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पाकिस्तान इसराइल को क्या अब मान्यता देगा?



इमेज स्रोत, Pak PM Officeइमेज कैप्शन, पाकिस्तान ने ग़ज़ा पर ट्रंप के प्रस्ताव का स्वागत किया है….मेंपाकिस्तान ने अमेरिका की ओर से ग़ज़ा में संघर्ष विराम सुनिश्चित करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीस सूत्री प्रस्ताव का स्वागत किया है.पाकिस्तान ने कहा है कि क्षेत्र में स्थाई शांति के लिए ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ (दो राष्ट्र सिद्धांत) प्रस्ताव पर अमल करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.29 सितंबर को वॉशिंगटन डीसी में डोनाल्ड ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस की. इसमें ट्रंप ने ग़ज़ा युद्ध विराम और मध्य पूर्व में स्थाई शांति के लिए अपनी प्रस्तावित योजना पेश की थी.ट्रंप का कहना था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और सेना प्रमुख फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर शुरू से ही ‘ग़ज़ा प्लान’ का समर्थन कर रहे हैं. ख़ुद शहबाज़ शरीफ़ भी इसके बारे में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर अपना संदेश जारी कर चुके हैं.इसके अलावा मंगलवार को पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने इस्लामाबाद में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान कहा है कि आठ इस्लामी देश इस प्रस्तावित योजना के तहत एक शांति सेना तैनात करेंगे और पाकिस्तान भी इसके बारे में फ़ैसला लेगा.इस घोषणा के बाद जहां ग़ज़ा में दो साल से जारी बमबारी के बाद शांति की उम्मीद जगी है, वहीं कई लोग फ़लस्तीन पर पाकिस्तान के ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ के नीतिगत निर्णय में बदलाव का दावा कर रहे हैं.विश्लेषकों का कहना है कि फ़लस्तीन के मामले पर कई दशकों से पाकिस्तान का एक ऐतिहासिक स्टैंड रहा है. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से अतीत में कई बार यह दोहराया गया है कि पाकिस्तान फ़लस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार की उचित लड़ाई और 1967 से पहले की सीमाओं पर आधारित एक स्वतंत्र और स्वयंभू फ़लस्तीनी राष्ट्र की स्थापना के संघर्ष में फ़लस्तीन की जनता के साथ है. इसकी राजधानी अल-क़ुद्स शरीफ़ होगी.पाकिस्तान का हमेशा से यह रुख़ रहा है कि फ़लस्तीन समस्या के समाधान के साथ न्याय हो और पाकिस्तान इसराइल को उस वक़्त तक मान्यता नहीं देगा जब तक इसका ऐसा हल न निकले जो फ़लस्तीनी जनता के लिए भी स्वीकार्य हो.इस बारे में बीबीसी ने यह जानने की कोशिश की कि आख़िर फ़लस्तीन के लिए पाकिस्तान का ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ क्या है? बीस सूत्री शांति योजना में बिना किसी विलय के फ़लस्तीनी राज्य के गठन की बात की गई है, तो क्या पाकिस्तान इसराइल को मान्यता दे सकता है?फ़लस्तीन के मामले में पाकिस्तान की नीति क्या है?फ़लस्तीन के बारे में पाकिस्तान की नीति पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के उस बयान को दर्शाती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब तक फ़लस्तीनी लोगों को उनके हक़ नहीं मिल जाते, पाकिस्तान इसराइल को मान्यता नहीं दे सकता है.मंगलवार को जब पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसहाक़ डार से इसराइल को मान्यता देने या न देने के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि इसके बारे में पाकिस्तान की बहुत स्पष्ट नीति है, जिसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है. हालांकि, उन्होंने इस बारे में और कुछ नहीं कहा.पाकिस्तान का मानना है कि स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र की सीमाएं जून 1967 से पहले की होंगी. पाकिस्तान का कहना है कि फ़लस्तीन विवाद का हल संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के प्रस्तावों पर अमल के तहत ही मुमकिन है.याद रहे कि जून 1967 में इसराइल का मिस्र, जॉर्डन और सीरिया के साथ युद्ध हुआ था, जो छह दिन तक चला था.इस जंग में इसराइल ने उस समय मिस्र के नियंत्रण में रहे ग़ज़ा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जॉर्डन के क़ब्ज़े में रहे वेस्ट बैंक और पूर्वी यरूशलम का हिस्सा अपने क़ब्ज़े में ले लिया था. इस जंग के दौरान सीरिया के नियंत्रण में रहे गोलान हाइट्स पर भी इसराइल का कब्ज़ा हो गया था.इस जंग में इन इलाक़ों को अपने क़ब्ज़े में लेने के बाद इसराइल की सीमा तीन गुना बढ़ गई थी. इसके बाद मिस्र और जॉर्डन की सरकारों ने इसराइल को मान्यता दी और कुछ क्षेत्रों का क़ब्ज़ा वापस लिया. लेकिन वेस्ट बैंक, ग़ज़ा और पूर्वी यरूशलम- ये तीनों इलाक़े फ़लस्तीन और इसराइल के बीच विवादित क्षेत्र हैं.कई दशकों तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इन क्षेत्रों के साथ इसराइल के विलय को मान्यता नहीं दी थी, लेकिन 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने यरूशलम को इसराइल की राजधानी के रूप में मान्यता दी और अमेरिकी दूतावास को वहां स्थानांतरित कर दिया.2019 में ट्रंप ने गोलान हाइट्स पर इसराइल की संप्रभुता को भी मान्यता दे दी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय पूर्वी यरूशलम और गोलान हाइट्स को अब तक क़ब्ज़े में लिया हुआ क्षेत्र ही मानता है.पाकिस्तान की इसराइल को मान्यता देने की शर्त क्या है?इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, सोशल मीडिया पर एक धड़ा पाकिस्तान सरकार की आलोचना कर रहा हैपाकिस्तान की तरफ़ से राष्ट्रपति ट्रंप की प्रस्तावित योजना का समर्थन करने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान इसराइल को मान्यता दे सकता है?पाकिस्तान के पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद का कहना है कि इसराइल के मामले में पाकिस्तान की नीति देश की परमाणु नीति और कश्मीर नीति की तरह बहुत स्पष्ट है, जिसे “कोई सरकार या प्रधानमंत्री बदल नहीं सकता.”बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ का मतलब यह है कि फ़लस्तीन को भी एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दी जाए, क्योंकि इसराइल तो पहले ही एक देश है.उनका कहना है कि पाकिस्तान के ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ के अनुसार, पाकिस्तान चाहता है कि फ़लस्तीन को भी स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी जाए और इसका मतलब “यह बिल्कुल नहीं है कि पाकिस्तान इसराइल को मान्यता देगा.”हालांकि, क़ायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशंस डिपार्टमेंट से जुड़े प्रोफ़ेसर डॉक्टर क़ंदील अब्बास का नज़रिया अलग है.बीबीसी से बात करते हुए डॉक्टर क़ंदील ने कहा कि इसराइल-फ़लस्तीन विवाद के समाधान के लिए पाकिस्तान का नीतिगत स्टैंड संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुरूप है, यानी वह ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ का समर्थन करता है, जिसका मतलब फ़लस्तीनी राष्ट्र के गठन के बाद परोक्ष रूप से इसराइल को मान्यता देना है.मुशाहिद हुसैन सैयद के अनुसार, “इसराइल एक आक्रमणकारी देश है और उसका फ़लस्तीन पर अवैध क़ब्ज़ा है, जिसे पाकिस्तान मान्यता नहीं देता.”उन्होंने कहा कि इसराइल को मान्यता देना और फ़लस्तीन में शांति स्थापना ‘दो अलग-अलग चीज़ें हैं और इस समय मुद्दा ग़ज़ा में युद्ध विराम का है.’डॉक्टर क़ंदील का कहना है कि पाकिस्तान में यह एक जज़्बाती मामला है और कई धार्मिक समूह इसराइल को ग़ैर-क़ानूनी मानते हुए ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ का भी समर्थन नहीं करते, इसलिए राजनीतिक दल भी असमंजस में पड़ जाते हैं, क्योंकि जनता की राय बहुत साफ़ है.उन्होंने कहा कि हाल में हुई मुलाक़ातों में पाकिस्तान ने ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ पर ज़्यादा बात शुरू कर दी है और शायद भविष्य में सरकारी स्तर पर नीति में बदलाव हो सकता है, लेकिन जनता की राय बहुत साफ़ और दो टूक है.ट्रंप के ग़ज़ा प्लान के समर्थन पर कुछ पाकिस्तानी नाराज़इमेज स्रोत, SAUL LOEB/AFP via Getty Imagesइमेज कैप्शन, कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स का कहना है कि प्रधानमंत्री बिना जनता को विश्वास में लिए ट्रंप की योजना का समर्थन कैसे कर सकते हैं (फ़ाइल फ़ोटो)जब से पाकिस्तान ने इस योजना का समर्थन किया है, सोशल मीडिया पर एक वर्ग सरकार की आलोचना कर रहा है. कुछ यूज़र्स ने यह सवाल दोहराया कि प्रधानमंत्री बिना जनता को विश्वास में लिए ट्रंप की योजना का स्वागत कैसे कर सकते हैं.पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक अब्दुल बासित ने ट्रंप की ग़ज़ा योजना पर सभी मुस्लिम देशों की ओर से जारी संयुक्त बयान को ‘समर्पण’ क़रार दिया है.उन्होंने ‘एक्स’ पर कहा, “मुस्लिम दुनिया ने पूरी तरह हथियार डाल दिए हैं. इस घोषणा में फ़लस्तीनी राष्ट्र का ज़िक्र तक नहीं किया गया, जिसकी राजधानी पूर्वी यरूशलम हो.”उन्होंने लिखा कि अगर पाकिस्तान फ़लस्तीनी राष्ट्र के गठन से पहले अब्राहम समझौते को मान्यता देता है, तो यह बहुत बड़ी ग़लती होगी.सत्तारूढ़ दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) से संबंधित सीनेटर अफ़नानुल्लाह ख़ान ने ‘एक्स’ पर जारी पोस्ट में लिखा, “इस योजना का मक़सद अरब और मुस्लिम देशों के ज़रिए बंधकों की रिहाई के लिए हमास पर दबाव डालना है. बंधकों की रिहाई के बाद इसराइल फ़लस्तीनियों का क़त्ल-ए-आम जारी रखेगा.”सीनेटर अफ़नानुल्लाह ने आगे कहा कि कोई बेवक़ूफ़ ही नेतन्याहू पर भरोसा कर सकता है.पूर्व मंत्री और नेशनल असेंबली के सदस्य मुस्तफ़ा नवाज़ खोखर ने कहा कि बिना राष्ट्र को विश्वास में लिए प्रधानमंत्री को यह अधिकार किसने दिया कि वे ट्रंप की शांति योजना का स्वागत करें.’एक्स’ पर जारी बयान में मुस्तफ़ा नवाज़ खोखर ने कहा कि पाकिस्तानी जनता किसी ऐसी शांति योजना को स्वीकार नहीं करेगी, जिसमें इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को युद्ध अपराधों के लिए क्लीन चिट दी जाए या युद्ध अपराधों की अदालत में उनकी जवाबदेही की बात न हो.फ़ातिमा भुट्टो एक पाकिस्तानी लेखिका और स्तंभकार हैं. वह राजनेता मुर्तज़ा भुट्टो की बेटी और पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की पोती हैं.फ़ातिमा भुट्टो ने इस शांति योजना के बारे में लिखा कि ‘उम्मा (इस्लामी बिरादरी) मर चुकी है.’अपनी पोस्ट में फ़ातिमा भुट्टो ने लिखा है, “कोई भी मुसलमान इस ऐतिहासिक बर्बरता को माफ़ नहीं कर सकता. आपने होलोकास्ट देखा और कुछ नहीं किया, बल्कि हत्यारों के लिए तालियां बजाईं.”राजनीतिक धार्मिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी के अमीर हाफ़िज़ नईमुर्रहमान का कहना है कि वह “प्रधानमंत्री के इस बयान को स्वीकार नहीं करते हैं और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार, किसी भी राष्ट्र को यह अधिकार है कि अगर उसकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा हो, तो वह इसके ख़िलाफ़ सशस्त्र संघर्ष कर सकता है.”‘एक्स’ पर जारी अपने बयान में उन्होंने कहा, “पाकिस्तानी जनता की मर्ज़ी के बिना कोई भी शख़्सियत डोनाल्ड ट्रंप को कैसे रज़ामंदी दे सकती है.”बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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