Homeअंतरराष्ट्रीयनिसार सैटेलाइट लॉन्च, भारत और अमेरिका का बनाया ये सैटेलाइट क्या दुनिया...

निसार सैटेलाइट लॉन्च, भारत और अमेरिका का बनाया ये सैटेलाइट क्या दुनिया को बचाएगा आपदाओं से?



इमेज स्रोत, ISROइमेज कैप्शन, ‘निसार’ मिशन को साल 2024 की शुरुआत में लॉन्च किया जाना था लेकिन तकनीकी ख़ामियों की वजह से ये हो न सका30 जुलाई 2025भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसियों ने एक नए सैटेलाइट को लॉन्च कर दिया है जो ज़मीन, समुद्र और बर्फ़ की चादरों में आने वाले बेहद छोटे बदलावों को पकड़ने और रिपोर्ट करने के लिए पृथ्वी पर बाज़ की तरह नज़र रखेगा.भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो और नासा के संयुक्त मिशन से मिले आंकड़े न सिर्फ़ इन दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया को आपदाओं से निपटने और तैयारी करने में मदद करेंगे.पहले चलते हैं साल 1969 में जब भारत ने अपनी स्पेस एजेंसी बनाई और उसे नाम दिया- इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन या भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, जिसे शॉर्ट फ़ॉर्म में इसरो कहा जाता है.इसका मक़सद स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत के लिए काम करना तय किया गयाऔर नाम के मुताबिक़ इसरो ने काम भी किया. इसरो के ज़रिए भारत चांद तक पहुंचा.दूसरी ओर, बात इससे भी 11 साल पहले यानी साल 1958 की करते हैं. अमेरिका में स्पेस एजेंसी बनी, जिसका नाम रखा गया नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन यानी नासा.इसका भी काम अमेरिका के लिए अंतरिक्ष और विज्ञान के क्षेत्र में काम करना था. नासा आज से 50 साल से भी पहले चांद पर इंसान को उतार चुका है और स्पेस साइंस से जुड़े कई बड़े एक्सपेरिमेंट लगातार कर रहा है.यानी अपने-अपने देश की ये दो दिग्गज स्पेस एजेंसियां ज़बरदस्त तरीक़े से काम कर रही हैं. और सोचिए अगर ये दोनों मिल जाएं तो क्या कर सकते हैं.ऐसा ही कुछ हक़ीक़त में होने जा रहा है. नासा और इसरो मिलकर जिस मिशन पर काम कर रहे हैं, उसका नाम है- NISAR (निसार) यानी नासा इसरो सिंथेटिक एपर्चर राडार मिशन.नासा के पास पहले से ही अंतरिक्ष में दो दर्जन से अधिक ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट हैं. उसका कहना है कि ‘निसार’ उसका ‘अब तक का सबसे उन्नत राडार है जो बनाया है’ और यह ‘दुनिया में कहीं भी होने वाले सबसे छोटे बदलावों’ को पकड़ सकेगा.इमेज स्रोत, ISROइमेज कैप्शन, सैटेलाइट का वज़न तक़रीबन 2,392 किलो हैक्या है यह मिशन?इसे दुनिया के सबसे महंगे अंतरिक्ष मिशनों में से एक बताया जा रहा है. तो आख़िर ये ‘निसार’ मिशन क्या है, इसमें क्या काम होगा?’निसार’ अपनी तरह का पहला मिशन है जिसे नासा और इसरो ने मिलकर डेवलप किया है.2,392 किलो वज़नी इस उपग्रह को 30 जुलाई को भारत के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से भारतीय समयानुसार शाम 5 बजकर 40 मिनट पर लॉन्च किया गया.ग़ौरतलब है कि निसार मिशन एक्सिअम-4 मिशन के तुरंत बाद लॉन्च हो रहा है, जिसमें पहली बार कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन गया था.इसरो के चेयरमैन डॉ. वी नारायणन ने बताया है कि ‘निसार’ मिशन को जीएसएलवी-एस16 रॉकेट के ज़रिए लॉन्च किया गया.ये सैटेलाइट पूरी पृथ्वी का मैप तैयार करेगा और पृथ्वी में हो रहे जियोग्राफिकल बदलावों को लगातार हर 12 दिन में दो बार रिकॉर्ड करेगा.इनमें धरती की सतह पर जमी बर्फ़ से लेकर उसके ज़मीनी हिस्से, ईकोसिस्टम में बदलाव, समंदर के जलस्तर में बदलाव और ग्राउंड वाटर लेवल से जुड़े आंकड़े जमा करना शामिल है.यह एक लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट है और इसे पृथ्वी से 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जाएगा.ये डुअल राडार वाला पहला अर्थ-ऑब्ज़र्विंग सैटेलाइट है यानी यह दो अलग-अलग राडार से पृथ्वी को देखेगा.इसमें एल-बैंड और एस-बैंड फ्रीक्वेंसी वाले दो राडार लगे हैं. इन अलग-अलग फ्रीक्वेंसी वाले राडार के ज़रिए पृथ्वी के मूवमेंट को देखा जाएगा और साथ ही पृथ्वी की हाई-रेज़ोल्यूशन वाली तस्वीरें भी ली जाएंगी.इसमें जो एल-बैंड वाला राडार है उसे नासा ने तैयार किया है, जबकि एस-बैंड वाला राडार इसरो ने तैयार किया है.नासा की पूर्व वैज्ञानिक मीला मित्रा ने बीबीसी संवाददाता गीता पांडे को बताया कि यह सैटेलाइट ‘सन-सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट’ में भेजा जाएगा, यानी यह पृथ्वी के एक ही हिस्से से नियमित अंतराल पर गुज़रेगा, जिससे वह सतह पर होने वाले बदलावों को देख सकेगा और उसकी मैपिंग कर सकेगा.इमेज स्रोत, NASAइमेज कैप्शन, नासा ने इस नए सैटेलाइट में इस्तेमाल राडार को अब तक का सबसे ख़ास राडार बताया हैमिशन का मक़सद क्या कुछ और भी है?निसार मिशन का बुनियादी मक़सद पृथ्वी में हो रहे अहम बदलावों पर रिसर्च करना है.इस मिशन के ज़रिए प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी की भी स्टडी होगी. इसके साथ ही यह ईकोसिस्टम, पृथ्वी की सतह में बदलाव और समुद्र के बढ़ते स्तर को समझने में मदद करेगा.निसार बैथामेट्रिक सर्वे भी करेगा, इसका मतलब होता है पानी के भीतर की गहराई की सतह की स्टडी करना. ये सर्वे इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इससे पिघलते ग्लेशियरों, समुद्र के स्तर के बढ़ने के साथ-साथ पृथ्वी की सतह पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में मदद मिल सकेगी.लॉन्च से पहले भारत में मौजूद नासा की अर्थ साइंसेज़ की डायरेक्टर केरेन सेंट जर्मेन ने प्री-लॉन्च प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, “इनमें से कुछ बदलाव धीरे-धीरे होते हैं, कुछ अचानक और कुछ छोटे होते हैं जबकि कुछ बेहद सूक्ष्म होते हैं.””हम निसार के ज़रिए प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखियों के संकेत पहले से देख पाएंगे, हम ज़मीन के धंसने और उसमें गड़बड़ियों, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में ग्लेशियरों और बर्फ़ की चादरों के पिघलने, और जंगलों में आग लगने के मामलों को देख पाएंगे.”उन्होंने कहा, “हम खेती और इमारतों-पुलों जैसे ढांचों के बनने से होने वाले ज़मीन के बदलावों का भी पता लगा पाएंगे.”सैटेलाइट को पूरी तरह से तैनात होने में 90 दिन लगेंगे और सभी प्रणालियों के परीक्षण पूरे होने के बाद यह डेटा इकट्ठा करना शुरू करेगा.’निसार’ न केवल अमेरिका और भारत को जानकारी देगा बल्कि दुनिया भर में रिसर्च से जुड़े लोग इसके ज़रिए पृथ्वी की सतह पर होने वाले छोटे से छोटे बदलावों के बारे में जानकारी हासिल कर सकेंगे.नासा का कहना है कि निसार सैटेलाइट हर मौसम में दिन हो या रात काम कर सकता है. चाहे बादल छाए हों या बारिश हो रही हो, यह लगातार पृथ्वी को मॉनिटर करके जानकारी शेयर कर सकता है.इमेज स्रोत, Jonny Kim/Xइमेज कैप्शन, हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला (नीचे की कतार में, बाईं ओर से तीसरे) ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) का दौरा किया थाक्या होता है एसएआर?हर मौसम में काम करने का कमाल हो पाता है- एसएआर यानी सिंथेटिक एपर्चर राडार के ज़रिए. इससे पहले जो ऑप्टिकल सैटेलाइट होते थे, वे पृथ्वी को मॉनिटर करने के लिए सूरज की रोशनी पर निर्भर होते थे.लेकिन एसएआर.. सैटेलाइट से माइक्रोवेव सिग्नल के ज़रिए अपनी ख़ुद की रोशनी बनाता है और इससे किसी भी वक़्त और कैसे भी मौसम में पृथ्वी को देख सकता है.वैसे ‘निसार’ मिशन पर बीते 10 साल से ज़्यादा वक़्त से काम चल रहा है.इसरो और नासा ने 30 सितंबर 2014 को एक एग्रीमेंट पर साइन किए थे. इसके बाद इस मिशन को 2024 की शुरुआत में ही लॉन्च किया जाना था, लेकिन सैटेलाइट को बनाने में आ रही मुश्किलों के चलते ऐसा नहीं हो सका.नासा की सेंट जर्मेन ने कहा कि यह सैटेलाइट इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इसे “कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया के दो अलग-अलग छोरों पर मौजूद वैज्ञानिकों ने बनाया है.”दिसंबर 2024 में सरकार ने बताया था कि नासा के एक्सपर्ट्स ने तय किया कि 12 मीटर के राडार एंटीना रिफ्लेक्टर में कुछ सुधार करने की ज़रूरत है और इसके लिए उसे अमेरिका ले जाना होगा.इसी बयान में बताया गया कि अक्तूबर में ये एंटीना नासा भेजा गया था, जिसके बाद इससे जुड़े टेस्ट शुरू किए गए.इस सैटेलाइट के कुछ हिस्सों को अमेरिका में तैयार किया गया है और वहां से भारत भेजा गया है.इस मिशन पर भारत और अमेरिका ने मिलकर कुल 1.5 अरब डॉलर ख़र्च किए हैं, जो इसे अब तक का सबसे महंगा अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट बना देता है.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments