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भूमिका: एक बदलाव का दौर
भारत 21वीं सदी की वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में तेजी से उभरता हुआ नाम है। एक तरफ देश में स्टार्टअप कल्चर फल-फूल रहा है, तो दूसरी ओर दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत को अपना अगला मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की होड़ में हैं। लेकिन ठीक उसी समय जब Apple जैसी बड़ी अमेरिकी टेक कंपनी भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने की योजना बना रही थी, तभी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक विवादास्पद बयान सामने आया – “Apple को भारत में नहीं, अमेरिका में ही फैक्ट्री लगानी चाहिए।”
यह बयान सिर्फ एक सलाह नहीं, बल्कि एक गहरे राजनीतिक और आर्थिक इशारे की ओर संकेत करता है। क्या ट्रंप भारत के तेज़ी से बढ़ते आर्थिक प्रभाव से घबरा गए हैं? क्या अमेरिका वाकई नहीं चाहता कि भारत ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग लीडर बने?
ट्रंप भारत में Apple प्लांट विवाद – भारत को क्यों झटका लगा?
जब Apple ने भारत में iPhone असेंबली यूनिट लगाने की घोषणा की, तो यह भारत के लिए एक बड़ी जीत थी। इससे न सिर्फ रोज़गार पैदा होने की उम्मीद थी, बल्कि भारत की वैश्विक साख को भी मज़बूती मिलने वाली थी।
पर तभी ट्रंप का यह बयान आया:
“Apple को भारत में नहीं, अमेरिका में ही मैन्युफैक्चरिंग करनी चाहिए ताकि अमेरिकी लोगों को नौकरियां मिलें।”
यह बयान भारत में लोगों के मन में कई सवाल पैदा कर गया:
- क्या अमेरिका को भारत का तेज़ विकास खल रहा है?
- क्या ट्रंप भारत को एक मित्र देश नहीं, एक प्रतिस्पर्धी मानते हैं?
- क्या अमेरिका अब भारत की राह में भी वही अड़चनें खड़ी कर रहा है, जो पहले चीन की राह में करता आया है?
ट्रंप और Make in America – आत्मकेंद्रित नीति की झलक
डोनाल्ड ट्रंप हमेशा से ‘America First’ की नीति के समर्थक रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति रहते हुए:
- चीन पर भारी टैरिफ लगाए
- विदेशी कंपनियों पर अमेरिकी ज़मीन पर फैक्ट्रियां लगाने का दबाव बनाया
- H1B वीजा नियमों को कठोर बनाया
यह सब दिखाता है कि ट्रंप की प्राथमिकता घरेलू नौकरियों की सुरक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता रही है। ऐसे में जब कोई अमेरिकी कंपनी भारत में निवेश करने जाती है, तो ट्रंप जैसे नेता उसे अमेरिका के खिलाफ मानते हैं।
भारत-अमेरिका संबंध: दोस्ती या सीमित साझेदारी?
भारत और अमेरिका के रिश्ते बीते कुछ वर्षों में मज़बूत हुए हैं। रक्षा, तकनीक, शिक्षा और व्यापार में कई समझौते हुए। पीएम मोदी और ट्रंप के बीच सार्वजनिक मंचों पर मित्रता का प्रदर्शन भी हुआ, खासकर:
- Howdy Modi (2019, ह्यूस्टन)
- Namaste Trump (2020, अहमदाबाद)
पर जब आर्थिक हितों की बात आती है, तो दोस्ती की जगह राष्ट्रीय स्वार्थ ले लेता है। यही ट्रंप के बयान से झलकता है। भारत में लोग यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं — “अगर अमेरिका हमें रणनीतिक साझेदार मानता है, तो वह हमें आर्थिक रूप से क्यों नहीं मजबूत होने देना चाहता?”
क्या अमेरिका अनजाने में चीन की मदद कर रहा है?
ट्रंप सरकार ने कंपनियों को चीन से बाहर निकलने का दबाव तो बनाया, लेकिन साथ ही भारत में निवेश को हतोत्साहित भी किया। ऐसे में कंपनियों के सामने दो विकल्प बचे:
- अमेरिका में मंहगी लागत पर फैक्ट्री लगाना
- चीन में ही बने रहना
बहुत-सी कंपनियों ने दूसरा विकल्प चुना। और इस तरह अमेरिका की नीति, चाहे अनजाने में ही सही, चीन के लिए एक राहत बन गई।
External Source: Apple in India – CNBC Report
भारत – मैन्युफैक्चरिंग की नई उम्मीद
भारत में सस्ता श्रम, बड़ा उपभोक्ता वर्ग और राजनीतिक स्थिरता जैसे कई फैक्टर विदेशी कंपनियों को आकर्षित करते हैं। सरकार ने भी कई योजनाएं शुरू की हैं:
- Make in India
- PLI Scheme
- Startup India
- Digital India
Apple, Samsung, Foxconn जैसी कंपनियां भारत में निवेश बढ़ा रही हैं। Apple अब भारत में कुछ iPhone मॉडल्स की असेंबली कर रहा है。
Internal Link: आत्मनिर्भर भारत की पूरी रणनीति पढ़ें
ट्रंप vs बाइडन – क्या नीति में बदलाव आया है?
जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद उम्मीद थी कि भारत के प्रति रुख नरम होगा। और हुआ भी:
- H1B वीज़ा पर नियमों में कुछ राहत
- जलवायु परिवर्तन, रक्षा और व्यापार पर संवाद
- QUAD और IPEF जैसे मंचों में भारत की भागीदारी
लेकिन अमेरिका की आर्थिक नीति की मूल सोच नहीं बदली – उन्हें कंपनियां चाहिए जो अमेरिका में निवेश करें। भारत अब भी उन्हें एक ‘बाजार’ की तरह दिखता है, ‘उत्पादन केंद्र’ की तरह नहीं।
भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को यह समझना होगा कि कोई भी देश हमेशा दूसरे के लिए त्याग नहीं करता। इसलिए:
- स्वदेशी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को बढ़ावा दें
- विदेशी कंपनियों को लुभाने की बजाय, घरेलू पूंजी का प्रयोग करें
- नीति में निरंतरता और भरोसा बनाए रखें
- फैक्ट्री-से-फ्रंटियर तक डिजिटल और फिजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारें
- Global Supply Chain में खुद को अनिवार्य बनाएं
क्या भारत को चोट लगी? या चेतावनी मिली?
ट्रंप का बयान शायद भारत के लिए झटका था, लेकिन इसे एक चेतावनी के रूप में लेना ज़्यादा बेहतर होगा। अगर भारत को दुनिया की अगली बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है, तो उसे यह जान लेना चाहिए:
- कोई भी देश दूसरे की तरक्की को खुले दिल से स्वीकार नहीं करता
- मित्रता सिर्फ कूटनीति तक सीमित रहती है, असली युद्ध तो निवेश, व्यापार और तकनीक का होता है
- भारत को दया नहीं, बल्कि वैश्विक मजबूरी बनना होगा
निष्कर्ष: 21वीं सदी का रणभूमि – निवेश और आत्मनिर्भरता
अमेरिका की नीति चाहे जो हो, भारत को अब दूसरों के निर्णय पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अगर Apple जैसी कंपनियां भारत आएं तो स्वागत है, ना आएं तो भी भारत को अपने बलबूते पर आगे बढ़ना होगा।
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को एक अप्रत्यक्ष चुनौती दी है। अब यह भारत की बारी है यह दिखाने की कि “हम किसी के रुकने से नहीं रुकते, और किसी के कहने से नहीं चलते।”
भारत को अब एक निर्माता, एक निर्यातक, और एक नवाचार का वैश्विक केंद्र बनना होगा – बिना किसी के दबाव और अनुमति के।
आपका क्या विचार है?
क्या आप भी मानते हैं कि अमेरिका भारत को आर्थिक महाशक्ति नहीं बनने देना चाहता? या यह सिर्फ एक स्वाभाविक रणनीति है?
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