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ममता बनर्जी बिहार में राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से दूर क्यों रहीं



इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, तृणमूल कांग्रेस ने कई मौक़ों पर कांग्रेस से अलग राह ली है (सांकेतिक तस्वीर)….मेंकांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुवाई में बिहार में चल रही ‘वोटर अधिकार यात्रा’ 1 सितंबर को पटना में समाप्त हो रही है. इस यात्रा की शुरुआत 17 अगस्त को रोहतास ज़िले से हुई थी.इस दौरान यात्रा में राहुल गांधी के साथ बिहार के प्रमुख विपक्षी दलों के नेता लगातार बने हुए दिखे, जिनमें आरजेडी के तेजस्वी यादव और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य भी शामिल हैं.राहुल गांधी की यात्रा में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी शामिल हुए.लेकिन तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी इस यात्रा से दूर ही रहीं.बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंराहुल गांधी पिछले लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाकर बिहार में वोटर अधिकार यात्रा कर रहे हैं.राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और इससे ठीक पहले हो रहे एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न) की प्रक्रिया पर कांग्रेस, आरजेडी समेत तमाम विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं.इनमें ममता बनर्जी की टीएमसी और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी शामिल है. हालांकि इन दोनों दलों का कांग्रेस के साथ कई मौक़ों पर मतभेद स्पष्ट नज़र आया है.’इंडिया’ गठबंधन के दलों की एकता पर सवालसाल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बने इंडिया गठबंधन की एकता पर सवाल लगातार उठते रहे हैं. लोकसभा चुनावों के दौरान भी टीएमसी और कांग्रेस में तकरार देखने को मिली थी.यह तकरार अब भी जारी है और भले ही एसआईआर के मुद्दे पर टीएमसी और कांग्रेस एक ही नीति रखते हों. और ‘आप’ भी चुनाव आयोग पर वोटिंग और वोटर लिस्ट को लेकर कई गंभीर आरोप लगा चुकी है. इसलिए ऐसा लग रहा था कि राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को ममता बनर्जी और केजरीवाल का साथ मिल सकता है. चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के लगाए गंभीर आरोपों के बाद टीएमसी ने भी कहा है कि यह ममता बनर्जी के पुराने दावे के मुताबिक़ है, जिसमें उन्होंने एसआईआर की जांच कराने की मांग की थी.लेकिन न तो केजरीवाल वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी के साथ दिखे और न ही अगले ही साल अपने राज्य में विधानसभा चुनाव का सामना करने जा रहीं ममता बनर्जी.पटना में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “ममता बनर्जी का रवैया समझ पाना आसान नहीं है. उन्होंने अपनी पार्टी से सांसद यूसुफ़ पठान और ललितेश त्रिपाठी को राहुल गांधी की यात्रा के समापन में शामिल होने को कहा. इन दोनों में से कोई भी टीएमसी का बड़ा चेहरा नहीं है.”टीएमसी का संकटपश्चिम बंगाल की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार समीर के पुरकायस्थ कहते हैं, “पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों में टीएमसी और कांग्रेस आमने-सामने होंगी. इसलिए टीएमसी ख़ुद को कांग्रेस के बहुत ज़्यादा क़रीब नहीं दिखाना चाहती है.””एसआईआर को लेकर टीएमसी भी काफ़ी ज़्यादा आक्रामक है और उसने कहा है कि एक भी असली वोटर का नाम हटा तो 10 लाख लोगों के साथ दिल्ली में चुनाव आयोग के दफ़्तर का घेराव किया जाएगा. एक राजनीतिक दल के तौर पर वो अपनी अलग पहचान भी दिखाना चाहती है और इस बार भी वही दिख रहा है.”पश्चिम बंगाल में विधानसभा की 294 सीटें हैं और साल 2021 में हुए विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने कुल 215 सीटों पर जीत हासिल की थी.उन चुनावों में बीजेपी को 77 और अन्य के खाते में महज़ 2 सीटें आई थीं.कांग्रेस ने एसआईआर या चुनाव आयोग को लेकर जो आक्रामक रुख़ अपनाया है, उसमें बिहार में प्रमुख विपक्षी दल आरजेडी भी उसके पीछे खड़ी दिखती है.राहुल गांधी की यात्रा बिहार में जहां से गुज़री वहां कांग्रेस के झंडे और राहुल गांधी के नारों की ज़्यादा गूंज सुनाई दी.वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “भले ही बीजेपी पश्चिम बंगाल की मुख्य विपक्षी पार्टी है लेकिन टीएमसी ख़ुद कांग्रेस को अपना बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानती है. वहां कई सीटों पर कांग्रेस और टीएमसी के बीच सीधा मुक़ाबला हो सकता है.”दरअसल ये माना जाता है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटरों की तादाद क़रीब 27 फ़ीसदी है और टीएमसी के पास मुसलमानों का बड़ा वोट बैंक है. वहीं बिहार में राहुल गांधी की यात्रा में बड़ी संख्या में मुसलमानों को शामिल होते देखा गया है.जानकारों के मुताबिक ममता के मन में इस बात की आशंका हो सकती है कि राहुल गांधी की यात्रा की वजह से कहीं उन्हें राज्य में मुस्लिम वोटों का नुक़सान न हो जाए. बिहार के संभावित चुनाव परिणाम से जुड़ी रणनीतिइमेज स्रोत, Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Imagesइमेज कैप्शन, जुलाई में ‘बिहार बंद’ के दौरान एसआईआर के ख़िलाफ़ विपक्ष के नेताबिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को विपक्ष के सीएम का चेहरा माना जाता है. हालांकि इसकी औपचारिक घोषणा अभी नहीं हुई है.माना जाता है कि इसके पीछे कांग्रेस की एक रणनीति है कि आरजेडी राज्य में अपना बेहतरीन प्रदर्शन कर चुकी है और कांग्रेस के पास अभी ख़ुद के विस्तार के लिए काफ़ी जगह है.साल 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे. उस समय 243 सीटों की बिहार विधानसभा में राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी.जबकि उन चुनावों में कांग्रेस और वाम दलों ने 19 और 16 सीटें जीती थीं.वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, “अगर बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन की जीत होती है तो इसका सारा श्रेय तेजस्वी यादव को मिलेगा. लेकिन हार होने पर राहुल और अखिलेश समेत सभी नेताओं को इससे जोड़ा जाएगा और यह आशंका ममता बनर्जी को भी है.””अगर ममता बनर्जी वोटर अधिकार यात्रा में शामिल होती हैं और बिहार में विपक्ष की चुनावों में हार होती है तो ममता बनर्जी के साथ भी इस हार को जोड़ा जाएगा और इसका नुक़सान उन्हें अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनावों में हो सकता है.”माना जाता है कि ममता बनर्जी के सामने राज्य में कई अन्य चुनौतियां भी हैं. ख़ासकर साल 2011 से लगातार राज्य की सत्ता में बने रहने से उनके ख़िलाफ़ ‘एंटी-इनकंबेंसी’ भी हो सकती है. ऐसे में वो ख़ुद का ध्यान पश्चिम बंगाल के मुद्दों पर केंद्रित रखना चाहती हैं.रशीद किदवई कहते हैं, “ममता बनर्जी के बिहार न जाने के पीछे एक वजह यह भी है कि पश्चिम बंगाल और बिहार के बीच सियासी संबंध पुराने समय से ही बहुत मधुर नहीं रहे हैं, फिर लालू प्रसाद यादव से भी रेल मंत्री के ज़माने से ही उनका कई मुद्दों पर विवाद रहा है, इसलिए उन्होंने एक दूरी बना ली.”बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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