
अगस्त महीने में एक के बाद एक रिलीज होने जा रहीं चार सीक्वल फिल्मों को देखते हुए हर किसी के मन में एक सवाल तो बनता है। क्या ऐसे सीक्वल्स दर्शकों के दिल में उतरते हैं या यह सिर्फ एक सुरक्षित ट्रेड फॉर्मूला बन चुका है? बस इसी सवाल का जवाब पाने के लिए अमर उजाला ने ट्रेड एक्सपर्ट्स सुमित कडेल और अतुल मोहन से बात की।

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वॉर 2 में नजर आएंगे ऋतिक
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फिल्म का नाम देखकर टिकट नहीं बिकती: सुमित काडेल
इस बारे में सुमित काडेल ने अपनी राय देते हुए कहा, ‘सीक्वल का ट्रेंड नया नहीं है। ‘मुन्ना भाई’, ‘धूम’, ‘हेरा फेरी’, ‘कृष’ और ‘वेलकम’ जैसी फिल्मों की अगली कड़ियां पहले भी दर्शकों को पसंद आई हैं, लेकिन हर फिल्म को यह सौभाग्य नहीं मिलता। एक सीक्वल तभी काम करता है जब उसकी पहली किस्त दर्शकों की यादों में गहराई से बसी हो। अगर ऐसा जुड़ाव नहीं है, तो केवल नाम या ब्रांड से कोई फिल्म नहीं चलती। आज का ऑडियंस समझदार है; वो सिर्फ टाइटल देखकर टिकट नहीं खरीदते।

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धड़क 2
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‘धड़क 2’ और ‘सन ऑफ सरदार 2’ में से सफल कौन ?
सुमित का मानना है कि ‘धड़क 2’ और ‘सन ऑफ सरदार 2’ की सफलता को लेकर संशय है। उनका कहना है, ‘धड़क को थिएटर में सीमित प्रतिक्रिया मिली थी। फिल्म ने असली लोकप्रियता टीवी और ओटीटी पर पाई थी। अब इसका सीक्वल नए डायरेक्टर और नई कास्ट के साथ आ रहा है, जिससे इसकी स्टार वैल्यू कमजोर है।’
वहीं ‘सन ऑफ सरदार’ का पहला भाग ही औसत था, जिसे ऑडियंस ने खास पसंद नहीं किया। ऐसे में इसका सीक्वल बनाना एक जबरदस्ती का फैसला लगता है, न कि ऑडियंस के लिए का।’

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सन ऑफ सरदार 2
– फोटो : इंस्टाग्राम- @ajaydevgn
सीक्वल से बना भरोसा, मगर सबके लिए नहीं: अतुल मोहन
सीक्वल्स की सफलता और उस पर बढ़ती निर्भरता पर बात करते हुए ट्रेड एक्सपर्ट अतुल मोहन कहते हैं, ‘इस बात में कोई दो राय नहीं कि कई फिल्मों के सीक्वल्स ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया है। जब कोई फिल्म हिट होती है, तो उसके साथ एक ब्रांड बन जाता है और ऑडियंस को यह अंदाजा होता है कि उन्हें क्या देखने को मिलेगा। हालांकि, अब माहौल बदल गया है। आजकल अभिनेता उन्हीं चीजों से जुड़े रहना चाहते हैं जो पहले काम कर चुकी हैं, ताकि उनके करियर पर बुरा असर न पड़े।’

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अगस्त में रिलीज होंगी ये फिल्में
– फोटो : अमर उजाला
‘नई फिल्म’ यानी नया जोखिम
अतुल आगे कहते हैं, ‘नई फिल्म बनाना ऐसा होता है जैसे कोई नई दुनिया तैयार करना, जिसमें काफी जोखिम होता है। वहीं फ्रेंचाइजी फिल्में पहले से आजमाई हुई होती हैं, जिस पर निवेशक और अभिनेता दोनों को भरोसा होता है। यही वजह है कि ज्यादातर मेकर्स इस फॉर्मूले को सुरक्षित मानते हैं। हालांकि, जो क्रिएटिव है वो रिस्क लेने से नहीं डरते।’