एक सच्ची और अलौकिक अनुभूति
यह कहानी है मेरे जीवन की उस रात की, जिसने मुझे न केवल डर का एहसास कराया, बल्कि ईश्वर के अस्तित्व और “नारायण का चमत्कार” भी दिखाया। यह एक साधारण रात थी, लेकिन इसका प्रभाव असाधारण था।
मैं उस समय गर्मियों की छुट्टियों में अपने गांव आया हुआ था। हमारा घर दो मंजिला था और ऊपर की छत पर सोने का रिवाज़ था क्योंकि बिजली कटौती आम थी। गांव की वो छत, जिसमें मिट्टी की खुशबू, ठंडी हवा और तारों से भरा आसमान एक साथ मिलता था, मेरी सबसे पसंदीदा जगह थी।
उस रात भी मैं अपनी छत पर चादर बिछाकर लेटा था। साथ में मेरा प्यारा पालतू कुत्ता गुड्डा भी था, जो हमेशा मेरे पास रहता था। चारों तरफ सन्नाटा था, केवल झींगुरों की आवाज़ और दूर कहीं किसी कुत्ते के भौंकने की ध्वनि आ रही थी।
रात के करीब 9 बजे मैं तारों को गिनते-गिनते नींद के इंतजार में था। लेकिन नींद जैसे आंखों से कोसों दूर थी। दिमाग में तरह-तरह के ख्याल चल रहे थे। जीवन, भविष्य, और… मौत।
करीब 1 बजे के आसपास मेरी आंखें लग गईं। तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरी छाती पर किसी ने भारी चीज रख दी हो। सांस लेना मुश्किल हो गया। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी गर्दन पर घोड़े का पैर रख दिया हो। मैं बोलना चाहता था, चिल्लाना चाहता था, लेकिन मेरी आवाज़ गले में ही घुट गई।
मैंने “पापा… मम्मी…” कहने की कोशिश की, लेकिन मेरी आवाज़ बाहर नहीं निकल रही थी। उस वक्त मुझे अपनी मौत सामने खड़ी नजर आ रही थी। मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। पास में गुड्डा जोर-जोर से भौंक रहा था, शायद उसने उस अदृश्य शक्ति को भांप लिया था।
मैं पूरी तरह असहाय था। तभी मुझे एक बचपन की कथा याद आई, जिसमें कहा गया था—”जब कोई तुम्हारी नहीं सुन रहा हो, जब संकट सबसे बड़ा हो, तब बस नारायण को पुकारना। नारायण का चमत्कार तभी प्रकट होता है।”
मैंने एकादशी के व्रत कई बार किए थे। मन में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। मैंने मन ही मन कहा, “हे नारायण! अगर आज मेरी मृत्यु निश्चित है, तो मुझे बैकुंठ धाम मिले। मेरी प्राणवायु तेरे नाम से निकले।”
और फिर मैंने कहना शुरू किया, “नारायण… नारायण… नारायण…”

अचानक कुछ ही क्षणों में मेरी छाती से वह दबाव हट गया। मैं फिर से सांस ले पा रहा था। मेरा शरीर धीरे-धीरे सामान्य हो गया। मैंने खुद को छुड़ाया और तुरंत नीचे भागा, जहां माता-पिता सो रहे थे। मैं उनके पास लेट गया और कांपते हुए नींद का इंतजार करता रहा।
उस रात जो हुआ, वह मेरे लिए सिर्फ एक सपना नहीं था। यह “नारायण का चमत्कार” था। मैंने उस शक्ति को महसूस किया, जो अदृश्य थी लेकिन सशक्त थी।
अगले दिन मैंने यह बात अपने माता-पिता को बताई। उन्होंने कहा कि ऐसे अनुभव भगवान का संकेत होते हैं। माँ ने कहा, “बेटा, तू भाग्यशाली है कि भगवान ने तुझे खुद को महसूस कराया। नारायण का चमत्कार हर किसी को नहीं मिलता।”
स दिन से मेरी सोच बदल गई। पहले मैं धर्म को केवल परंपरा मानता था, अब वह मेरे जीवन का केंद्र बन गया। अब मैं हर रात सोने से पहले भगवान नारायण का नाम लेकर ही आंखें बंद करता हूँ।
अचानक कुछ ही क्षणों में मेरी छाती से वह दबाव हट गया। मैं फिर से सांस ले पा रहा था। मेरा शरीर धीरे-धीरे सामान्य हो गया। मैंने खुद को छुड़ाया और तुरंत नीचे भागा, जहां माता-पिता सो रहे थे। मैं उनके पास लेट गया और कांपते हुए नींद का इंतजार करता रहा।
उस रात जो हुआ, वह मेरे लिए सिर्फ एक सपना नहीं था। यह “नारायण का चमत्कार” था। मैंने उस शक्ति को महसूस किया, जो अदृश्य थी लेकिन सशक्त थी।
अगले दिन मैंने यह बात अपने माता-पिता को बताई। उन्होंने कहा कि ऐसे अनुभव भगवान का संकेत होते हैं। माँ ने कहा, “बेटा, तू भाग्यशाली है कि भगवान ने तुझे खुद को महसूस कराया। नारायण का चमत्कार हर किसी को नहीं मिलता।”
उस दिन से मेरी सोच बदल गई। पहले मैं धर्म को केवल परंपरा मानता था, अब वह मेरे जीवन का केंद्र बन गया। अब मैं हर रात सोने से पहले भगवान नारायण का नाम लेकर ही आंखें बंद करता हूँ।
मैंने तब से हर एकादशी को उपवास रखना शुरू किया। पूजा-पाठ में मन लगने लगा। जीवन में जब भी कोई परेशानी आती है, मैं बस शांत होकर बैठ जाता हूं और कहता हूं, “हे नारायण! अब सब तुझ पर छोड़ता हूँ।”
समय के साथ मैंने और भी कई बार “नारायण का चमत्कार” महसूस किया। एक बार मेरी नौकरी जाने वाली थी, लेकिन अंतिम क्षण में सब कुछ ठीक हो गया। एक बार मेरी बहन की तबीयत बहुत खराब थी, लेकिन डॉक्टर भी हैरान रह गए कि वह इतनी जल्दी ठीक कैसे हो गई। हर बार जब भी मैं संकट में होता हूं, नारायण मेरी रक्षा करते हैं।
लोग मुझसे पूछते हैं, “क्या वो रात सपना था? या कोई मानसिक भ्रम?” मैं सिर्फ मुस्कुराता हूं और कहता हूं—”अगर तुमने नारायण का चमत्कार खुद अनुभव नहीं किया, तो शायद तुम समझ नहीं पाओगे।”
यह अनुभव न तो पूरी तरह वैज्ञानिक है और न ही कल्पना। यह श्रद्धा और अनुभव का संगम है। “नारायण का चमत्कार” केवल चमत्कारी रूप से संकट से बचने का नाम नहीं, यह एक भाव है, एक संबंध है, आत्मा और परमात्मा के बीच।
अब जब भी मैं उस रात को याद करता हूं, तो मेरी आंखें नम हो जाती हैं। मेरी मौन चीख और नारायण की कृपा आज भी मेरे जीवन का सबसे सशक्त प्रमाण हैं कि ईश्वर सच में होते हैं, और वो हमारे बहुत करीब होते हैं।
इस कहानी को लिखने का मेरा उद्देश्य सिर्फ यह नहीं है कि मैं अपने अनुभव साझा करूं, बल्कि यह बताना है कि जब सब दरवाज़े बंद हो जाएं, तब ईश्वर का द्वार खुला रहता है। बस विश्वास चाहिए, समर्पण चाहिए और पुकार चाहिए।
आज भी जब मैं छत पर सोता हूं, तो कभी-कभी डर लगता है। लेकिन फिर मन कहता है, “डर मत, नारायण पास हैं।” और मैं शांति से सो जाता हूं, उस नाम के साथ जिसने मुझे जीवन का सबसे बड़ा सबक दिया—नारायण का चमत्कार।