इमेज स्रोत, PIBइमेज कैप्शन, पीएम मोदी ने सात साल बाद चीन का दौरा किया है31 अगस्त 2025चीन के तियानजिन में हो रहे शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ) के सम्मेलन से इतर रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात हुई है.इसके बाद भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी किया गया है. इसके मुताबिक़, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “भारत और चीन दोनों ही रणनीतिक स्वायत्तता चाहते हैं और दोनों के संबंधों को किसी तीसरे देश के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.”चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री ने सीमा पर शांति बनाए रखने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया. पीएम मोदी सात साल में पहली बार चीन गए हैं. साल 2020 में गलवान में हुई सैन्य झड़प के बाद मोदी का यह पहला चीन दौरा है. बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंवहीं शी जिनपिंग ने कहा कि, “चीन और भारत दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश हैं और ग्लोबल साउथ का हिस्सा हैं. दोस्त बने रहना, अच्छे पड़ोसी होना, ड्रैगन और हाथी का साथ आना बहुत ज़रूरी है.”भारत ने क्या कहा?इमेज स्रोत, MEAIndia @xइमेज कैप्शन, मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई द्विपक्षीय मुलाक़ात की तस्वीर विदेश मंत्रालय ने जारी की हैविदेश मंत्रालय की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है कि अक्तूबर 2024 में कज़ान में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाक़ात हुई थी. इसके बाद से दोनों के द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक प्रगति हुई है.बयान के अनुसार, “विकास के रास्ते में दोनों देश साझेदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं. दोनों के बीच के मतभेद हो सकते हैं लेकिन वो विवादों में नहीं बदलने चाहिए.”भारत ने अपने बयान में “एक बहुध्रुवीय विश्व के साथ-साथ एक बहुध्रुवीय एशिया” पर भी ज़ोर दिया और कहा कि “दोनों देशों के बीच स्थायी संबंध और सहयोग लोगों के बीच आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता के आधार पर होने चाहिए.”बयान में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का भी ज़िक्र है और कहा गया है कि द्विपक्षीय संबंधों की बेहतरी के लिए सीमा पर शांति महत्वपूर्ण है.बयान के अनुसार, पिछले साल सेना की वापसी और उसके बाद से सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति पर दोनों नेताओं ने संतोष जताया है. साथ ही दोनों ने सीमा विवाद के निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान को लेकर प्रतिबद्धता जताई.विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, दोनों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा, पर्यटक वीज़ा के साथ-साथ वीज़ा सुविधा और सीधी उड़ानों के ज़रिए लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है.समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार पीएम मोदी का कहना है कि दोनों मुल्कों के बीच सीधी उड़ानें जल्द शुरू की जाएंगी. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि उड़ानें कब से शुरू होंगी. कोविड महामारी के वक्त से दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें बंद हैं.चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटाविदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, व्यापार मामलों को लेकर “दोनों ने इंटरनेशनल ट्रेड को स्थिर करने में अपनी अर्थव्यवस्थाओं की भूमिका पर ज़ोर दिया. साथ ही द्विपक्षीय व्यापार और निवेश बढ़ाने के साथ-साथ व्यापार घाटे को कम करने के लिए क़दम उठाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.”भारतीय विदेश मंत्रालय के एक दस्तावेज़ के अनुसार, भारत-चीन के बीच के व्यापार में चीन का पलड़ा भारी रहा है. 2024-25 के आंकड़े बताते हैं कि भारत ने चीन को 14.25 अरब डॉलर का निर्यात किया जबकि इस दौरान चीन से हुए आयात का आंकड़ा 113.46 अरब डॉलर का रहा है, यानी व्यापार घाटा क़रीब 99.21 अरब डॉलर का था.वहीं बीते पांच साल के आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि चीन को भारत का निर्यात धीरे-धीरे कम हुआ है, लेकिन चीन से उसका आयात बढ़ा है, यानी जहां 2020-21 में व्यापार घाटा 44.02 अरब डॉलर का था, वहीं 2024-25 में ये बढ़कर 99.21 अरब डॉलर हो गया है.शी जिनपिंग से मुलाक़ात के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि “भारत और चीन दोनों ही रणनीतिक स्वायत्तता चाहते हैं और उनके संबंधों को किसी तीसरे देश के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए.”इसके अलावा मोदी ने शी जिनपिंग को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आने का न्योता दिया. 2026 में भारत ब्रिक्स सम्मेलन की मेज़बानी कर रहा है. इसके जवाब में शी जिनपिंग ने ब्रिक्स के लिए अपना समर्थन जताया है.शी जिनपिंग ने क्या कहा?चीन की सरकारी न्यूज़ वेबसाइट ग्लोबल टाइम्स के अनुसार एससीओ में शी जिनपिंग ने कहा कि चीन और भारत प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि साझेदार हैं, दोनों देश एक दूसरे के लिए ख़तरा नहीं हैं, बल्कि एक दूसरे के लिए विकास के अवसर हैं.शी जिनपिंग ने भारत के साथ कूटनीतिक रिश्तों की 75वीं वर्षगांठ का ज़िक्र किया और कहा कि दोनों को रणनीतिक लिहाज़ से और लंबे वक्त को सामने रखते हुए द्विपक्षीय रिश्तों को देखना चाहिए. उन्होंने कहा “जब तक दोनों देश इस व्यापक दिशा पर बने रहेंगे, दोनों आपसी संबंधों को स्थिर और दीर्घकालिक विकास को बनाए रख सकते हैं.”राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, “दुनिया बदलाव की ओर बढ़ रही है. चीन और भारत दुनिया की दो सबसे प्राचीन सभ्यताएं हैं. हम दोनों दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश हैं और ग्लोबल साउथ का हिस्सा हैं. दोस्त बने रहना, अच्छे पड़ोसी होना, ड्रैगन और हाथी का साथ आना बहुत ज़रूरी है.”उन्होंने अपील की कि दोनों देशों को रणनीतिक संवाद को मज़बूत करना चाहिए ताकि आपसी भरोसा गहरा हो, आदान-प्रदान बढ़े और ऐसे सहयोग हो सकें जो दोनों के लिए बेहतर हों.उनके बयान में सीमा विवाद का भी ज़िक्र देखने को मिला, हालांकि उन्होंने इस पर विस्तार से कुछ नहीं कहा.उन्होंने कहा, “एशिया के इन दो पड़ोसियों को सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और सीमा विवाद को आपसी संबंधों की संपूर्ण तस्वीर तय नहीं करने देनी चाहिए.”विपक्ष के सवालPlay video, “करीब नहीं आ सकते भारत और चीन! ये हो सकती हैं वजह- The Lens”, अवधि 34,0234:02वीडियो कैप्शन, करीब नहीं आ सकते भारत और चीन! ये हो सकती हैं वजह- The Lensपीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाक़ात को लेकर विपक्ष ने कई सवाल किए हैं.कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा कि इस मुलाक़ात का मूल्यांकन कुछ संदर्भों में किया जाना चाहिए.उन्होंने लिखा कि जून 2020 में गलवान घाटी में चीन की आक्रामकता के कारण भारत के 20 सैनिकों की जान गई. लेकिन इसके बावजूद, पीएम मोदी ने चीन को कायराना क्लीन चिट दे दी.उन्होंने आगे सवाल किया, “सेना प्रमुख ने लद्दाख में सीमा पर यथास्थिति की पूर्ण बहाली की मांग की थी, लेकिन ऐसा अब तक हो नहीं सका है. लेकिन इसके बावजूद मोदी सरकार ने चीन के साथ सुलह की दिशा में क़दम बढ़ाए हैं. इससे उस क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को अप्रत्यक्ष रूप से वैधता मिल गई है.”उन्होंने इसी साल भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष का ज़िक्र किया और कहा, “ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के साथ चीन की जुगलबंदी पर उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल सिंह ने ज़ोरदार और स्पष्ट रूप से बात की थी. लेकिन इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देने की बजाय, मोदी सरकार ने इसे चुपचाप स्वीकार कर लिया.”उन्होंने यारलुंग सांगपो पर बनाए जा रहे हाइड्रोपावर बांध का ज़िक्र किया और कहा कि इससे भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों पर बेहद गंभीर प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा कि “मोदी सरकार की तरफ़ से इस मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोला गया.”इसी साल चीनी अधिकारियों ने तिब्बती क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े हाइड्रोपावर बांध के निर्माण की आधारशिला रखी है. यह नदी तिब्बती पठार से निकलकर भारत और बांग्लादेश तक बहती है.इस बांध के कारण नीचे की ओर बहाव वाले इलाक़े (डाउनस्ट्रीम) में भारत और बांग्लादेश के करोड़ों लोगों, स्थानीय तिब्बती आबादी और पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ सकता है.Play video, “शी जिनपिंग से मिले पीएम मोदी, इन मुद्दों पर बन सकती है बात”, अवधि 4,2404:24वीडियो कैप्शन, शी जिनपिंग से मिले पीएम मोदी, इन मुद्दों पर बन सकती है बातजयराम रमेश ने चीन की तरफ़ से हो रही डंपिंग का भी मुद्दा सामने रखा है. उन्होंने सवाल किया है कि “चीन से अनियंत्रित डंपिंग से भारत के छोटे और मझोले उद्योगों पर बुरा असर पड़ा है. लेकिन अन्य देशों की तरह सख़्त कदम उठाने के बजाय, भारत ने चीनी आयातकों को लगभग खुली छूट दे दी है.”वहीं समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कई सवाल उठाए हैं.उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “चीन से आनेवाले सामानों पर जिस तरह भारत की निर्भरता बढ़ती जा रही है, उसका बुरा असर भारत के उद्योगों, कारख़ानों और दुकानों के लगातार घटते जा रहे काम-कारोबार पर पड़ा है. इससे बेरोज़गारी बढ़ रही है.”उन्होंने भारत और चीन के बीच के सीमा विवाद का भी ज़िक्र किया और कहा कि चीन भारत की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रहा है और बीजेपी सरकार शांत है.उन्होंने तंज़ कसने के अंदाज़ में सवाल किया कि “बीजेपी ये बता दे कि उनकी सरकार के आने के समय देश की कुल भूमि जितनी थी, अब भी उतनी ही है या अब चीनी क़ब्ज़े के बाद घट गयी है.”बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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