश कर रहा है। मई 2025 में, IMF ने पाकिस्तान को दो प्रमुख कार्यक्रमों के तहत $2.4 बिलियन की सहायता दी। इस फैसले के बाद कराची स्टॉक एक्सचेंज (KSE-100) में जोरदार तेजी देखने को मिली। लेकिन भारत के नागरिकों के लिए, जो दशकों से आतंकवाद की मार झेलते आ रहे हैं, यह एक कटु व्यंग्य जैसा महसूस होता है।
IMF की सहायता: क्यों और कैसे?
IMF ने पाकिस्तान को दो हिस्सों में यह सहायता दी:
- विस्तारित फंड सुविधा (EFF) के तहत $1 बिलियन तत्काल जारी किए गए।
- लचीलापन और स्थिरता सुविधा (RSF) के अंतर्गत $1.4 बिलियन जलवायु परिवर्तन और आर्थिक स्थिरता के नाम पर दिए गए।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और कराची एक्सचेंज: झटकों और जश्न की कहानी
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ठीक पहले पाकिस्तान के बाजार में पहले से ही अस्थिरता थी। अप्रैल के अंतिम सप्ताह में पहलगाम हमले के बाद निवेशकों में घबराहट थी।
- ऑपरेशन सिंदूर से पहले: कराची स्टॉक एक्सचेंज में 4 दिनों में लगभग 12.5% की गिरावट आई थी। आर्थिक और राजनीतिक तनाव के कारण निवेशकों ने पूंजी निकालनी शुरू कर दी थी।
- ऑपरेशन सिंदूर के दिन (7 मई): भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के समाचार आते ही बाजार में हड़कंप मच गया। KSE-100 इंडेक्स लगभग 6,560 अंकों (5.78%) तक गिरा। यह गिरावट 2008 के बाद की सबसे तेज गिरावट थी।
- 8 मई: अगले दिन बाजार ने फिर 6.3% की गिरावट झेली, जिससे ट्रेडिंग को एक घंटे के लिए रोकना पड़ा। तीन दिन में करीब 80 हजार करोड़ पाकिस्तानी रुपये की पूंजी स्वाहा हो गई।
- 12 मई को पलटाव: जब भारत-पाकिस्तान सीज़फायर की खबर आई और IMF ने बेलआउट मंजूर किया, तब बाजार में अचानक 9% की तेजी आ गई। यह पलटाव अस्थायी राहत जैसा था — क्योंकि असली दर्द और मूल समस्या जस की तस है।
IMF का दावा है कि पाकिस्तान ने कर व्यवस्था में सुधार और मुद्रास्फीति में कमी जैसे कदम उठाए हैं। लेकिन एक आम भारतीय के लिए, जो सीमा पर शहीद हुए जवान की तस्वीर देखता है, यह आर्थिक ‘सुधार’ खोखले वादों से ज़्यादा नहीं लगते।
अमेरिका की भूमिका: एक रणनीतिक चुप्पी
IMF में अमेरिका का वर्चस्व किसी से छुपा नहीं है। सबसे बड़ा वोटिंग शेयर रखने वाला अमेरिका, IMF में पाकिस्तान के पक्ष में फैसले करवाने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
जब भारत ने आतंकवाद से त्रस्त होकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे सख्त कदम उठाए, तब भी अमेरिका ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद का मार्ग प्रशस्त किया। कहा गया कि शर्त के रूप में पाकिस्तान को भारत से संघर्ष विराम करना होगा — लेकिन क्या यह वास्तव में स्थायी शांति की ओर कोई कदम है, या सिर्फ आर्थिक ऑक्सीजन देने का बहाना?
शेयर बाजार की उछाल: जश्न किस बात का?
IMF की मदद की घोषणा के बाद KSE-100 में 9.45% की बढ़त दर्ज की गई। यह ऐसा था जैसे किसी बीमार को ग्लूकोज की बोतल लगाकर एक दिन के लिए दौड़ने भेज दिया जाए। इससे पहले भी IMF के बेलआउट पैकेज के बाद ऐसी ही ‘तेजी’ देखी गई थी, लेकिन कुछ ही महीनों में वही गिरावट लौट आई।
एक आम भारतीय निवेशक के लिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है — क्या आतंक के समर्थन में खड़े मुल्क को आर्थिक इनाम देना, अंतरराष्ट्रीय नीति का हिस्सा बन चुका है?
भारतीय भावना: दर्द और असहायता का मिश्रण
भारत के लोगों के मन में सवाल और आक्रोश है — पुलवामा, उरी, पठानकोट जैसी घटनाओं के बाद भी क्या अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं पाकिस्तान को मदद देकर आतंक को परोक्ष रूप से समर्थन नहीं दे रहीं?
IMF की यह मदद उन लाखों परिवारों की पीड़ा को और बढ़ा देती है जिन्होंने अपनों को खोया है। यह ऐसा ही है जैसे आतंक के पोषक को पुरस्कार दिया जा रहा हो, जबकि पीड़ित की चीखें अनसुनी रह जाती हैं।
भारत की आपत्ति: आवाज़ जो अनसुनी रह गई
भारत ने IMF को स्पष्ट आपत्ति दर्ज कराई थी कि पाकिस्तान इन पैसों का दुरुपयोग आतंकवाद फैलाने में कर सकता है। परंतु, इस आवाज़ को नजरअंदाज कर दिया गया। यह वैश्विक संस्थानों की उस खामोशी को दर्शाता है, जो सिर्फ ताकतवर देशों की राजनीति पर आधारित होती है, न कि नैतिकता पर।