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टर्की और अज़रबैजान की भारत विरोधी नीति पर एक नज़र भारत एक ऐसा देश है जो शांति, सहयोग और विश्व बंधुत्व को प्राथमिकता देता आया है। हमारी विदेश नीति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धांत पर आधारित रही है। भारत ने अपने पड़ोसी देशों ही नहीं बल्कि विश्वभर के राष्ट्रों की मदद की है, चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो या वैश्विक महामारी। लेकिन, कुछ देश ऐसे भी हैं जिन्होंने भारत की दोस्ती और मदद का गलत लाभ उठाया और अपने निजी राजनीतिक हितों के लिए भारत के विरुद्ध कार्य किया। ऐसे दो देशों के नाम हैं — टर्की और अज़रबैजान।
इन दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन कर भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाए हैं, भारत के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप किया है और भारत विरोधी बयान जारी किए हैं। यह लेख इसी बात की पड़ताल करता है कि भारत को इन देशों का बहिष्कार क्यों करना चाहिए।
1. पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा टर्की और अज़रबैजान: भारत की संप्रभुता पर हमला
कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और यह संविधान से प्रमाणित है। बावजूद इसके, टर्की और अज़रबैजान ने बार-बार पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाते हुए भारत के खिलाफ बयानबाज़ी की है। 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया, तब टर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की आलोचना करते हुए इसे मानवाधिकार उल्लंघन करार दिया। अज़रबैजान ने भी इसी लाइन पर OIC में पाकिस्तान के साथ खड़े होकर भारत का विरोध किया।
टर्की ने कई बार UN और OIC में कश्मीर मुद्दे को मुस्लिम मानवाधिकारों से जोड़कर भारत को घेरने की कोशिश की है, जो भारत के लिए अस्वीकार्य है। अज़रबैजान ने भी भारत के खिलाफ पाकिस्तान के प्रस्तावों का समर्थन करते हुए भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने का प्रयास किया है।
2. भारत की उदारता का दुरुपयोग: टर्की और अज़रबैजान की कूटनीतिक कृतघ्नता
भारत ने हमेशा टर्की और अज़रबैजान के साथ सहयोग की नीति अपनाई। भारत ने टर्की को रक्षा, फार्मा, और निर्माण क्षेत्रों में सहयोग दिया, वहीं अज़रबैजान से कच्चे तेल और ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित की। लेकिन जब भारत को इनसे समर्थन की ज़रूरत थी, तब इन दोनों ने पाकिस्तान की तरफ़दारी की।
भारत के नागरिक टर्की को पर्यटन के रूप में हर साल अरबों रुपये देते हैं, लेकिन इसके बावजूद टर्की भारत विरोधी प्रचार करता है। टर्की ने CAA और NRC जैसे भारत के आंतरिक कानूनों को मुस्लिम विरोधी बताकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत रूप में प्रस्तुत किया। यही नहीं, अज़रबैजान की सरकारी मीडिया और सरकारी बयान भी भारत के पक्ष में खड़े होने के बजाय भारत पर कटाक्ष करते नज़र आए हैं।
3. भारत विरोधी प्रचार और इस्लामोफोबिया का झूठा विमर्श
टर्की के धार्मिक संगठनों और सरकारी मीडिया ने भारत को इस्लामोफोबिक देश बताने की साजिश रची है। उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और NRC जैसे भारतीय कानूनों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गलत रूप में प्रस्तुत किया।
टर्की का यह कदम न केवल भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर नुकसान पहुंचाने वाला है, बल्कि इससे भारत के मुस्लिम समुदाय की भावना को भी चोट पहुँचती है। अज़रबैजान ने भी अपने सैन्य गठबंधन और मीडिया के माध्यम से भारत के खिलाफ अप्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रचार किया है।
भारत में धार्मिक विविधता को मजबूत बनाए रखने की बजाय, टर्की और अज़रबैजान जैसे देश इसे एक साजिश का रूप देने की कोशिश करते हैं, जो भारतीय सामाजिक समरसता पर भी हमला है।
4. भारत की सशक्त विदेश नीति: अब माफ़ नहीं करेगा
भारत अब 1990 का देश नहीं है, जो चुपचाप सहता रहे। अब भारत वैश्विक शक्ति बन चुका है जिसने QUAD, BRICS, SCO जैसे मंचों पर अपनी स्थिति मज़बूत की है। भारत ने फ्रांस, इज़राइल, वियतनाम जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाकर दिखा दिया है कि अब हम हर धोखे का जवाब दे सकते हैं।
भारत की विदेश नीति अब ‘Reactive’ नहीं बल्कि ‘Assertive’ हो चुकी है। भारत ने मालदीव, कनाडा और चीन को भी साफ़ संदेश दिए हैं कि अब सम्मान और साझेदारी एकतरफा नहीं चलेगी। ऐसे में टर्की और अज़रबैजान जैसी दोहरे मापदंड वाले देशों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना आवश्यक हो गया है।
अब भारत का प्रत्येक निर्णय वैश्विक संदर्भ में महत्व रखता है और भारत की रणनीति यह दिखा रही है कि अब वह केवल मित्रता नहीं, बल्कि गरिमा और राष्ट्रीय हितों को भी प्राथमिकता देता है।
5. जनता का राष्ट्रवादी रुख और डिजिटल प्रतिरोध
आज भारत का नागरिक अब राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखता है। Twitter, YouTube, Instagram पर #BoycottTurkey और #BoycottAzerbaijan जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। लोग अब टर्की के उत्पादों को न खरीदने, वहां पर्यटन न करने, और व्यापार न करने की बात कर रहे हैं।
यह जनमत अब सिर्फ डिजिटल नहीं बल्कि आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव डालने वाला है। यही समय है कि भारत सरकार इस भावना का सम्मान करते हुए अपने रुख को सख्त करे।
भारत में उपभोक्ताओं और युवाओं ने अब खुद आगे आकर टर्की और अज़रबैजान के विरोध में डिजिटल पिटिशन शुरू किए हैं। विभिन्न समाजसेवी संगठन भी इनके विरोध में जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहे हैं। यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक और कदम हो सकता है।
क्या कदम उठाने चाहिए भारत को?
- टर्की और अज़रबैजान से आयात पर नियंत्रण लगाया जाए।
- इन देशों के राजनयिक बयानों का सख्त जवाब दिया जाए।
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इनकी भारत विरोधी गतिविधियों का खुलासा किया जाए।
- भारत के उपभोक्ता संगठनों को इन उत्पादों के बहिष्कार के लिए जागरूक किया जाए।
- वैकल्पिक साझेदार जैसे सर्बिया, इज़राइल, वियतनाम आदि को प्राथमिकता दी जाए।
- सरकारी पर्यटन प्रोत्साहन सूची से इन देशों को हटाया जाए।
- भारत के निवेशकों को इन देशों में पूंजी निवेश से बचने की सलाह दी जाए।

भारत को अब फैसला लेना ही होगा
टर्की और अज़रबैजान जैसे देश जो मित्रता की भाषा नहीं समझते, उन्हें भारत को अब स्पष्ट संदेश देना होगा। बहिष्कार ही एकमात्र विकल्प नहीं, बल्कि यह भारत की संप्रभुता, आत्मसम्मान और राष्ट्रवाद की रक्षा के लिए एक अनिवार्य कदम है।
भारत को अपनी ताकत और प्रतिष्ठा का उपयोग करते हुए यह तय करना होगा कि कौन मित्र है और कौन सिर्फ अवसरवादी। अब वक़्त आ गया है कि टर्की और अज़रबैजान जैसे देशों को कड़ा सबक सिखाया जाए — कूटनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर।