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मैथ्स को देखते ही कुछ लोग क्यों कहते हैं ‘हमसे ना हो पाएगा’



इमेज स्रोत, Getty Images….मेंएक किसान के पास तीन तरह के जानवर हैं. उसके सभी जानवर भेड़ हैं सिवाय तीन के. सभी बकरियां हैं, सिवाय चार के. और सभी घोड़े हैं, सिवाय पांच के. किसान के पास इनमें हर तरह के कितने जानवर हैं.अगर यह पहेली आपको उलझा गई, तो आप अकेले नहीं हैं.इसका जवाब है एक घोड़ा, दो बकरियां और तीन भेड़ें.तो फिर ऐसा क्यों लगता है कि कुछ लोगों के लिए गणित बहुत आसान होती है, जबकि कुछ लोग हमेशा इसमें जूझते रहते हैं?हालांकि इसमें जीन (वंशानुगत गुण) की भूमिका हो सकती है, लेकिन यह बहुत बड़ी पहेली का सिर्फ़ एक हिस्सा है.इसमें जीव विज्ञान, मनोविज्ञान और परिवेश या माहौल का जटिल मेल होता है.जुड़वां बच्चों पर अध्ययनइमेज स्रोत, Peter Byrne/PAइमेज कैप्शन, लोगों की गणितीय क्षमता में अंतर होता है और इसके कुछ कारण होते हैं. गोल्डस्मिथ्स यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन की प्रोफ़ेसर यूलिया कोवास एक जनेटिसिस्ट (आनुवांशिकी विशेषज्ञ) और मनोवैज्ञानिक हैं, जो इस बात का अध्ययन करती हैं कि लोगों की गणितीय क्षमता में अंतर क्यों होता है.उन्होंने लगभग 10,000 जोड़ी समान और असमान जुड़वां बच्चों पर एक बड़े पैमाने का अध्ययन किया, ताकि यह समझा जा सके कि आनुवंशिक और माहौल या परिवेश जैसे कारक सीखने की क्षमता को कैसे प्रभावित करते हैं.वो बताती हैं, “असमान जुड़वां बच्चों की तुलना में समान जुड़वां बच्चे हर मानसिक गुण में एक-दूसरे से ज़्यादा मिलते-जुलते हैं. इसलिए गणितीय क्षमता में भी यह समानता देखी गई. इसका मतलब है कि घर का माहौल ही इस अंतर को नहीं समझा जा सकता. ऐसा लगता है कि जीन का भी इसमें योगदान होता है.”प्रोफे़सर कोवास के मुताबिक़ सेकेंडरी स्कूल और वयस्क होने के दौरान गणित सीखने और क्षमता में आनुवंशिक घटक 50 से 60 फ़ीसदी तक होता है.वो कहती हैं, “यह इस विचार को मज़बूत करता है कि जीन और माहौल दोनों अहम हैं.”माहौल की कितनी भूमिकाइमेज कैप्शन, हरियाणा की मैथ्स टीचर्स ममता पालीवाल बच्चों को बिल्कुल नए अंदाज में गणित पढ़ाती हैं.हम जिस माहौल में रहते हैं वो भी बहुत मायने रखता है.और यह केवल इस बात तक सीमित नहीं है कि हमारा स्कूल कितना अच्छा है या हमें होमवर्क में कितनी मदद मिलती है.प्रोफ़ेसर कोवास कहती हैं कि कभी-कभी कुछ ‘संयोग’ भी हो सकता है, जैसे रेडियो पर सुनी गई कोई बात हमारी रुचियों की दिशा ही बदल दे.हालांकि वो ये भी बताती हैं कि किसी व्यक्ति की आनुवंशिक प्रवृतियां उसे ख़ास तरह के एक्सपोजर की ओर ले जाती है.ब्रिटेन में लफ़बरो यूनिवर्सिटी में मैथेमेटिकल कॉग्निशन पर रिसर्च करने वाली डॉ. इरो ज़ेनिदो-दरवो कहती हैं कि भले ही हर कोई गणित का विशेषज्ञ न बन पाए, लेकिन अच्छी बात यह है कि हर व्यक्ति अपनी गणितीय क्षमता को बेहतर बना सकता है.वे बताती हैं कि हमारी संख्या ज्ञान और गणितीय दक्षता विकसित करने में हमारे विचार, विश्वास, दृष्टिकोण और भावनाएं काफ़ी अहम भूमिका निभाती हैं.डॉ. ज़ेनिदो-दरवो के मुताबिक़ “मैथेमेटिक्स एंग्जाइटी” लोगों के गणित के परफॉरमेंस को प्रभावित कर सकती है. और ये उन लोगों के लिए अहम है जो यह विश्वास करते हुए सुधार करना चाहते हैं कि वो ऐसा कर सकते हैं.’मैथेमेटिक्स एंग्जाइटी’ क्या है?इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, ‘मैथेमेटिक्स एंग्जाइटी’ गणित सीखने की क्षमता को प्रभावित करती है.डॉ. ज़ेनिदो-दरवो कहती हैं कि नकारात्मक अनुभव किसी व्यक्ति को “भय और चिंता के दुष्चक्र” में डाल सकते हैं.ये नकारात्मक अनुभव कुछ इस तरह के हो सकते हैं. जैसे, किसी का ये कहना है कि “तुम गणित में कमजोर हो” या परीक्षा में सहपाठियों की तुलना में कम नंबर लाना.वह बताती हैं, “गणित को लेकर चिंता से हम गणित से कटने लगते हैं. “यह दूरी फिर खराब प्रदर्शन की वजह बनती है. और ख़राब प्रदर्शन ‘मैथेमेटिक्स एंग्जाइटी’ को और बढ़ा देता है.”इस तरह ये बोझ हमारी वर्किंग मेमोरी पर जोर डालती है. वो ये जगह होती है जहां हमारी सोचने की प्रक्रिया चलती है.डॉ. ज़ेनिदो-दरवो बताती हैं, “जब हम चिंतित होते हैं, तो हमारे मन में चल रहे नकारात्मक विचार इस बेशकीमती मानसिक जगह का बड़ा हिस्सा घेर लेते हैं. नतीजतन वास्तविक गणितीय समस्या हल करने की बहुत कम क्षमता बचती है.”वह लफ़बरो यूनिवर्सिटी में की गई एक स्टडी का हवाला देती हैं जिसमें नौ से दस साल के बच्चों पर वर्किंग मेमोरी और ‘मैथेमेटिक्स एंग्जाइटी’ के बीच संबंध की पड़ताल की गई थी.’बच्चों को दो अंकों वाले मानसिक अंकगणित के सवाल दिए गए. लेकिन उन्हें एक ऐसी स्थिति दी गई जिनमें उन्हें कुछ शब्द सुनने थे और फिर उन्हें याद रखने और दोहराना था.डॉ. ज़ेनिदो-दरवो बताती हैं कि जिन बच्चों में “गणितीय चिंता का स्तर अधिक” था उनका प्रदर्शन इस स्थिति में काफी प्रभावित हुआ.संख्याओं की जन्मजात समझइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, डिस्कैलकुलिया सीखने की एक खास तरह की दिक्कत है. ये एक ख़ासकर संख्याओं के साथ काम करने की क्षमता को प्रभावित करती है.यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफे़सर ब्रायन बटरवर्थ कॉग्निटिव न्यूरोसाइकोलॉजी के फ़ील्ड में काम करते हैं.उनकी रिसर्च बताती है कि मनुष्यों में संख्याओं को समझने की एक स्वाभाविक (बिल्ट-इन) क्षमता होती है. यहां तक कि उन बच्चों में भी जिन्होंने कभी गिनती नहीं सीखी होती है.लेकिन वो कहते हैं कि कुछ लोगों में यह ”स्वाभाविक मैकेनिज्म उतनी अच्छी तरह काम नहीं करता.”डिस्कैलकुलिया सीखने की एक खास तरह की दिक्कत है. ये एक ख़ासकर संख्याओं और मात्राओं को समझने और उनके साथ काम करने की क्षमता को प्रभावित करती है.प्रोफ़ेसर बटरवर्थ के मुताबिक़, यह डिस्लेक्सिया जितनी ही आम है और लगभग पांच फ़ीसदी लोगों को प्रभावित करती है.डिस्कैलकुलिया वाले लोग सामान्य अंकगणितीय सवालों जैसे 5 गुणा 8 या 6 में 16 जोड़ने में भी कठिनाई महसूस करते हैं.प्रोफ़ेसर बटरवर्थ और उनकी टीम ने एक गेम विकसित किया है, जिससे बच्चों, ख़ासकर डिस्कैलकुलिया से प्रभावित बच्चों को बुनियादी गणितीय कौशल सुधारने में मदद मिली है.हालांकि वो कहते हैं कि लंबे समय में ऐसी पहल का क्या असर पड़ा है वो अभी साफ़ नहीं है.वे कहते हैं, “जरूरी यह है कि इन बच्चों के साथ शुरुआती चरण में ही हस्तक्षेप किया जाए और फिर आने वाले कुछ वर्षों तक उनके विकास पर नज़र रखी जाए.”तो गणित दूसरे विषयों से अलग क्यों है?डॉ. ज़ेनिदो-दरवो गणित सीखने की तुलना एक “मानसिक ईंट की दीवार” बनाने से करती हैं. जिसमें आगे बढ़ने के लिए मज़बूत नींव होना अनिवार्य है.”वे कहती हैं, “गणित में आप ईंटें छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकते. उदाहरण के लिए, इतिहास में अगर किसी एक युग की जानकारी आपको कम है तो भी चलेगा. लेकिन गणित में ऐसा नहीं चल सकता.”दुनिया भर से सीखइमेज स्रोत, AFP via Getty Imagesइमेज कैप्शन, चीन के स्कूलों में बच्चों के गणित सीखने की क्षमता अच्छी पाई गई है. प्रोफेसर यूलिया कोवास 2000 के दशक की शुरुआत में किए गए प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट सर्वे का ज़िक्र करती हैं. यह एक अंतरराष्ट्रीय मूल्यांकन कार्यक्रम है, जो विभिन्न देशों के 15 वर्षीय विद्यार्थियों की गणित, पढ़ने और विज्ञान में उनकी क्षमता को मापता है और पूरी दुनिया के एजुकेशन सिस्टम का मूल्यांकन करता है.वो कहती हैं, “इस सर्वे में सबसे ऊपर चीनी विद्यार्थी थे. इस स्तर पर उनके साथ कुछ अन्य पूर्वी एशियाई देशों और फिनलैंड के विद्यार्थी भी थे. इस वजह से फिनलैंड को ‘यूरोपीय विरोधाभास कहा गया, क्योंकि वह एशियाई देशों के बीच वहां था.”तो क्या हम अच्छा प्रदर्शन करने वाले देशों से कुछ सीख सकते हैं?चीन की जियांग्शी नॉर्मल यूनिवर्सिटी में गणित की सहायक प्रोफेसर झेंझेन मियाओ बताती हैं कि चीन में गणित की शिक्षा चार “बेसिक” सिद्धांतों पर आधारित है. ये हैं बेसिक ज्ञान, बेसिक कौशल, बेसिक गणितीय अनुभव और बेसिक गणितीय सोच.डॉ. मियाओ के अनुसार, चीन में टीचर्स और शिक्षा दोनों को बहुत सम्मान दिया जाता है.टीचर्स को हर दिन केवल एक या दो क्लास लेनी होती हैं, जिससे उनके पास पाठ तैयार करने और उसे निख़ारने के लिए पर्याप्त समय होता है.फिनलैंड के तुर्कू यूनिवर्सिटी में आर्थिक समाजशास्त्र के प्रोफेसर पेक्का रेसानेन बताते हैं कि फिनलैंड की गणित शिक्षा प्रणाली भी बेसिक स्किल पर ही केंद्रित है.वो कहते हैं, “फ़िनलैंड की शिक्षा प्रणाली का मुख्य सिद्धांत हमेशा यह रहा है कि हर स्टूडेंट को मूलभूत स्किल की गारंटी दी जाए.”प्रोफेसर रेसानेन बताते हैं कि फ़िनलैंड में टीचर बनने के लिए पांच साल का एकेडेमिक ट्रेनिंग अनिवार्य है. यहां इसके लिए उपलब्ध सीटों की तुलना में 10 गुना अधिक उम्मीदवार आवेदन करते हैं. क्योंकि यहां टीचर के पेशे को काफी सम्मान के साथ देखा जाता है.हालांकि प्रोफ़ेसर कोवास यह भी कहती हैं कि हर देश में कुछ भिन्नताएं और असमानताएं होती हैं और यही बात “इस विषय की जटिलता” दिखाती है.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.



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