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ट्रंप के टैरिफ़ वार के निशाने पर भारत, क्या होगी आगे की राह?



इमेज स्रोत, EPA/Shutterstock EPA/Shutterstockइमेज कैप्शन, अमेरिका ने भारत से आयात होने वाले सामान पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ और पेनल्टी लगाने की घोषणा की है….मेंअमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयात होने वाले सामान पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा कर दी है.इसके साथ ही उन्होंने रूस के साथ व्यापार करने को लेकर जुर्माने की भी बात कही है. यह कैसा और किस तरह का जुर्माना होगा, यह अभी तक साफ़ नहीं है.अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को भारत समेत दुनिया के 100 देशों पर टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी.डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि अगर कोई देश अमेरिकी सामान पर ज़्यादा आयात शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश से आने वाली चीज़ों पर ज़्यादा टैरिफ़ लगाएगा. ट्रंप ने इसे ‘रेसिप्रोकल टैरिफ़’ कहा है.अप्रैल में डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 26 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी. उस समय ट्रंप ने कहा था कि भारत अमेरिका से ट्रेड डील कर सकता है.पहले टैरिफ़ की डेडलाइन 9 जुलाई तय की गई थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 1 अगस्त कर दिया गया. इस डेडलाइन के पूरा होने से दो दिन पहले ही ट्रंप ने भारत पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा की है.हालांकि, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत जारी थी, लेकिन कुछ क्षेत्रों को लेकर मतभेद बने हुए थे.रिपोर्टों के मुताबिक़, भारत जेनेटिकली मॉडिफ़ाइड फ़सलें (जैसे सोयाबीन और मक्का) आयात करने का विरोध कर रहा था और घरेलू डेयरी बाज़ार विदेशी कंपनियों के लिए खोलना नहीं चाहता था.भारत और अमेरिका के बीच व्यापारसाल 2024 में भारत और अमेरिका के बीच 129 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था, जिसमें भारत का लगभग 46 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष (ट्रेड प्लस) था.भारत अमेरिकी वस्तुओं पर सबसे ज़्यादा टैरिफ़ लगाने वाले देशों में शामिल है. भारत आयात पर सर्वाधिक औसतन 17 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाता है. वहीं अमेरिका का टैरिफ़ दो अप्रैल से पहले 3.3 फीसदी ही था.इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में साल 1990-91 तक औसत टैरिफ़ दर 125% तक थी. उदारीकरण के बाद यह कम होती चली गई. साल 2024 में भारत की औसत टैरिफ़ दर 11.66% थी.Play video, “ट्रंप ने वजह बताते हुए भारत पर लगा दिया 25 फ़ीसदी टैरिफ़”, अवधि 0,5400:54वीडियो कैप्शन, ट्रंप ने वजह बताते हुए भारत पर लगा दिया 25 फ़ीसदी टैरिफ़द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत सरकार ने टैरिफ़ के 150%, 125% और 100% वाली दरों को समाप्त कर दिया है.ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद भारत सरकार ने टैरिफ़ रेट में बदलाव किया. भारत में लग्ज़री कार पर 125% टैरिफ़ था, अब यह 70% कर दिया गया है.ऐसे में साल 2025 में भारत का औसत टैरिफ़ रेट घटकर 10.65% हो चुका है.आमतौर पर हर देश टैरिफ़ लगाते हैं लेकिन अन्य देशों की तुलना में भारत सबसे ज़्यादा टैरिफ़ लगाने वाले में से एक है. इसी वजह से ट्रंप बार-बार भारत को दुनिया के सबसे ज़्यादा टैरिफ़ लगाने वाले देशों में गिनते हैं.ट्रंप चाहते हैं कि जिन देशों के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा है उसे ख़त्म किया जाए.भारत के किन क्षेत्रों पर पड़ेगा असर?डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ट्रुथ सोशल पर भारत के ऊपर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा तो की है, लेकिन इसमें किस-किस क्षेत्र पर कितना टैरिफ़ लगेगा इसका ब्योरा नहीं दिया है.हालांकि जब अप्रैल में टैरिफ़ की घोषणा की गई थी तब साफ़ था कि भारत के किन-किन क्षेत्रों पर इसका असर होगा.अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले उत्पाद ख़ासतौर से भारत के 30 क्षेत्रों से आते हैं. इनमें से छह कृषि और 24 उद्योग क्षेत्र में आते हैं.हालांकि उस समय सबसे ख़ास बात यह थी कि भारत के सबसे बड़े औद्योगिक निर्यात – फ़ार्मा उद्योग (लगभग 13 अरब डॉलर) को इस टैरिफ़ से छूट दी गई थी.इस बार ऐसा हुआ है या नहीं, यह अभी तक साफ़ नहीं है.इसके अलावा जिन क्षेत्रों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ने के आसार हैं, वे जूलरी, कपड़ा, टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक सामान, ऑटोमोबाइल और कैमिकल से जुड़े हैं.निकोर असोसिएट्स में अर्थशास्त्री मिताली निकोर कहती हैं कि इसे सिर्फ़ 25 फ़ीसदी टैरिफ़ नहीं मानना चाहिए क्योंकि इसमें 10 फ़ीसदी की पेनल्टी भी है, इसका मतलब टैरिफ़ 35 फ़ीसदी हो गया है.वह कहती हैं, “25 फ़ीसदी बेस रेट और 10 फ़ीसदी टैरिफ़ तब तक लगता रहेगा जब तक हम रूस से तेल लेते रहेंगे. यह कुल 35 फ़ीसदी का टैरिफ़ है.”इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, भारत से अमेरिका को जूलरी का भी ख़ासा निर्यात होता है. भारत से अमेरिका को 11.88 अरब डॉलर का सोना, चांदी और हीरा निर्यात होता है. इस क्षेत्र में निर्यात कम होने पर इसका असर छोटे कारीगरों और कारोबारियों पर पड़ेगा.मिताली निकोर कहती हैं, “जेम एंड जूलरी सेक्टर पर सबसे ज़्यादा असर होगा. गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से सबसे ज़्यादा यह निर्यात होता है.”भारत से अमेरिका को 4.93 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात होता है, इसलिए इस क्षेत्र पर भी पड़ने वाला है.मिताली कहती हैं कि टेक्सटाइल उद्योग पर पड़ने वाला असर भारत के पड़ोसी मुल्कों पर लगने वाले टैरिफ़ से भी तय होगा. वह कहती हैं कि बांग्लादेश से काफ़ी बड़ी तादाद में टेक्सटाइल एक्सपोर्ट होता है और वियतनाम अपनी ट्रेड डील अमेरिका के साथ कर चुका है.”अगर यह स्थिति रही तो भारत और बांग्लादेश से अमेरिका का होने वाला व्यापार अब वियतनाम की ओर जाएगा. इस सेक्टर में महिलाएं भी शामिल हैं तो उन पर बहुत असर पड़ने जा रहा है.”भारत अमेरिका को 14.39 अरब डॉलर के मोबाइल, टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बेचता है. ज़ाहिर है अब इन पर भी असर पड़ेगा.मिताली कहती हैं कि एपल जैसी कंपनियां भारत में आकर अपना काम कर रही थीं लेकिन इन टैरिफ़ के बाद वे भारत क्यों आएंगी. स्टील-एल्युमीनियम पर भी असर पड़ेगा.भारत को कितना होगा नुक़सान, अर्थव्यवस्था कहां जाएगी?सिटी रिसर्च का अनुमान है कि टैरिफ़ लगने से भारत को सालाना 700 करोड़ डॉलर का घाटा होगा.मिताली कहती हैं कि “7 अरब डॉलर के नुक़सान का ये एक आंकड़ा हमारे सामने है लेकिन वर्तमान में इसका प्रत्यक्ष असर हमारे यहां के व्यापारियों के लाभ पर पड़ेगा.””अगर इसके अप्रत्यक्ष असर की बात करें तो यह हमारी अर्थव्यवस्था पर होगा. अर्थव्यवस्था का सीधा सा नियम है कि जब निर्यात कम होता है तो उपभोग कम होता है, नौकरियां जाती हैं. इन सबकी वजह से वे लोग ग़रीबी में ज़्यादा जा सकते हैं जो अभी ग़रीबी से बाहर निकले हैं.”टैरिफ़ बढ़ोतरी का सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा और उत्पादन में कमी आने पर रोज़गार में भी कमी आएगी. इससे कहीं न कहीं पूरा अर्थचक्र प्रभावित होगा.वहीं अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार मंजरी सिंह कहती हैं कि अभी भारत की ओर से ट्रेड डील पर द्विपक्षीय बातचीत जारी है इसलिए पहले से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाना चाहिए.वह कहती हैं कि भारत का अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस में है, हम जितना उन्हें निर्यात करते हैं उससे कम आयात करते हैं.”अगर 25 फ़ीसदी का टैरिफ़ लग भी जाता है तो 45 अरब डॉलर के सरप्लस में कमी आएगी. हालांकि ऑटोमोबाइल और फ़ार्मा सेक्टर पर ख़ासा असर पड़ सकता है.”इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, ट्रंप चाहते हैं कि भारत अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए अपने दरवाज़े खोलेदोनों देशों के बीच ट्रेड डील न हो पाने की वजह भारत का कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए अपने दरवाज़े न खोलना बताया जा रहा है.भारत में अमेरिकी कृषि उत्पादों पर औसतन 37.7% टैरिफ़ लगाया जाता है, जबकि अमेरिका में भारतीय कृषि उत्पादों पर यह दर 5.3% है. ट्रंप की ताज़ा घोषणा के बाद भारत से आने वाले उत्पादों पर यह टैरिफ़ 25% हो गया है.मंजरी सिंह कहती हैं कि कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए बाज़ार खोलना भारत को भारी पड़ सकता है, इसलिए इस विषय पर सहमति नहीं बन पा रही है. उनका कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की अहम भूमिका है. अगर अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पाद भारत में आए, तो इससे यहां के छोटे किसानों पर असर पड़ेगा.राष्ट्रपति ट्रंप की घोषणा के बाद भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि “सरकार भारत के किसानों, उद्यमियों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के कल्याण और हितों को सर्वोच्च महत्व देती है.”भारत के पास क्या हैं रास्ते?वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि भारत और अमेरिका पिछले कुछ महीनों से एक निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, और दोनों देश इस उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं.अमेरिका के टैरिफ़ के ख़िलाफ़ भारत के पास फ़िलहाल सबसे बड़ा विकल्प एक प्रभावी ट्रेड डील है.अगर यह डील नहीं हो पाती है, तो भारत को अमेरिका के अलावा दूसरे निर्यात बाज़ार तलाशने होंगे या फिर अमेरिका को भेजे जाने वाले सामान का रूट बदलना होगा.मिताली कहती हैं, “अगर अमेरिका हमें एक तरह से छोड़ रहा है, तो हमारे पास मौका है कि हम दूसरे रास्ते तलाशें. हमने हाल ही में ब्रिटेन के साथ फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट किया है. इन मौकों को भी गंभीरता से देखा जाना चाहिए. अमेरिका से होने वाले घाटे को पाटने के लिए संभव है कि रूस और चीन के साथ व्यापार बढ़ाना पड़े. रूस के साथ हमारे रिश्ते अच्छे हैं, लेकिन चीन से संबंध दोबारा बनाने होंगे.”वहीं, मंजरी सिंह का कहना है कि भारत के पास भी टैरिफ़ बढ़ाने का विकल्प मौजूद है. लेकिन अगर भारत ने टैरिफ़ बढ़ाया, तो अमेरिका भी उसी तरह प्रतिक्रिया देगा. उनके मुताबिक़, इसके बजाय अपने बाज़ार को डायवर्ट करना बेहतर रणनीति हो सकती है.वह कहती हैं, “चीन पर 100 फ़ीसदी से अधिक टैरिफ़ है, लेकिन उसने अपने उत्पादों का रुख़ यूरोप की ओर कर दिया. अब यूरोप के बाज़ार में चीन का माल पहले से मौजूद है, इसलिए भारत को वहां भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा.””भारत को चाहिए कि वह अपने उत्पादों को मिडिल ईस्ट और अफ़्रीका के बाज़ारों की ओर मोड़े. हालांकि भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को देखते हुए संभव है कि इस टैरिफ़ को आगे चलकर कम किया जाए.”मिताली का मानना है, “भारत को टैरिफ़ नहीं बढ़ाना चाहिए. राष्ट्रपति ट्रंप से बैक चैनल के ज़रिए बातचीत करनी ही पड़ेगी. अमेरिका में यह धारणा तेज़ी से फैल रही है कि चीन और भारत तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं, और इन्हें रोकना ज़रूरी है. इस सोच का भी कूटनीतिक स्तर पर जवाब देना होगा.”बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.



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