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कॉलेज पासआउट के लिए पहली जॉब पाने में दिक्कतें, किस तरह की स्किल्स हैं ज़रूरी



इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, सांकेतिक तस्वीर….मेंपिछले पाँच सालों में करियर प्लेटफ़ॉर्म लिंक्डइन ने लगभग पाँच लाख लोगों से पूछा कि वे अपने करियर को लेकर कैसा महसूस करते हैं.इस साल के नतीजे साफ़ हैं. युवा बाकी सभी उम्र के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा निराश नज़र आ रहे हैं.हेडलाइंस देखकर उनकी निराशा समझी जा सकती है. हर जगह ये खबरें आ रही हैं कि नए कॉलेज ग्रेजुएट्स के लिए पहली जॉब पाना कितना मुश्किल हो गया है. 2023 से अब तक अमेरिका में एंट्री-लेवल जॉब्स के विज्ञापन 35 फ़ीसदी से ज़्यादा घट गए हैं. लिंक्डइन के डेटा बताते हैं कि सर्वे में शामिल 63 प्रतिशत एग्जीक्यूटिव्स मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब वो काम करने लगेगा जिन्हें अभी एंट्री-लेवल एम्प्लॉइज़ संभालते हैं.इस बात पर अलग-अलग राय है कि असली वजह एआई है या नहीं. लेकिन लिंक्डइन के नए नतीजे बताते हैं कि प्रोफेशनल्स सचमुच चिंतित हैं. 41 फ़ीसदी प्रोफेशनल्स का कहना है कि एआई में हो रहे तेज़ बदलाव उनकी मेंटल हेल्थ पर असर डाल रहे हैं.इसी मुद्दे पर मैंने लिंक्डइन के चीफ़ इकोनॉमिक अपॉर्च्युनिटी ऑफ़िसर अनीश रमन से बात की. उन्होंने हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स में एक आर्टिकल लिखा था, जिसमें करियर की सीढ़ी टूटने और युवाओं पर उसके असर के बारे में बताया गया.इस बातचीत में उन्होंने कई प्रैक्टिकल सुझाव दिए. ख़ास तौर पर ये कि आने वाले समय में युवाओं को किन स्किल्स की ज़रूरत होगी और क्यों करियर ग्रोथ का सीधा और तय रास्ता अब पहले जैसा भरोसेमंद नहीं रह गया है.इमेज कैप्शन, कैटी के ने अनीश रहमान से जॉब-करियर और एआई के प्रभाव से जुड़ी कई बातें कीएंट्री लेवल जॉब्स पाना कितना मुश्किल?कैटी के: मैं लगातार हेडलाइंस देख रही हूँ कि हाल ही में कॉलेज से निकले युवाओं के लिए एंट्री-लेवल जॉब्स पाना बहुत मुश्किल हो रहा है. असल में क्या हो रहा है और यह कितना गंभीर है?अनीश रमन: यह सच है और बहुत अहम भी है. एंट्री-लेवल वर्कर्स और नए ग्रेजुएट्स एक तरह के “परफेक्ट स्टॉर्म” का सामना कर रहे हैं. एक तरफ मैक्रोइकोनॉमिक माहौल की अनिश्चितता है जो हायरिंग पर असर डाल रही है. दूसरी तरफ एआई से होने वाला शुरुआती बदलाव भी नज़र आ रहा है. नतीजा यह है कि युवाओं और नए ग्रेजुएट्स की बेरोज़गारी नेशनल एवरेज से ज़्यादा है. हमारी स्टडीज़ के मुताबिक, जेन ज़ी अपने भविष्य को लेकर सबसे ज़्यादा निराश है.लेकिन यही वह समय है जब स्थिर करियर पाथ से डायनेमिक करियर पाथ की ओर बढ़ा जा रहा है. इसे चार्ल्स डिकेन्स के शब्दों में कहें तो “यह सबसे अच्छा समय है और सबसे बुरा भी”. मेरी राय में अगर करियर शुरू करने के लिए किसी एक पल को चुनना हो, तो यह वाकई बेहतरीन समय है. एआई के असर और इस बदलाव की प्रक्रिया के बाद एक नई इकोनॉमी बनेगी, जिसमें लोगों के पास अपने करियर बनाने के और ज़्यादा ऑप्शंस होंगे.कैटी के: क्या कुछ ग्रेजुएट्स बाकी से ज़्यादा मुश्किल झेल रहे हैं? दस साल पहले हम सब चाहते थे कि हमारे बच्चे कंप्यूटर साइंस पढ़ें. क्या अब हमें उन्हें किसी और सेक्टर की पढ़ाई की ओर ले जाना चाहिए?अनीश रमन: कंप्यूटर साइंस तब भी और आज भी नॉलेज इकोनॉमी का सबसे बड़ा चेहरा रहा है. लेकिन नॉलेज इकोनॉमी अब ख़त्म होने की ओर है और हम एक नई इकोनॉमी में प्रवेश कर रहे हैं. मैंने पिछले साल न्यूयॉर्क टाइम्स में इसी विषय पर एक आर्टिकल लिखा था जिसमें हमारे डेटा का ज़िक्र था.उसमें पाया गया कि एक औसत कंप्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के काम का 96 प्रतिशत हिस्सा या तो तुरंत या जल्द ही एआई से किया जा सकता है. इसका मतलब यह नहीं है कि ये जॉब्स खत्म हो जाएंगी, बल्कि यह कि कंप्यूटर साइंटिस्ट होने का मतलब बदल जाएगा.अब हम यह भी देख रहे हैं कि एंप्लॉयर पूछते हैं, “अगर आपके पास कंप्यूटर साइंस की डिग्री है, तो क्या आपके पास फिलॉसफी में माइनर भी है ताकि आप मुझे यह सोचने में मदद कर सकें कि मैं जो बना रहा हूँ उसके एथिकल पहलू क्या होंगे.”पहले करियर का रास्ता सीधा और तय था. “मैंने यह डिग्री ली है, अब मुझे वह जॉब दो.” यह तरीका तब तक सही था जब तक आप डिग्री ले पाते. लेकिन यह उन लोगों के लिए ठीक नहीं था जो डिग्री का खर्च नहीं उठा सकते थे या जिनका बैकग्राउंड ऐसा नहीं था कि आसानी से डिग्री तक पहुंच पाते. अब सिर्फ़ इतना कहना कि “मेरे पास डिग्री है” काफी नहीं है. अब यह बताना ज़रूरी है कि उस डिग्री के असली मायने क्या हैं.”मुझे लगता है कि आने वाले समय में रिटेल जॉब्स की अहमियत पहले से कहीं ज़्यादा होगी. नॉलेज इकोनॉमी में इन्हें उतना महत्व नहीं मिला, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. अगर आप बता सकें कि आपने ऐसी जॉब की है जहाँ आपको लचीलापन और बदलाव के साथ तालमेल बिठाना पड़ा, तो यही वो स्किल्स हैं जिन्हें एंप्लॉयर ढूंढ रहे हैं. हम सबके पास अलग-अलग अनुभव हैं, अलग एनर्जी है और अलग सहनशक्ति है. आगे हायरिंग इन्हीं गुणों पर होगी और इन्हें सही तरीके से सामने रखना हमारे अपने हाथ में है.आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और जॉबकैटी के: मैंने लिंक्डइन का एक सर्वे देखा था जिसमें अमेरिका के 3,000 एग्ज़ीक्यूटिव्स शामिल थे. उनमें से 63 प्रतिशत का मानना है कि एआई एंट्री-लेवल के काम अपने हाथ में ले लेगा. तो क्या जेन ज़ी वैसे भी परेशान रहेगी? चाहे वे अपने बारे में अच्छी कहानियाँ बताएँ, लेकिन शायद अब वे एंट्री-लेवल जॉब्स होंगी ही नहीं, क्योंकि कंपनियाँ उन्हें एआई को सौंप देंगी.अनीश रमन: हम नहीं जानते कि ठीक-ठीक क्या होगा. लेकिन हमें यह ज़रूर पता है कि उसी सर्वे में उतने ही प्रतिशत एग्ज़ीक्यूटिव्स ने यह भी कहा कि एंट्री-लेवल एम्प्लॉइज़ नए आइडियाज और नई सोच लाते हैं, जो बिज़नेस की ग्रोथ के लिए बहुत ज़रूरी है. यही पीढ़ी, जिसे पहली जॉब पाने में सबसे ज़्यादा मुश्किल हो रही है, वही एआई-नेटिव भी है और यह बिज़नेस को इस नई इकॉनमी में ढलने के लिए नया नज़रिया दे रही है.जब भी कोई नई इकोनॉमी उभरती है, तो सबसे पहले झटके और बदलाव आते हैं. ऐसा तब भी हुआ था जब खेती से फैक्ट्री वर्क की ओर बदलाव आया, या जब फैक्ट्री से काम दफ़्तर की ओर शिफ्ट हुआ. और अभी हम उसी दौर से गुज़र रहे हैं. लिंक्डइन के डेटा के मुताबिक, 2030 तक औसतन 70 प्रतिशत जॉब्स का नेचर बदल चुका होगा. हम सब नई तरह की नौकरियों में होंगे, चाहे जॉब बदली हो या नहीं. साथ ही नई नौकरियाँ भी पैदा होंगी. दस साल पहले “इन्फ्लुएंसर” कोई जॉब नहीं थी. बीस साल पहले “डेटा साइंटिस्ट” नाम की जॉब भी नहीं थी. तो अभी तो हमने एआई जॉब्स के अलावा नई नौकरियों की शुरुआत देखी भी नहीं है.तो अगर आप एंट्री-लेवल वर्कर हैं, तो हाँ, फिलहाल आप कंपनियों की रणनीति पर निर्भर हैं कि वे बदलाव को कैसे संभालती हैं. कुछ कंपनियाँ पुराने तरीके से सोचेंगी और बस सिकुड़ने की ओर जाएँगी. लेकिन कुछ कंपनियाँ समझेंगी कि हमें युवाओं को शामिल करना होगा, ताकि वे हमारे लिए नए बिज़नेस मॉडल बना सकें और अलग तरह से सोचने में मदद कर सकें.इमेज स्रोत, Getty Imagesयुवाओं को क्या करना चाहिए?कैटी के: आप 22 साल के उस युवा से क्या कहेंगे जो कॉलेज से निकलकर नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहा है, या फिर उसके चिंतित पैरेंट्स से?अनीश रमन: सबसे पहली बात यह है कि खुद के पक्ष में खड़े हों. काम की कहानी, पहली इंडस्ट्रियल रेवॉल्यूशन से लेकर अब तक, ज़्यादातर टेक्नोलॉजी के इर्द-गिर्द रही है, इंसानों के इर्द-गिर्द नहीं.हम लोगों को मशीनों और टेक्नोलॉजी के साथ काम करने वाले टास्क मैनेजर की तरह ट्रेन करते आए हैं.अब यह बदलने जा रहा है और इंसान काम के सेंटर में होंगे. आपको सच में समझना होगा कि आपकी अपनी जिज्ञासाएँ क्या हैं और आपको क्या चीज़ मोटिवेट करती है. आपको यह सोचना शुरू करना होगा कि आप उस मुकाम तक कैसे पहुँचेंगे जहाँ कोई भी आपको “आप होने” में हरा न सके.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



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