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रत्ना पाठक शाह क्यों मानती हैं कि आज एक्टिंग सिखाने वाले कहीं नहीं हैं



इमेज स्रोत, Kirti Rawatइमेज कैप्शन, बीबीसी हिंदी की ख़ास पेशकश ‘कहानी ज़िंदगी की’ में इस बार की ख़ास मेहमान रत्ना पाठक शाह थीं22 मिनट पहलेजानी-मानी अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह कहती हैं कि उनकी ज़िंदगी में प्लान के मुताबिक़ तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन जो कुछ हुआ बहुत ख़ूबसूरत और दिलचस्प हुआ.वह कहती हैं, “ये ज़िंदगी जो मुझे बख़्शी गई है, वह मुझे ऐसी लगती है, जैसे किसी की दुआ लगी हो. मुझे हमेशा बढ़ते रहने का अवसर मिलता रहा.”उनका कहना है कि ज़िंदगी ने उन्हें बहुत नेमतें दी हैं. इनमें उनके माता-पिता, उनका परिवार और साथ काम करने वाले लोग शामिल हैं.बीबीसी हिंदी की ख़ास पेशकश ‘कहानी ज़िंदगी की’ में इस बार अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह ने अपनी ज़िंदगी के कई अहम पलों को इरफ़ान के साथ साझा किया.रत्ना पाठक का परिवार कैसा थाइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, रत्ना पाठक कहती हैं कि उनके परिवार ने उन्हें कभी रोका-टोका नहींरत्ना पाठक शाह बताती हैं कि उनके परिवार में किसी तरह की रोक-टोक नहीं थी. उनका परिवार स्वीकार करने वाला और प्रोत्साहित करने वाला था. वह कहती हैं, “कभी भी एजुकेशन पर रोक नहीं लगाई गई. लड़की हो इसलिए आप यह कर सकती हो, वह नहीं कर सकती हो, ये भी सवाल नहीं उठे. इसके उलट यह कहा कि तुम यह कर सकती हो, कोशिश क्यों नहीं करती हो?”वह कहती हैं कि परिवार से मिलने वाले इस तरह के सपोर्ट के कारण उन्होंने बचपन में सामने आने वाली चुनौतियों का आसानी से सामना किया और आगे बढ़ पाईं.रत्ना पाठक के मुताबिक़, प्रोफ़ेशनल जीवन में सामने आने वाली चुनौतियों या बुरे वक़्त से काफ़ी तकलीफ़ें होती हैं क्योंकि वहाँ सहारा कम होता है.’बहुत निगेटिव रिव्यू मिले’इमेज स्रोत, STRDEL/AFP via Getty Imagesइमेज कैप्शन, रत्ना पाठक कहती हैं कि उन्हें हर मोड़ पर राह दिखाने वाले लोग मिलेप्रोफ़ेशनल जीवन में रत्ना पाठक के सामने भी चुनौतियां आईं. वह बताती हैं कि उन्हें निगेटिव रिव्यूज़ बहुत मिले. “कई बार तो लोगों ने ये भी कहा कि इसको बार-बार लिया क्यों जा रहा है? शायद वह फ़लां की बीवी है या फ़लां की बेटी है. लेकिन वहाँ भी मुझे बहुत सपोर्ट देने वाले इंसान मिल गए.”उन्हें सपोर्ट करने वाले वे शख़्स सत्यदेव दुबे और नसीरुद्दीन शाह थे.रत्ना पाठक बताती हैं कि सत्यदेव दुबे ने उन्हें बहुत चीज़ों में राह दिखाई और बार-बार उन्हें चुनौती वाले काम देते रहे.वह कहती हैं, “नसीर ने बहुत साथ दिया. किस तरह की एक्टिंग मैं करना चाहती हूँ? वह किस तरह से करूं? वह समझाने में भी दुबे और नसीर इन दोनों की मुझे बहुत मदद मिली.”रत्ना पाठक कहती हैं कि उन्हें हर मोड़ पर राह दिखाने वाले लोग मिले और वक़्त के साथ उन्हें अपने तरह का काम मिलने लगा.नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा जाकर निराश हुई थीं रत्ना?रत्ना पाठक ने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (एनएसडी) में तीन साल पढ़ाई की है. वह कहती हैं, “मैं जो तीन साल थी, मैंने वहां बहुत कुछ सीखा. उन तीन सालों में कोई स्पेशलाइज़ेशन नहीं था. हम लोग एक कॉमन कोर्स करते थे और मुझे लगता है कि वह मेरे लिए सबसे फ़ायदेमंद रहा.”हालांकि, वह बताती हैं कि एनएसडी में उनके वक़्त के दौरान और आज भी एक्टिंग का उनका कोई टीचर नहीं रहा है.रत्ना पाठक बताती हैं, “हमारे साथ अलग-अलग डायरेक्टर्स आकर काम करते थे, जो बहुत दिलचस्प था क्योंकि इससे हमें अलग-अलग थिएटर अप्रोचेज़ देखने का मौक़ा मिला. जब मैं वहाँ थी तो एनएसडी स्कूल की तरह चल रहा था, लेकिन एक्टिंग के मामले में बहुत बड़ा खड्डा रहा और ये खड्डा अभी तक नहीं भरा गया.”अपने एनएसडी के दिनों में एक्टिंग सिखाने को लेकर वह कहती हैं, “वहाँ तो ऐसा था कि कोई भी अच्छा एक्टर गुज़र रहा हो, तो उसे पांच मिनट बैठाकर वर्कशॉप करा दिया. किसी ने आकर के कुछ सुना दिया, किसी ने आकर बिल्कुल विपरीत ही कुछ और दिखा दिया, ये सब चलता रहा.”एक्टिंग पढ़ाने और पढ़ने का तरीक़ारत्ना पाठक शाह के मुताबिक़ एक्टिंग को पढ़ाने के तरीक़े क्लियर नहीं हैं. वह कहती हैं कि इसको लेकर बहुत ग़लतफ़हमियां हैं और इसमें वह मनगढ़ंत थ्योरीज़ सुनती आई हैं.उनका ये मानना है कि एक्टिंग कहीं भी सही ढंग से नहीं सिखाई जा रही है, न भारत में और न ही विदेशों में.रत्ना पाठक शाह के मुताबिक़- “एक एक्टर का काम है कि वह लेखक की बात दर्शकों तक पहुंचाए. डायलॉग को डायलॉग न दिखा कर बोलचाल की भाषा कैसे बनाए. जिससे कि ऐसा न लगे कि वह लेखक का लिखा पर्चा पढ़ रहा है, बल्कि ऐसा लगे कि वह जो बोल रहा है, वह उसके दिल और दिमाग़ से पैदा हो रहा है.”वह कहती हैं कि उसके लिए एक अच्छी ज़बान होनी चाहिए. एक एक्सप्रेसिव शरीर होना चाहिए और दिल-दिमाग़ की तैयारी होनी चाहिए. रत्ना पाठक कहती हैं कि उनकी एक्टिंग के एक टीचर से यही अपेक्षा रहेगी कि वह इन चीज़ों में मदद करे.साथ ही, वह यह भी कहती हैं, “एक्टिंग सिखाई नहीं जा सकती, वह आपको सीखनी पड़ती है, इस प्रोसेस में स्टूडेंट का जो कॉन्ट्रिब्यूशन है, वह ज़रूरी है. एक्टिंग के स्टूडेंट के लिए ये ज़रूरी है कि वह ख़ुद को कैसे तैयार कर रहा है.”रत्ना पाठक ने अपने बाल डाई करना क्यों छोड़ा?इमेज स्रोत, Milind Shelte/The India Today Group via Getty Imagesइमेज कैप्शन, रत्ना पाठक शाह का मानना है कि बाल न रंगने से उन्हें काम मिलने के मौक़े कम मिलेरत्ना पाठक कहती हैं, “एक एक्टर के लिए अपनी उम्र को एक्सेप्ट करना मुश्किल चीज़ है. लेकिन ज़िंदगी में जो होना है, उससे इंसान कब तक बचेगा?”रत्ना पाठक बताती हैं कि इसी के मद्देनज़र और नसीरुद्दीन शाह ने भी उनसे कहा कि वह अपने बाल डाई करना छोड़ दें. वह कहती हैं, “मैं आपको बता नहीं सकती कि इससे कितनी राहत मिली.”हालांकि, उन्हें लगता है बाल डाई करना छोड़ने के कारण उन्हें काम मिलने पर असर पड़ा.वह कहती हैं, “मेरे अपोज़िट जो मेल एक्टर्स काम कर सकते हैं, वह अभी भी अपने बाल डाई कर रहे हैं. तो अब मेरे सामने कौन आएगा? मैं दादी-नानी के ही कैटेगरी में आ गई और हमारी फ़िल्मों में दादी-नानी का रोल क्या होता है? जब हीरोइन को ही रोल नहीं देते तो दादी-नानी को क्या देंगे? इसके बावजूद मुझे अच्छे-ख़ासे रोल मिले हैं.”ओटीटी की किस बात से ख़ुश हैं रत्ना पाठकइमेज स्रोत, STRDEL/AFP via Getty Imagesइमेज कैप्शन, रत्ना पाठक का मानना है कि ओटीटी के कारण नए राइटर्स और नए डायरेक्टर्स आए हैंरत्ना पाठक शाह का मानना है कि ओटीटी ने राइटर्स, डायरेक्टर्स को नया सोचने के लिए मजबूर किया है.वह कहती हैं, “ओटीटी पर लोग हज़ार देशों की चीज़ें देखते हैं और पहचानते हैं कि क्या कहाँ से चोरी हो रहा है. अब सब चोरी पकड़ी जा रही है. अब सब को ओरिजिनल सोचना पड़ रहा है.”उनके मुताबिक़ ओटीटी ने एक काम तो कर दिया कि अब सिर्फ़ एक तरह की चीज़ें बार-बार ऑडियंस को नहीं दिखाई जा सकती हैं, अब नया सोचना पड़ेगा.रत्ना पाठक का मानना है कि ओटीटी के कारण नए राइटर्स, नए डायरेक्टर्स आए हैं. मुंबई के बाहर से जो डायरेक्टर्स आ रहे हैं, वे नये आइडियाज़ और नया अंदाज़ लेकर आ रहे हैं.नसीरुद्दीन शाह के बयानों पर क्या सोचती हैं रत्ना पाठकइमेज स्रोत, LOIC VENANCE/AFP via Getty Imagesइमेज कैप्शन, रत्ना पाठक शाह कहती हैं कि ट्रोल्स की बातों पर क्यों ग़ौर किया जाएरत्ना पाठक शाह ने अपने पति नसीरुद्दीन शाह के कुछ बयान के कारण उन पर निशाना साधे जाने पर भी खुलकर अपनी बात रखी.वह कहती हैं, “हमारे आसपास जो हो रहा है, उससे बहुत लोग आँखें मूँद कर चल सकते हैं. कुछ लोग आँखें मूँद कर नहीं चल पाते तो उनको भुगतना पड़ता है. अगर उनमें हिम्मत होती है, तो उन्हें इसके ख़िलाफ़ भी भुगतना पड़ता है. फिर उसका रिएक्शन भी देखना पड़ता है. लेकिन अगर आपकी बात में कुछ सच्चाई है और अगर आपका इरादा ग़लत नहीं है, तो फिर सामने वाला सुनता है.”रत्ना पाठक शाह कहती हैं कि ट्रोल्स तो पेड होते हैं, तो उनकी बातों पर क्यों ग़ौर किया जाए और वह तो अपना धंधा कर रहे हैं.फ़िल्मों में ‘अल्फ़ा मेल’ के किरदार पर क्या सोचती हैं रत्ना पाठकरत्ना पाठक शाह कहती हैं कि फ़िल्मों में हर तरह के कैरेक्टर दिखाने होते हैं, लेकिन इसमें ये भी अहम है कि हम उन किरदारों को कैसे पेश करते हैं.वह कहती हैं, “अगर एक अल्फ़ा मेल को दिखाते हुए उसे सिर पर चढ़ाया जा रहा है, तो उससे मुझे तकलीफ़ है, लेकिन अल्फ़ा मेल के साथ-साथ उसके ऑपोज़िट स्वरूप भी दिखा रहे हैं, तो ठीक है. ताकि एक ऑडियंस के तौर पर मैं डिसीज़न ले सकूं कि मैं किस तरह के इंसान को सही समझती हूँ.”रत्ना पाठक को आज की उन फ़िल्मों से तकलीफ़ है, जिनमें पितृसत्ता को ग्लोरिफाई करने की कोशिश हो रही है.वह कहती हैं, “किसी भी समाज में हमेशा से किसी भी बदलाव को लेकर एक क़दम आगे बढ़कर दो क़दम पीछे जाना हमेशा से रहा है, अब भी वैसा ही हो रहा है. 70, 80 और 90 के दशक में औरतों ने जद्दोजहद करके अपने लिए जो हक़ क़ायम किए थे, वे आज फिर से डाँवाडोल हो रहे हैं. फिर से जंग लड़नी पड़ेगी और इस बार उम्मीद है कि बहुत सारे मर्द भी साथ आएँगे.”बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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