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लादेन के मारे जाने के बाद जब पाकिस्तानी राष्ट्रपति भवन से लेकर सेना हेडक्वॉर्टर तक मची अफ़रा-तफ़री



इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, अमेरिका के मरीन कमांडो ने पाकिस्तान के एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार दिया था….मेंइस कहानी को कई किताबों, लेखों और फ़िल्मों के ज़रिए कई बार बताया जा चुका है कि किस तरह अमेरिकी सैनिकों ने 2 मई, 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मारा था.ओसामा के मारे जाने के तुरंत बाद पाकिस्तान में सत्ता के गलियारों में क्या चल रहा था, उस पर बहुत कम चर्चा हुई है.हाल ही में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी के प्रवक्ता रहे फ़रहतउल्लाह बाबर की एक किताब प्रकाशित हुई है ‘द ज़रदारी प्रेसिडेंसी, नाउ इट मस्ट बी टोल्ड’ जिसमें उन्होंने उन दिनों का सिलसिलेवार ब्योरा दिया है.2 मई, 2011 की सुबह साढ़े छह बजे राष्ट्रपति ज़रदारी के एडीसी ने फ़रहतउल्लाह बाबर को फ़ोन करके कहा कि वो एक महत्वपूर्ण बैठक के लिए तुरंत एवान-ए-सदर यानी राष्ट्रपति भवन पहुंचें.बाबर लिखते हैं, “राष्ट्रपति अमूमन दोपहर को दफ़्तर पहुंचते थे. मुझे इतनी सुबह बुलाया जाना थोड़ा अजीब था. मुझे अंदाज़ा तो हो गया था कि कहीं कुछ गड़बड़ हुई है लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि क्या और कहाँ ? मैंने विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार और विदेश सचिव सलमान बशीर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन मुझे कामयाबी नहीं मिली.”इसी बीच बाबर के मोबाइल पर कराची से एक पत्रकार मज़हर अब्बास का फ़ोन आया.फ़रतउल्लाह लिखते हैं कि मज़हर अब्बास ने फ़ोन पर कहा, “‘बाबर साहब, मेरा ख़्याल है अमरीकियों को पता लग गया था कि ओसामा एबटाबाद में छिपा है.’ जैसे ही मैंने ये शब्द सुने मुझे पहली बार अंदाज़ा हुआ कि इतनी सुबह ये बैठक किस लिए बुलाई गई है.”इमेज स्रोत, RUPA PUBLICATIONइमेज कैप्शन, फ़रहतउल्लाह बाबर की किताब ‘द ज़रदारी प्रेसिडेंसी, नाउ इट मस्ट बी टोल्ड’सबसे पहले किसे पता चला?बाद में फ़रहतउल्लाह बाबर को पता चला कि राष्ट्रपति के एडीसी स्क्वाड्रन लीडर जलाल राष्ट्रपति भवन से लौटने के बाद जगे हुए थे. रात ढाई बजे उनको पता चला कि थोड़ी देर पहले एबटाबाद के पास एक हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ है. पाकिस्तानी वायु सेना के पायलट होने के नाते उनके मन में कई सवाल उठे. पहला ये कि एबटाबाद जैसे पहाड़ी इलाके़ में इतनी रात गए हेलिकॉप्टर क्यों उड़ रहा था? दूसरा वायुसेना में रहने के कारण उन्हें पता था कि पाकिस्तानी पायलटों के रात में हेलिकॉप्टर उड़ाने की मनाही थी.उन्होंने अपने-आप से सवाल किया कि अगर यह पाकिस्तानी हेलिकॉप्टर नहीं था तो ये हेलिकॉप्टर किसका था? इसी उधेड़बुन में वो दोबारा अपने दफ़्तर चले गए. उस समय रात के तीन बज रहे थे. उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना में अपने संपर्कों को फ़ोन मिलाने शुरू कर दिए.राष्ट्रपति के स्टाफ़ में वह पहले व्यक्ति थे जिन्हें पता लगा कि वास्तव में हुआ क्या था.इमेज स्रोत, Getty Imagesकयानी हुए राष्ट्रपति भवन के लिए रवानालेकिन तब भी उन्होंने ये ख़बर राष्ट्रपति ज़रदारी को नहीं बताई. उन्हें पता था कि थोड़ी देर में राष्ट्रपति भवन की हॉटलाइन की घंटी बजने लगेगी. वह सही थे. उनके दफ़्तर की घंटी बजी. आर्मी हाउस का ऑपरेटर लाइन पर था. उसने सूचना दी कि राष्ट्रपति को बता दिया जाए कि सेनाध्यक्ष जनरल अशफ़ाक़ कयानी राष्ट्रपति भवन के लिए निकल चुके हैं. इससे पहले कयानी सीधी हॉटलाइन पर ज़रदारी से बात कर चुके थे.फ़रहतउल्लाह बाबर लिखते हैं, “जब मैं सुबह सात बजे राष्ट्रपति भवन पहुंचा तो उनके एडीसी जलाल के अलावा राष्ट्रपति का कोई भी स्टाफ़ वहाँ मौजूद नहीं था. वहाँ मौजूद गार्ड्स और सहायकों के फुसफुसा कर बात करने से अंदाज़ा हुआ कि कहीं कुछ असामान्य हुआ है. वहीं मुझे पता चला कि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ज़रदारी से फ़ोन पर बात कर चुके हैं.”इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामाओबामा का ज़रदारी को फ़ोनओबामा ने इस फ़ोन कॉल का विवरण देते हुए अपनी आत्मकथा ‘अ प्रोमिस्ड लैंड’ में लिखा, “मेरे लिए सबसे मुश्किल काम था पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी को फ़ोन करना.””मुझे पता था कि पाकिस्तानी वायु सीमा के उल्लंघन के लिए उन्हें अपने देश में काफ़ी खरी-खोटी सुननी पड़ेगी लेकिन जब मैंने उन्हें फ़ोन किया तो उन्होंने मुझे बधाई दी और अपना समर्थन दिया.””उन्होंने कहा, ‘इसका जो भी परिणाम हो, लेकिन ये एक अच्छी ख़बर है.’ वो ये याद करके थोड़े भावुक हो गए कि उनकी पत्नी बेनज़ीर भुट्टो को उन चरमपंथियों ने मारा था जिनके अलक़ायदा से संबंध थे.”इमेज स्रोत, Vikingइमेज कैप्शन, ओबामा की आत्मकथा ‘अ प्रोमिस्ड लैंड’एडमिरल मलेन ने कयानी को फ़ोन मिलायाओबामा को ज़रदारी के फ़ोन से पहले तीन बजे सुबह एडमिरल माइक मलेन पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल कयानी को फ़ोन मिला चुके थे. उन्होंने कयानी को ख़बर दी कि अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के ठिकाने पर कार्रवाई की है.इसके तुरंत बाद एबटाबाद में आईएसआई के एक कर्नल ने अपने बॉस जनरल पाशा को फ़ोन कर इस ख़बर की पुष्टि कर दी थी.सीआईए के पूर्व प्रमुख लिओन पनेटा अपनी आत्मकथा ‘वर्दी फ़ाइट्स’ में लिखते हैं, “ख़बर सुनते ही कयानी का पहला वाक्य था, ‘अच्छा हुआ आपने उसे गिरफ़्तार कर लिया.’ मलेन ने कहा, ‘लादेन मर चुका है.’ इसको सुनकर और ये जानकर कि लादेन एबटाबाद के उस घर में पिछले पाँच सालों से रह रहा था, कयानी थोड़े अचंभे में आ गए.”ख़ैबर पख़्तूनख्वाह के पुलिस महानिरीक्षक से कहा गया कि वो इस मामले से अपने-आप को अलग रखें क्योंकि आईएसआई इस पूरे मामले पर नज़र रख रही है.इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, एडमिरल माइक मलेन ने जनरल कयानी को फ़ोन कर लादेन के मारे जाने की सूचना दी थीसीआईए प्रमुख की आईएसआई प्रमुख से बातचीतमलेन के फ़ोन के बाद राष्ट्रपति ओबामा ने राष्ट्रपति ज़रदारी और अफ़ग़ान राष्ट्रपति हामिद करज़ई को फ़ोन मिलाया. पनेटा ने भी आईएसआई के प्रमुख अहमद शुजा पाशा को उसी तरह का फ़ोन किया.पनेटा लिखते हैं, “तब तक पाशा को अपने सूत्रों से इसकी ख़बर लग गई थी. मैंने उनसे कहा, हमने जानबूझ कर आपकी एजेंसी को अपने अभियान से दूर रखा है ताकि आप पर हमारे साथ सहयोग करने का आरोप न लग सके.” “उन्होंने बहुत निराशा भरे स्वर में जवाब दिया, ‘हमारे लिए कहने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं है. हमें खुशी है कि लादेन आपके हाथ लग गया.’ हमें पता था कि अब हमारे दोनों देशों की दोस्ती में पहले जैसी बात नहीं रहेगी और हमारे संबंधों में तनाव आएगा लेकिन इस तरह के अभियान के लिए हमें ये क़ीमत तो चुकानी ही थी.”पाकिस्तानी समयानुसार सुबह 8 बजकर 35 मिनट पर राष्ट्रपति ओबामा टेलीविज़न पर लाइव आ गए. उन्होंने ये कहकर पाकिस्तान को थोड़ा मरहम लगाने की कोशिश की कि ‘हमें उम्मीद है कि अलक़ायदा के साथ लड़ाई में पाकिस्तान हमारा साथ देना जारी रखेगा.’इंटर-सर्विसेज़ पब्लिक रिलेशंस के प्रमुख जनरल अतहर अब्बास ने कयानी और पाशा से एक बयान जारी करने की अनुमति माँगी लेकिन उन्हें ये अनुमति नहीं दी गई.इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल कयानीपाकिस्तान के चोटी के नेताओं की बैठकउधर फ़रहतउल्लाह बाबर के राष्ट्रपति भवन पहुंचने के कुछ मिनटों के अंदर प्रधानमंत्री, विदेश सचिव और आईएसआई के प्रमुख भी वहाँ पहुंच गए थे. विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार थोड़ी देर से आईं क्योंकि वो विदेश यात्रा से कुछ ही समय पहले लौटी थीं.कॉन्फ़्रेंस रूम में होने वाली बैठक 90 मिनट तक चली. बाबर लिखते हैं, “राष्ट्रपति ज़रदारी ने मुझे एक तरफ़ ले जाकर पूछा, ‘तुम इस बारे में क्या सोचते हो?’ मैंने बिना झिझक के जवाब दिया, ‘या तो ये मिलीभगत है या नालायकी. इसकी तुरंत जाँच कराई जानी चाहिए. ये भी दिखना चाहिए कि सेना और आईएसआई प्रमुख के ख़िलाफ़ कुछ कार्रवाई की गई है.”ज़रदारी ने इसे सुना भर लेकिन उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा. फिर वो कुछ सोच कर बोले, “हम इसके बारे में बाद में बात करेंगे.”इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, घटना के 14 घंटे के बाद पहली सरकारी प्रतिक्रिया आई थीपाकिस्तानी प्रशासन की चुप्पीपाकिस्तान और विदेश का मीडिया इस पूरे प्रकरण पर पाकिस्तानी सरकार की प्रतिक्रिया चाहता था लेकिन सरकार में इस तरह की अफ़रातफ़री और भ्रम की स्थिति थी कि सरकार का कोई भी अंग एक शब्द भी कहने के लिए तैयार नहीं था.हर जगह सदमे, ऊहापोह और शिथिलता का माहौल था.फ़रहतउल्लाह बाबर लिखते हैं, “घटना के 14 घंटे बाद पहली सरकारी प्रतिक्रिया आई. इसमें कहा गया, ‘हमारी कई ख़ुफ़िया एजेंसियों के साथ खुफ़िया सूचनाएं साझा करने की बहुत असरदार व्यवस्था है. उसमें अमेरिका भी शामिल है.’ पाकिस्तान बहुत ही शर्मसार कर देने वाली स्थिति में था.” “वो न तो अभियान की सफलता का दावा कर सकता था और न ही अपनी ख़ुफ़िया नाकामी और सेना के तैयार न होने की बात खुले तौर पर स्वीकार कर सकता था. साफ़ था कि पूरा प्रशासन उलझन और अनिर्णय की स्थिति में फंसा हुआ था और अँधेरे में तीर चला रहा था.”इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, राष्ट्रपति ज़रदारी के तत्कालीन प्रवक्ता फ़रहतउल्लाह बाबरसेना और ख़ुफ़िया एजेंसियों को बचाने की कोशिशबाबर लिखते हैं, “अब जब अमेरिका ने पाकिस्तान को बिना बताए गुप्त रूप से पाकिस्तान के अंदर घुस कर उसे मार दिया था, तो पाकिस्तान की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ में ये संकेत देना कि अमेरिका के साथ खुफ़िया जानकारी देने की वजह से ऐसा हुआ है, खोखला और अविश्वसनीय लगता. झूठ के पुलिंदे की पोल खुल जाने के बाद लोग इस पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थे.”खुफ़िया और सैनिक नेतृत्व ऐसी परिस्थिति में पहुंच गया था जहाँ उस पर इस पूरे मामले में सह अपराधी या नाकाबिल होने का आरोप आसानी से लगाया जा सकता था.कुछ रिटायर्ड जनरलों ने बाद में इस मामले को ये कहकर नया मोड़ देने की कोशिश की कि पाकिस्तानी सेना के चोटी के नेतृत्व को इस अभियान के बारे में पहले से जानकारी थी. वो पाकिस्तानी सेना के अपमानित होने की बात हज़म करने के लिए तैयार नहीं थे.उन्होंने यहाँ तक दावा करने की कोशिश की कि सेना के चोटी के नेतृत्व ने इस अभियान में अमेरिका के साथ सहयोग किया लेकिन इसे मानने वाले लोग बहुत कम थे.इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, ओसामा बिन लादेन को मारने के ऑपरेशन को देखते बराक ओबामा और अमेरिकी अधिकारीपाकिस्तानी सेना की छवि हुई ख़राबतत्कालीन अमेरिकी रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स ने भी अपनी आत्मकथा ‘ड्यूटी’ में लिखा, “इस पूरे प्रकरण में पाकिस्तानी सेना को सबसे अधिक शर्मसार होना पड़ा जिस तरह हमने पाकिस्तान की सीमा के 150 मील अंदर जाकर उनकी सैनिक छावनी के बीचोंबीच इस अभियान को अंजाम दिया और इससे पहले कि उनकी सेना को इसकी भनक लग पाती हम सुरक्षित बाहर भी निकल गए, उनकी छवि पर बहुत बड़ा दाग़ लगाने के लिए काफ़ी था.”बाद में पाकिस्तान ने जो जाँच बैठाई उसका ज़ोर इस बात पर नहीं था कि किस तरह दुनिया का सबसे बड़ा चरमपंथी पाँच सालों तक बिना किसी रोक-टोक के पाकिस्तान में रह सका बल्कि इस बात पर था कि पाकिस्तान में किन लोगों ने इस अभियान में अमेरिका की मदद की है.इमेज स्रोत, WH ALLENइमेज कैप्शन, पूर्व अमेरिकी रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स की आत्मकथा ‘ड्यूटी’ज़रदारी ने वॉशिंगटन पोस्ट में लिखा लेख2 मई का दिन समाप्त होते होते ये फ़ैसला ले लिया गया था कि इस पूरे प्रकरण में आईएसआई और सैनिक नेतृत्व की भूमिका का बचाव किया जाएगा. इसका पहला संकेत तब आया जब वॉशिंगटन पोस्ट में ‘पाकिस्तान डिड इट्स पार्ट’ शीर्षक से राष्ट्रपति ज़रदारी का एक लेख छपा.ज़रदारी ने लिखा, “हालांकि रविवार को किया गया अभियान अमेरिका और पाकिस्तान का संयुक्त अभियान नहीं था लेकिन दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे सहयोग और साझेदारी की वजह से ही ओसामा बिन लादेन का अंत हो सका है.” “पाकिस्तान में हम इस बात पर संतोष कर सकते हैं कि शुरुआत में ही अलक़ायदा के संदेशवाहक की पहचान कर लेने की वजह से हमें ये दिन देखना पड़ा है. आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई जितनी अमेरिका की है उतनी पाकिस्तान की भी है.”फ़रहतउल्लाह बाबर का मानना है कि इस लेख की कोई ज़रूरत नहीं थी. वो लिखते हैं, “इस बात पर संतोष व्यक्त करना और पाकिस्तान की ज़मीन पर बिना उसकी अनुमति के सैनिक अभियान का श्रेय लेना इस लेख के लेखक को शोभा नहीं देता. ये लेख उस चीज़ का बचाव कर रहा था जिसका बचाव किया ही नहीं जा सकता था.”बाबर ने लिखा, “मैंने अपने लॉबिइस्ट को ई-मेल भेजकर कहा था, ‘काश इतने संवेदनशील विषय पर एक अमेरिकी अख़बार में राष्ट्रपति ज़रदारी के नाम से लिखे लेख को छपवाने से पहले आपस में कुछ सलाह मशविरा कर लिया गया होता’.”इस लेख से यही लगा कि राष्ट्रपति अमेरिकी जनमत को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं वो भी अपने देश के जनमत के ख़िलाफ़ जाकर. लॉबीइस्ट ने इस ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया.इमेज स्रोत, Getty Imagesख़ुफ़िया एजेंसियों की नाकामी छिपाने की कोशिशओसामा बिन लादेन ऑपरेशन के बाद राष्ट्रपति ज़रदारी को आईएसआई और सेना की जवाबदेही तय करने का अच्छा मौका मिला था लेकिन इस संभावना पर विचार तक करने के लिए तैयार नहीं थे.’वॉशिंगटन पोस्ट’ में ज़रदारी के लिखे लेख में आत्मनिरीक्षण तो दूर देश की ख़ुफ़िया एजेंसियों की जवाबदेही पर एक शब्द भी नहीं था. ऑपरेशन के तीन दिन बाद 5 मई को विदेश सचिव ने पहली बार एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि इस पूरे प्रकरण की समीक्षा की जाएगी लेकिन इसकी कोई जाँच नहीं होगी. न सिर्फ़ जाँच की संभावना से इनकार किया गया बल्कि ख़ुफ़िया एजेंसियों की नाकामी को ये कह कर छिपाने की कोशिश की गई कि इस तरह की नाकामी असमामान्य बात नहीं है.इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश सचिव सलमान बशीरपाकिस्तान से जान-बूझकर छिपाया गया ऑपरेशन का विवरणसीआईए के प्रमुख लियोन पनेटा ने 3 मई को टाइम पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा, “अमेरिका ने पाकिस्तान को लादेन के छिपने की जगह के बारे में जान-बूझकर इसलिए सूचित नहीं किया क्योंकि उसे उस पर विश्वास नहीं था. उसका पुराना अनुभव बताता था कि जब भी इस्लामाबाद को पहले से किसी आतंकवादी के बारे में सूचना दी गई, उन्होंने उसे ही आगाह कर दिया. ये विश्वास करने लायक बात नहीं है कि लादेन के एबटाबाद के घर के बारे में पाकिस्तान में किसी को पता नहीं था.”जनरल कयानी को पनेटा की ये साफ़गोई पसंद नहीं आई थी. जब सीनेट फ़ॉरेन रिलेशन कमेटी के प्रमुख सीनेटर जॉन केरी पाकिस्तान की यात्रा पर आए थे तो कयानी चाहते थे कि दोनों देशों के संयुक्त बयान में कहा जाए कि अमेरिका को पाकिस्तान पर विश्वास था.अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत हुसैन हक्कानी ने सलाह दी कि संयुक्त बयान में कहा जाए कि ओसामा बिन लादेन के ऑपरेशन को सुरक्षा के कारण पाकिस्तान से छिपा कर रखा गया न कि पाकिस्तान पर अविश्वास की वजह से, लेकिन केरी सिर्फ़ इतना कहने के लिए राज़ी हुए कि ओसामा ऑपरेशन को ओबामा प्रशासन के कई महत्वपूर्ण लोगों से भी छिपा कर रखा गया था.इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, सीनेटर जॉन कैरीसुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बना एबटाबाद कमीशनपाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने ओसामा बिन लादेन की मौत की जाँच के लिए जस्टिस जावेद इक़बाल के नेतृत्व में एक न्यायिक आयोग गठित करने का आदेश दिया. इसको एबटाबाद कमीशन का नाम दिया गया.पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष ने इस कमीशन के सामने उपस्थित होने से इनकार कर दिया. सिर्फ़ आईएसआई के प्रमुख जनरल पाशा इसके सामने पेश हुए. उन्होंने ओसामा को न पकड़ पाने का आरोप पाकिस्तान की फ़ेडरल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी, मिलेट्री इंटेलिजेंस और इंटेलिजेंस ब्यूरो पर मढ़ा.उन्होंने स्पेशल ब्राँच को भी इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया. स्पेशल ब्राँच को महत्वपूर्ण व्यक्तियों की यात्रा के समय एबटाबाद में पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी के आसपास के इलाके की निगरानी की ज़िम्मेदारी दी गई थी.कैथी स्कॉट क्लार्क और एड्रियान लेवी अपनी किताब ‘द एक्साइल’ में लिखते हैं, “जब एबटाबाद आयोग ने जनरल पाशा से पूछा कि अमेरिका के एबटाबाद रेड में अकेले जाने के बारे में आप क्या सोचते हैं तो पाशा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया था, ‘राष्ट्रपति ओबामा नहीं चाहते थे कि आईएसआई को लादेन को ढूंढने का श्रेय मिले.’ 4 जनवरी,2013 को ये रिपोर्ट पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को सौंप दी गई.”इमेज स्रोत, APइमेज कैप्शन, आईएसआई के तत्कालीन प्रमुख जनरल पाशारिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गईएबटाबाद कमीशन की रिपोर्ट को टॉप सीक्रेट रिपोर्ट की संज्ञा दी गई थी. आयोग के एक सदस्य अशरफ़ जहांगीर काज़ी ने जो भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रह चुके थे, अपनी अंतिम टिप्पणी में कहा था, “हमें इस बात की आशंका है कि इस रिपोर्ट की अनदेखी की जाएगी और इसे दबा दिया जाएगा. हम सरकार से अपील करते हैं कि इसे सार्वजनिक किया जाए.”इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, एबटाबाद कमीशन के सदस्य अशरफ़ जहांगीर काज़ीलेकिन कई अनुरोध के बावजूद इस रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं किया गया लेकिन इस रिपोर्ट की एक प्रति को अल जज़ीरा पर लीक कर दिया गया. लेकिन इसके प्रकाशित होने के कुछ मिनटों के अंदर पाकिस्तान में अल जज़ीरा की वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया गया.लीक हुई रिपोर्ट में दावा किया गया कि इसमें आईएसआई और सेना की भूमिका की तीखी आलोचना की गई थी. एबटाबाद कमीशन में गवाही देने के बाद जनरल पाशा ने ओसामा बिन लादेन प्रकरण पर कभी सार्वजनिक रूप से बात नहीं की.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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