Homeधर्मबेमाता की कथा: लोकसंस्कृति, धर्म और ज्ञान की संवाद-गाथा

बेमाता की कथा: लोकसंस्कृति, धर्म और ज्ञान की संवाद-गाथा

बेमाता की कथा: भारत की धरती पर सदियों से देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों और भक्तों की लीलाओं को गीतों और कथाओं के रूप में गाया जाता रहा है। हरियाणा, राजस्थान और उत्तर भारत के ग्रामीण अंचलों में लोकगायक (गावणिए) इन्हीं प्रश्नोत्तर गीतों के माध्यम से ज्ञान और आस्था का प्रसार करते हैं। प्रस्तुत संवाद “बेमाता की मात बतादे…” इसी परंपरा का एक अत्यंत सुंदर उदाहरण है, जहाँ लोकवाणी के माध्यम से धर्म, दर्शन और संस्कृति की गूढ़ बातों को सरल भाषा में समझाया गया है।


प्रथम संवाद: बेमाता, गौरा और शिव की कथा

बेमाता की कथा: गीत की शुरुआत एक प्रश्न से होती है — “बेमाता की मात बतादे, सास बतादे गौरा की, शिव शंकर का गुरू बतादे…”। इस प्रश्न के माध्यम से लोकवक्ता उन देवी-देवताओं की उत्पत्ति और संबंधों को जानना चाहता है, जिनकी पूजा हम श्रद्धा से करते हैं।

उत्तर मिलता है
बेमाता की माँ गायत्री हैं, जो वेदों की देवी हैं और ज्ञान की जननी मानी जाती हैं। गौरा (पार्वती) की सास अनसूया थीं, जो ऋषि अत्रि की पत्नी थीं और उन्हें देवी त्रिदेवी स्वरूप में भी सम्मान प्राप्त है। शिवशंकर के गुरु अंगीरा ऋषि थे, जो सप्तर्षियों में से एक और ब्रह्मा के पुत्र थे। अष्टभुजा देवी, जो ब्रह्मा की पुत्री मानी जाती हैं, उन्होंने चोरों की रक्षा इसलिए की क्योंकि वे अनजाने में साधु रूप में आए थे। मोर की सवारी करने वाले साधु बालकनाथ थे, जिनका तप और भक्ति हिमालय की गुफाओं में प्रसिद्ध है।

और अंत में — “जो पानी में आग लगा दे” — उसका उत्तर है: ज्ञान। क्योंकि केवल ज्ञान ही ऐसा तत्व है जो अज्ञान रूपी जल को जला सकता है। यह प्रतीकात्मक है — कि ज्ञान ही आत्मा की ज्वाला को प्रज्वलित करता है।


द्वितीय संवाद: धर्म, दान और तप की कथा

बेमाता की कथा: अब दूसरा प्रश्न उठता है — “बाप के ब्याह मैं बण्यां बिचौला…”। इसमें महाभारत, गणेश, कुबेर और अगस्त्य जैसे पात्रों का उदाहरण देकर जीवन मूल्यों पर चर्चा की जाती है।

उत्तर दिया जाता है
बाप (शांतनु) के ब्याह में भीष्म बिचौला बना, जिसने अपना राज्य त्याग दिया और ब्रह्मचर्य का व्रत लिया। यह त्याग और भक्ति का चरम उदाहरण है।
राक्षस का वेश धरने वाला देवता था गणेश, जो सतयुग में प्रकट हुआ — और कठिन समय में छल और चातुर्य से दुष्टों को हराया।
कुबेर धन के देवता होते हुए भी दान न देने वाले बन गए — इससे सिखाया गया कि धन का संग्रह नहीं, उसका सदुपयोग ही पुण्य है
अगस्त्य मुनि ने समुद्र पीकर संसार को असंतुलन से बचाया — यह दिखाता है कि एक ऋषि अपनी तपशक्ति से संसार की रक्षा कर सकता है।

बेल धर्म, अर्थात सहिष्णुता, सत्य, सेवा और त्याग — यही मानव जीवन का असली धर्म है, जिसे लोकगायक सभा में गाता है।


तृतीय संवाद: गणेश की उत्पत्ति और वीरता

बेमाता की कथा: लोकसंस्कृति, धर्म और ज्ञान की संवाद-गाथा

अब तीसरे प्रश्न में एक अद्भुत रहस्य पूछा गया — “उस लड़के का नाम बतादे, जो ना माता कै पेट पड़या…”।

उत्तर है
वह था गणेश, जिसे पार्वती ने अपने शरीर के मैल से बनाया। यह दर्शाता है कि नारी की आत्मशक्ति ही सृजन का आधार है
गणेश को जब दरवाजे पर नियुक्त किया गया, तब उन्होंने शिव को भी रोक दिया।
यही उनका कर्तव्यबोध था। इस कारण शिव ने उनका सिर काट दिया, लेकिन बाद में हाथी का सिर लगाकर उन्हें प्रथम पूज्य बना दिया गया।

यह प्रसंग बताता है कि सच्चा भक्त, चाहे कितना भी विरोध झेले, अंततः मान्यता पाता है।


चतुर्थ संवाद: सती-पार्वती और गणेश का ममत्व

चौथे प्रश्न में भावनात्मक गहराई है — “अपने मन तैँ प्राण त्याग कै, फिर लडकी का चोला पाया…”।

उत्तर दिया गया
वह थी सती, जिन्होंने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर देह त्याग दी।
फिर वे हिमाचल की पुत्री बनकर पार्वती के रूप में जन्मीं।
उन्होंने कठिन तप करके शिव को प्राप्त किया और एक दिन मिट्टी से गणेश को गढ़ा।
गणेश की सेवा में वे लीन रहीं, और जब गणेश का सिर शिव ने काटा, तो पार्वती का दुःख असहनीय था।
यहां से ममता, त्याग और भक्ति का संगम जन्म लेता है।


लोकसंवाद से लोकज्ञान तक

यह पूरी गाथा केवल देवी-देवताओं की कहानियाँ नहीं हैं — ये हैं जीवन के आदर्श, जो हर ग्रामीण, हर भक्त, हर बालक को अपने भीतर उतारने चाहिए।
इसमें त्याग है भीष्म जैसा, साहस है गणेश जैसा, तप है अगस्त्य जैसा, श्रद्धा है पार्वती जैसी, और सेवा है बालकनाथ जैसी।

यह लोकसंवाद हमें सिखाता है कि—

  • माता-पिता का सम्मान करो, लेकिन धर्म और कर्तव्य के लिए सबकुछ त्यागने को भी तैयार रहो।
  • धन केवल संग्रह की वस्तु नहीं, उसका सही उपयोग ही धर्म है।
  • स्त्री केवल जननी नहीं, सृष्टि की निर्माता है।
  • ज्ञान ही वह शक्ति है जो अज्ञान, अंधकार और अधर्म को जला सकता है।
  • और अंत में — लोकगीत, भजन और कथा केवल मनोरंजन नहीं, चिंतन और चेतना का माध्यम हैं।

निष्कर्ष:

इस प्रश्नोत्तर लोकगाथा के माध्यम से हमें जो सीख मिलती है, वह आज के भटके हुए समाज के लिए दीपक का काम करती है।
यह गाथा बताती है कि धर्म केवल मंदिरों में नहीं, लोकजीवन में भी बसता है
गांव की चौपाल से लेकर वेदों के श्लोक तक, हर जगह एक ही संदेश है —
“ज्ञान लो, त्याग करो, सेवा करो, और सत्य के मार्ग पर अडिग रहो।”

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