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‘विक्रम’ बनाम दुनिया की चिप्स: सेमीकंडक्टर बाज़ार में भारत की राह कितनी मुश्किल?



इमेज स्रोत, @AshwiniVaishnawइमेज कैप्शन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वदेशी ‘विक्रम’ चिप भेंट की गई….मेंआज हम जिस डिजिटल दुनिया में जी रहे हैं, उसकी धड़कन सेमीकंडक्टर चिप्स हैं. मोबाइल फोन से लेकर इंटरनेट, कारों से लेकर मिसाइल और अंतरिक्ष यानों तक हर एडवांस तकनीक का दिमाग यही सेमीकंडक्टर चिप्स हैं.अगर ये सेमीकंडक्टर चिप्स नहीं होंगी तो हमारी स्मार्ट जिंदगी क्षण भर में ब्लैकआउट हो जाएगी. यही वजह है कि इसे डिजिटल दुनिया का ‘सोना’ भी कहा जाता है.बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंदुनिया भर में देशों के बीच इस सेमीकंडक्टर चिप्स की मार्केट पर कब्ज़ा करने की होड़ मची है.’विक्रम’ 32 बिट प्रोसेसर और चार सेमीकंडक्टर टेस्ट चिप्स बनाकर भारत ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है.मंगलवार, 2 सितंबर को केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स व आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इन चिप्स को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा.क्या है ‘विक्रम 32’?भारत की पहली पूरी तरह से स्वदेशी 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर चिप का अनावरण सेमीकॉन इंडिया 2025 में किया गया.यह प्रोसेसर एक बार में 32 बिट्स डेटा प्रोसेस कर सकता है. यह ऐसी माइक्रोप्रोसेसर चिप है, जो बड़े-बड़े डेटा को प्रोसेस करने से लेकर कंट्रोल सिस्टम को चलाने में मददगार साबित होगी.यह चिप अंतरिक्ष और रक्षा जैसे क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है. इसे इसरो के सेमीकंडक्टर लेबोरेटरी में बनाया गया है.रॉकेट लॉन्च की मुश्किल परिस्थितियों जैसे कि बहुत अधिक गर्मी, ठंड, कंपन और दबाव को ध्यान में रखकर इसे बनाया गया है.यह पहले से तैयार स्वदेशी 16 बिट विक्रम 1601 का एडवांस वर्जन है. इसे इसरो के लॉन्च व्हीकल्स के एवियोनिक्स सिस्टम में इस्तेमाल किया गया था.खास बात यह है कि इस माइक्रोप्रोसेसर चिप को बनाने के लिए सभी सॉफ्टवेयर टूल्स भारत ने खुद विकसित किए हैं.पायलट चिप्स कौन-कौन सी थीं?इमेज स्रोत, @AshwiniVaishnawइमेज कैप्शन, सेमीकॉन इंडिया भारत सरकार की एक बड़ी पहल है, जिसका मकसद देश को सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग का हब बनाना है.विक्रम 32 बिट प्रोसेसर के साथ चार सेमीकंडक्टर चिप्स भी पीएम मोदी को भेंट की गईं.वीएलएसआई सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. सत्य गुप्ता का कहना है कि विक्रम 32 के अलावा जो चिप्स दी गईं, वो अभी पायलट चिप्स हैं.उनका कहना है, “पायलट चिप को प्रोडक्शन में आने में एक से दो साल का समय लग सकता है. ये सभी मेक इन इंडिया चिप्स हैं, जो हमारे लिए गर्व की बात है.”वीएलएसआई एक पेशेवर संगठन है. यह भारत में सेमीकंडक्टर डिज़ाइन से जुड़े शोध, शिक्षा और बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए काम करता है.टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक पीएम मोदी के सामने जो पायलट चिप्स पेश की गईं, उनमें से दो को एनआईटी राउरकेला ने विकसित किया है.उनके मुताबिक इन चिप्स का इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवा, ई-पेमेंट, बायोमेडिकल सिस्टम और ऊर्जा संग्रह के लिए किया जाएगा.वहीं एक अन्य खास सेमीकंडक्टर चिप ओडिशा के परला महाराजा इंजीनियरिंग कॉलेज ने बनाई है. जानकारों के मुताबिक इसका इस्तेमाल फेस रिकग्निशन सिस्टम को मजबूत करने के लिए किया जाएगा.सेमीकंडक्टर चिप एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक पुर्जा होती है जो आमतौर पर सिलिकॉन से बनी होती है.दिल्ली विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक विज्ञान विभाग की प्रोफेसर मृदुला गुप्ता सेमीकंडक्टर चिप्स को आसान भाषा में समझाते हुए कहती हैं, “सबसे पहले एक वेफर तैयार किया जाता है, जिसमें लाखों ट्रांजिस्टर बनाए जाते हैं. इन ट्रांजिस्टरों को जोड़कर एक सर्किट तैयार होता है. जब पूरा सर्किट बन जाता है, तो उससे एक प्रोसेसर चिप निकलती है.”चिप में ट्रांजिस्टर बहुत छोटे स्विच की तरह काम करते हैं, जो बिजली को रोकते और आगे बढ़ाते हैं. इन ट्रांजिस्टरों की मदद से चिप कैलकुलेशन और डेटा स्टोर करती है.दुनिया में सेमीकंडक्टर का बाज़ारइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, सेमीकंडक्टर चिप का इस्तेमाल मोबाइल फोन, कंप्यूटर, लैपटॉप, कार, इलेक्ट्रिक वाहन, टीवी, वॉशिंग मशीन से लेकर इंटरनेट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे सिस्टम तक में होता है. डॉ. सत्य गुप्ता के मुताबिक ग्लोबल सेमीकंडक्टर बाज़ार करीब 600 अरब डॉलर (करीब 52 लाख करोड़) का है.वे कहते हैं, “2030 तक इस बाजार के एक ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 80 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है. फ़िलहाल दुनिया में कहीं भी सेमीकंडक्टर चिप बन रही है, उसमें भारतीय इंजीनियर्स का कुछ ना कुछ योगदान ज़रूर होता है.”उनका कहना है, “ग्लोबल डिज़ाइन सेंटर में बड़ी तादात में आपको भारतीय इंजीनियर मिलेंगे. अभी तक हम ग्लोबल कंपनियों के लिए काम कर रहे थे, लेकिन अब मैन्युफैक्चरिंग और डिज़ाइन हमारे होंगे और हम इस ग्लोबल मार्केट को टैप कर पाएंगे.”वहीं प्रोफेसर मृदुला गुप्ता का कहना है कि भारत सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने के काम पर लग गया है और कुछ ही सालों में इसका बड़ा असर दिखाई देने लगेगा.जानकारों के मुताबिक भारत में इस वक्त सेमीकंडक्टर का बाज़ार करीब दो लाख करोड़ का है, जो 2030 तक बढ़कर करीब 5 लाख करोड़ को पार कर जाएगा.फ़िलहाल ताइवान दुनिया के करीब 60 प्रतिशत चिप्स पका फैब्रिकेशन करता है, वहीं दक्षिण कोरिया की कंपनियां ‘मेमरी चिप्स’ में आगे हैं.डिज़ाइन और इनोवेशन के मामले में अमेरिका का दबदबा है और चीन तेजी से बड़े पैमाने पर सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन कर रहा है.इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट के एक बड़े उपभोक्ता देश के तौर पर भारत, माइक्रोचिप के लिए विदेशों पर निर्भर है. देश में पेट्रोल और गोल्ड के बाद सबसे ज्यादा आयात इलेक्ट्रॉनिक्स का होता है और इसमें सबसे अहम सेमीकंडक्टर चिप्स हैं.क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022-23 में भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स आयात, कुल आयात का करीब 10 प्रतिशत था, जो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर एक बड़ा बोझ है.भारत के सामने चुनौतियांइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, जानकारों के मुताबिक सेमीकंडक्टर चिप बनाने के लिए 150 से अधिक रसायनों की जरूरत पड़ती है. सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने के लिए डिजाइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग, टेस्टिंग और पैकेजिंग जैसी सभी चीजों की जरूरत है.जानकारों के मुताबिक सेमीकंडक्टर चिप बनाने के लिए 150 से अधिक रसायनों और 30 से अधिक प्रकार की गैसों और खनिजों का इस्तेमाल होता है. ये सभी चीजें कुछ ही देशों में उपलब्ध हैं इन्हें घरेलु स्तर पर उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती है.डॉ. सत्य गुप्ता के मुताबिक भारत के पास चिप डिजाइनिंग का अच्छा अनुभव है और फिलहाल यह काम बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में हो रहा है.वे कहते हैं, “भारत को एक बैलेंस इकोसिस्टम की ज़रूरत है. हमें 25 से 30 सालों का रोड मैप लेकर चलना होगा. मेरे हिसाब से 75 प्रतिशत इंसेंटिव मैन्युफैक्चरिंग में, 30 प्रतिशत प्रोडक्ट में और 5 प्रतिशत टैलेंट और रिसर्च में खर्च करने की जरूरत है.”उनका कहना है, “इसके अलावा यह तय करना होगा कि पहले पांच साल में हमें क्या चाहिए, फिर अगले दस साल में क्या चाहिए. तभी भारत सेमीकंडक्टर की दुनिया में एक बड़ी लकीर खींच सकता है.”वे कहते हैं, “साल 2021 में भारत सरकार ने करीब 75 हजार करोड़ की लागत से एक बड़ा कार्यक्रम शुरू किया, जिसे इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन कहते हैं. आज आप जो देख रहे हैं, वह इसी की वजह से संभव हो पा रहा है.”इस मिशन का मकसद भारत में सेमीकंडक्टर चिप्स बनाने के लिए एक मजबूत माहौल तैयार करना है. इसके तहत उन कंपनियों को आर्थिक मदद दी जाती है जो सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में निवेश करना चाहती हैं.उनका कहना है, “भारत पीएलआई स्कीम के तहत सेमीकंडक्टर सेक्टर के लिए 50 प्रतिशत तक, वहीं राज्य सरकारें 20 प्रतिशत तक, यानी कुल मिलाकर करीब 70 प्रतिशत तक इंसेंटिव दे रहे हैं. इससे निवेशकों को काफी फायदा मिल रहा है.”ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देश को सेमीकंडक्टर के बाजार में दबदबा कायम करने में कई दशक लगे. ऐसे में भारत के लिए भी यह किसी मैराथन से कम नहीं है.जानकारों का मानना है कि अगर भारत की रणनीति मजबूत रही तो आने वाले एक दशक में भारत सेमीकंडक्टर की मार्केट में अहम खिलाड़ी बन सकता है.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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