Homeअंतरराष्ट्रीयस्किन कैंसर: सिर्फ़ धूप नहीं इन वजहों से भी हो सकता है,...

स्किन कैंसर: सिर्फ़ धूप नहीं इन वजहों से भी हो सकता है, ये हैं इनके लक्षण



इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, दुनिया भर में हर साल स्किन कैंसर के 15 लाख नए मामले सामने आते हैं….मेंमशहूर ब्रिटिश शेफ़ गॉर्डन रामसे ने हाल ही में जानकारी दी कि उन्होंने स्किन कैंसर का इलाज करवाया है. पिछले हफ़्ते उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर उन डॉक्टरों का धन्यवाद किया जिन्होंने उनके बेसल सेल कार्सिनोमा (एक तरह का नॉन मेलेनोमा कैंसर) को हटाया.इससे पहले ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेट कप्तान माइकल क्लार्क ने भी स्किन कैंसर की सर्जरी के बाद अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की. वो स्किन कैंसर को लेकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास भी कर रहे हैं.बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंदरअसल स्किन कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ दुनिया भर में हर साल स्किन कैंसर के 15 लाख नए मामले सामने आते हैं. साल 2040 तक इसकी तादाद क़रीब 50 फ़ीसदी बढ़ने की आशंका है.इस कहानी में हम जानेंगे कि स्किन कैंसर को शुरुआत में ही कैसे पहचाना जा सकता है और किन लोगों को इसका ख़तरा ज़्यादा होता है.स्किन कैंसर कि प्रमुख वजहइमेज स्रोत, Vishal Bhatnagar/NurPhoto via Getty Imagesइमेज कैप्शन, धूप का बहुत ज़्यादा एक्सपोज़र त्वचा को नुक़सान पहुंचाती हैदुनियाभर में स्किन कैंसर की सबसे प्रमुख वजह होती है सूरज से निकलने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें. सूरज की ये किरणें कार्सिनोजेनिक होती हैं. यानी इनमें कैंसर पैदा करने वाले तत्व होते हैं.दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डर्मेटोलॉजिस्ट प्रोफ़ेसर सोमेश गुप्ता कहते हैं, “स्किन कैंसर का ख़तरा उन लोगों को ज़्यादा होता है जो धूप में काम करते हैं. शरीर पर कई साल तक रोज़ लंबे समय तक धूप लगे तो कुछ लोगों में इसका ख़तरा हो सकता है.”धूप में काम करने का मतलब है कि खेत, खुले मैदान और अन्य जगहों पर काम करने वाले लोगों में यह ख़तरा ज़्यादा होता है.डॉक्टर सोमेश कहते हैं, “इसका ख़तरा गोरे लोगों में ज़्यादा होता है. क्योंकि काली त्वचा ऊपर ही धूप के ज़्यादा हिस्से को एब्ज़ॉर्ब (सोख) कर लेती है और यह अंदर तक नहीं पहुंच पाती है. इसलिए उत्तर भारत के मुक़ाबले दक्षिण भारत के लोगों में यह ख़तरा कम होता है, क्योंकि उनकी स्किन उत्तर भारत के लोगों की स्किन की तुलना में थोड़ी काली होती है.”अगर हमारी त्वचा को एक निश्चित मात्रा में सीमित अल्ट्रावायलेट किरणें मिलती हैं तो इसकी कोशिकाएं विटामिन डी पैदा करती हैं. ज़्यादा धूप में रहने पर हमारी त्वचा मेलानिन पैदा करती हैं. इस प्रक्रिया में ये ख़ुद को टैन (त्वचा का रंग गहरा होना) करके अपना बचाव करती है.क्रिकेटर माइकल क्लार्क के मामले में भी यह स्पष्ट दिखता है. वो लंबे समय से आउटडोर में खेले हैं और उनका रंग गोरा भी है.इसके अलावा जिन देशों के ऊपर आसमान में ओज़ोन की परत को सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ है, उनमें ऑस्ट्रेलिया प्रमुख है.ओज़ोन लेयर को नुक़सान का मतलब है कि सूरज की किरणों के साथ आने वाली अल्ट्रावायलेट (यूवी) किरणें फ़िल्टर नहीं हो पाती हैं और यह त्वचा को ज़्यादा नुक़सान पहुंचाती हैं.जिन लोगों की स्किन ज़्यादा संवेदनशील होती है उन्हें कांच की खिड़की से आने वाली धूप से भी नुक़सान का ख़तरा होता है.क्या हैं स्किन कैंसर के लक्षणइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, दुनियाभर में मेलेनोमा स्किन कैंसर के 80 फ़ीसदी मामलों की वजह सनबर्न यानी धूप से त्वचा का झुलसना है.स्किन कैंसर के लक्षण को पहचानना आसान नहीं होता है या यूं कहें कि जिन लोगों को यह बीमारी होती है, उनमें से कई शुरू में इन लक्षणों को लेकर लापरवाह दिखते हैं.शरीर का वह हिस्सा (जैसे चेहरा) जिस पर लगातार लंबे समय तक सीधी धूप पड़ रही हो वहां दानें दिखें या ज़ख़्म या अल्सर दिखाई दे तो फ़ौरन डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.एम्स के डर्मेटोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर कौशल वर्मा बताते हैं, “यह बीमारी हाई ऑल्टिट्यूड यानी पहाड़ों पर रहने वाले लोगों में भी होने का ज़्यादा ख़तरा होता है क्योंकि वो यूवी किरणों के ज़्यादा एक्सपोज़र में होते हैं. किसी समय कश्मीर में इस्तेमाल होने वाली कांगड़ी की वजह से भी वहां के लोगों को यह बीमारी ज़्यादा हो रही थी.”यानी केवल धूप ही नहीं जो लोग गर्मी (आग) के सामने लगातार रहते हैं उन्हें भी आम लोगों के मुक़ाबले स्किन कैंसर का ज़्यादा ख़तरा होता है.एम्स में भी देखा जाता है कि वहां स्किन कैंसर के जो मरीज़ आते हैं वो बीमारी के गंभीर हालत में पहुंचने के बाद आते हैं, क्योंकि शुरुआती स्टेज में लोग इसके लक्षणों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं.डॉक्टर कौशल वर्मा कहते हैं, “स्किन पर काले या भूरे रंग के धब्बे जैसे लक्षण दिखें तो फ़ौरन इसकी जांच करानी चाहिए.”ऐसे मरीज़ों का स्किन कैंसर फैलकर अक्सर नाक को पूरी तरह ख़राब कर चुका होता है या आंख के अंदर तक पहुंच चुका होता है.स्किन कैंसर कितना ख़तरनाकडॉक्टर कौशल वर्मा कहते हैं, “कैंसर की अन्य बीमारियों की तरह स्किन कैंसर भी बहुत आगे बढ़ जाए तो यह भी जानलेवा हो जाता है. अगर मरीज़ जल्दी डॉक्टर के पास पहुंच जाए और शुरुआती स्टेज में ही इलाज शुरू हो जाए तो मरीज़ को बचाना आसान होता है.”स्किन कैंसर मूल रूप से दो तरह के होते हैं. इनमें एक होता है- मेलेनोमा. इस तरह के कैंसर के मामले कम देखने को मिलते हैं. भारत के लिहाज़ से भी यह मामला काफ़ी दुर्लभ है. यानी इस तरह का कैंसर आमतौर पर भारत में लोगों को नहीं होता है.यह जानलेवा होता है. आमतौर पर शुरुआती स्टेज में जो मरीज़ मेलेनोमा कैंसर के साथ पहुंचते हैं उनमें से 90% का इलाज हो जाता है.लेकिन ऐसे मरीज़ अगर बीमारी के बाद के स्टेज में पहुंचें तो उनमें से 90% को बचा पाना मुश्किल हो जाता है.डॉक्टर सोमेश बताते हैं, “इसके अलावा एक होता है नॉन मेलेनोमा. इसी में एक होता है बेसल सेल कार्सिनोमा. यह ज़्यादा तेज़ी से फैलता नहीं है. जबकि दूसरा होता है स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा, जो ज़्यादा फैलता है और ज़्यादा ख़तरनाक होता है.”स्किन कैंसर का इलाजइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, स्किन कैंसर से बचने का सबसे अच्छा तरीक़ा है सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना.नोएडा के कैलाश हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट और डर्मेटोलॉजिस्ट डॉक्टर अंजू झा कहती हैं, “भारत स्किन कैंसर के मामले में टाइप 5 और टाइप 6 में आता है, जो कि कम ख़तरनाक है, जबकि गोरी त्वचा वाले लोग टाइप 1 और 2 में आते हैं.”उनका कहना है, “आमतौर पर स्किन कैंसर के लक्षणों में कोई दर्द, जलन या खुजली नहीं होती है इसलिए लोग इसकी अनदेखी कर देते हैं. अगर सूरज के डायरेक्ट एक्सपोज़र में आने वाले शरीर के किसी हिस्से पर कोई अल्सर (घाव) लंबे समय से भर नहीं रहा हो तो फ़ौरन डॉक्टर को दिखाना चाहिए.”अगर शुरू में ही यह पता चल जाए कि मरीज़ के स्किन में जो लक्षण हैं वो दरअसल ‘कैंसर’ की शुरुआत है तो इसका इलाज आसान हो जाता है. स्किन कैंसर के लिए मोह्स (MOHS) सर्जरी की जाती है.आम तौर पर ये माना जाता है कि सूरज की हानिकारक किरणों से बचाव के लिए सनस्क्रीन लगाना सबसे अच्छे तरीक़ों में से एक हो सकता है.दुनियाभर में मेलेनोमा स्किन कैंसर के 80 फ़ीसदी मामलों की वजह सनबर्न यानी धूप से त्वचा का झुलसना है.डॉक्टर अंजू झा के मुताबिक़, “स्किन कैंसर ज़्यादातर मामलों में जानलेवा नहीं होता है और सर्जरी या ऑपरेशन के ज़रिए इसके प्रभावित हिस्से को निकाल दिया जाता है, लेकिन इससे बचने का सबसे अच्छा तरीक़ा है सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना.”सनस्क्रीन न केवल सूरज की यूवी किरणों से शरीर को बचा सकता है और गंभीर बीमारियों को दूर रख सकता है बल्कि यह एजिंग यानी उम्र के साथ त्वचा पर हो रहे असर को भी धीमा कर सकता है.लेकिन सनस्क्रीन कैसे और कब लगाया जाए, इस बारे में आम लोगों के बीच सही और सटीक जानकारी का अभाव है.डॉक्टर सोमेश बताते हैं, “सनस्क्रीन घर से बाहर निकलने से क़रीब 30 मिनट पहले लगाना चाहिए, क्योंकि यह फ़ौरन काम नहीं करता है. इसके साथ ही दिनभर में कम से कम 2 यान 3 बार इसका इस्तेमाल ज़रूरी है क्योंकि यह क़रीब 4 घंटे तक ही काम करता है.”बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments