इमेज स्रोत, Sondeep Shankar/Getty Imagesइमेज कैप्शन, अमृतसर में ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ के तहत सरेंडर करने वाले चरमपंथी (मई, 1988)….मेंसन 1984 में हुए ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ में स्वर्ण मंदिर से चरमपंथियों को निकाले जाने के दो साल के अंदर उन्होंने दोबारा स्वर्ण मंदिर के अंदर अपने ठिकाने बना लिए थे.शुरू में अकाली सरकार ने चरमपंथियों को मंदिर में घुसने से रोकने के लिए स्वर्ण मंदिर के अंदर पंजाब पुलिस को तैनात किया था.लेकिन जब सिख हल्कों में उनके इस क़दम की आलोचना होने लगी तो उन्होंने सख़्ती कम कर दी.धीरे-धीरे चरमपंथियों ने स्वर्ण मंदिर में दोबारा लौटना शुरू कर दिया और जल्द ही उन्होंने वहाँ अपनी जड़ें जमा लीं.जैन मुनि के ज़रिए कोशिशअकाल तख़्त के जत्थेदार ने चरमपंथियों को बाहर निकालने के लिए मनाने के कई प्रयास किए लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ.एक और गुप्त प्रयास तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सतीश शर्मा ने भी किया जिसमें उन्होंने सुशील मुनि को शामिल किया.पंजाब के डीजीपी रहे जूलियो रिबेयरो अपनी आत्मकथा ‘बुलेट फ़ॉर बुलेट’ में लिखते हैं, “मैं एक सरकारी विमान में चंडीगढ़ से अमृतसर के लिए उड़ान भरने वाला था कि मेरे पास सतीश शर्मा का फ़ोन आया. उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि स्वर्ण मंदिर की नाकाबंदी कर रही सीआरपीएफ़ की एक चौकी को हटा लिया जाए ताकि कुछ चरमपंथी नेता बातचीत के लिए चुपचाप मंदिर के अंदर घुस सकें. हालांकि मेरा मानना था कि ये प्रयास कामयाब नहीं होंगे लेकिन मैं नहीं चाहता था कि लोग ये कहें कि मेरे असहयोग की वजह से शांति बहाल करने की कोशिश नाकाम हो गई,”वे लिखते हैं कि उन्होंने सीआरपीएफ़ के लोगों से कहा कि वो दो दिनों तक अपनी निगरानी में थोड़ी ढील दें जिसका उन्होंने विरोध किया और रिबेयरो को कहना पड़ा कि ये आदेश ऊपर से आया है.बहरहाल, सुशील मुनि की कोशिश भी कामयाब नहीं हो सकी.चरमपंथियों ने स्वर्ण मंदिर के अंदर जड़ें जमाईंइमेज स्रोत, Sondeep Shankar/Getty Imagesइमेज कैप्शन, चरमपंथियों से बरामद किए गए हथियारअप्रैल, 1988 का अंत होते-होते और बहुत से चरमपंथी स्वर्ण मंदिर के परिसर में घुस चुके थे. इस तरह की अफ़वाहें थीं कि वो मंदिर के अंदर लोगों पर काफ़ी अत्याचार कर रहे हैं और उन्होंने उन कोई लोगों को मार डाला है जो उनकी नज़र में ग़द्दार थे या जिन पर उन्हें सरकार के लिए जासूसी करने का शक था.उन्होंने मंदिर के अंदर किलेबंदी शुरू कर दी थी और इस तरह का माहौल पैदा हो रहा था कि दोबारा हथियारबंद कार्रवाई की नौबत आ सकती है.मंदिर के चारों ओर करीब 14 ऐसी जगहें थीं जहाँ चरमपंथी और सुरक्षा बल आमने-सामने खड़े थे.ये भी पढ़ें-सीआरपीएफ़ के डीआईजी विर्क पर चली गोलीइमेज स्रोत, Sondeep Shankar/Getty Imagesइमेज कैप्शन, पंजाब के तत्कालीन डीजीपी केपीएस गिलऑपरेशन ‘ब्लैक थंडर’ की शुरुआत तब हुई जब 9 मई को स्वर्ण मंदिर के अंदर से चरमपंथियों ने एक-47 राइफ़ल से गोली चलाई जो सीआरपीएफ़ के डीआईजी एसएस विर्क के जबड़े में लगी.पंजाब के मुख्य सचिव रहे रमेश इंदर सिंह अपनी किताब ‘टर्मोएल इन पंजाब बिफ़ोर एंड आफ़्टर ब्लूस्टार’ में लिखते हैं, “विर्क के साथ गए अमृतसर के एसपी सिटी बलदेव सिंह ने देखा कि चरमपंथियों ने एक छत पर फ़ायरिंग पोज़ीशन ले ली थी. उन्होंने नीचे झुकते हुए विर्क को आगाह करने की कोशिश की लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, गोली उनके चेहरे पर लगी. उस समय अमृतसर के एसएसपी सुरेश अरोड़ा खुद एक उधार लिए स्कूटर पर उन्हें अस्पताल लेकर गए थे.”जैसे ही विर्क को गोली लगी मंदिर के आसपास तैनात सुरक्षाबलों ने जवाबी गोलीबारी शुरू कर दी और वो शाम तक रह-रहकर गोली चलाते रहे.इस गोलीबारी के कारण सात पत्रकार मंदिर के अंदर फंस गए. करीब छह घंटे बाद ये सभी लोग अपने हाथ ऊपर किए हुए घंटाघर देवड़ी से बाहर निकले.एनएसजी के कमांडो अमृतसर पहुँचेइमेज स्रोत, Sondeep Shankar/Getty Imagesइमेज कैप्शन, पंजाब के अमृतसर में 17 मई 1988 को सिख चरपंथियों के भारतीय सुरक्षा बलों के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद पुलिस और दमकल विभाग के कर्मी स्वर्ण मंदिर परिसर को साफ़ करते हुएएहतियात के तौर पर उस समय अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर सरबजीत सिंह ने तीन बजे के बाद से शहर में कर्फ़्यू लगा दिया. विर्क को डॉक्टरों के संरक्षण में छोड़ने के बाद एसएसपी अरोड़ा ने गवर्नर के सलाहकार जूलियो रिबेयरो से मंदिर के अंदर घुसकर दोषियों को पकड़ने की अनुमति माँगी.उनसे कहा गया कि वो दिल्ली से मिलने वाले निर्देशों का इंतज़ार करें. इस दौरान दिल्ली में क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप की बैठक हुई जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह ने की.बैठक में एनएसजी के दस्ते को तुरंत अमृतसर भेजने का फ़ैसला लिया गया. 9 मई की रात को ही ब्रिगेडियर सुशील नंदा के नेतृत्व में एनएसजी के कमांडो अमृतसर में लैंड होना शुरू हो गए.एनएसजी ने मंदिर के पास एक ऊँची इमारत वाले होटल पर अपना मुख्यालय बनाया जहाँ से पूरा मंदिर दिखाई देता था. सीआरपीएफ़ और पंजाब पुलिस ने परिक्रमा के पास ब्रह्मबूटा अखाड़ा में अपना मुख्यालय बनाया.10 मई की सुबह रिबेयरो और सीआरपीएफ़ के महानिदेशक पीजी हर्लनकर भी अमृतसर पहुंचे गए. उस समय तक पंजाब के डीजीपी केपीएस गिल का कहीं नामोनिशान नहीं था.रिबेयरो अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “गिल का इस तरह बिना किसी को बताए ग़ायब हो जाना आम बात थी. हम भी उनकी इस आदत को नज़रअंदाज़ कर देते थे क्योंकि उनकी सुरक्षा का तकाज़ा था कि उनकी गतिविधियों को गुप्त रखा जाए. उनकी और राज्यपाल की अनुपस्थिति में, जो कि दौरे पर थे, मैंने चार्ज संभाल लिया.”ये भी पढ़ें-स्वर्ण मंदिर की बिजली और पानी की आपूर्ति काटी गईइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, स्वर्ण मंदिर, जिसे श्री हरमंदिर साहिब भी कहते हैं, अमृतसर, पंजाब में स्थित सिखों का सबसे पवित्र गुरुद्वारा है अमृतसर में स्थानीय अधिकारियों के साथ हुई बैठक के बाद रिबेयरो ने तय किया कि कुछ दिनों तक स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी कर चरमपंथियों को थका डाला जाएगा.रिबेयरो ये प्रस्ताव लेकर दिल्ली गए.इस बीच गिल अचानक अज्ञातवास से बाहर निकल आए और रिबेयरो ने उन्हें सारा चार्ज सौंप दिया. दिल्ली में हुई बैठक में प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पंजाब के राज्यपाल सिद्धार्थ शंकर राय, पी चिदंबरम, इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक एमके नारायणन, केपीएस गिल और एनएसजी के डीजी वेद मारवाह शामिल थे.बैठक में फ़ैसला किया गया कि मंदिर के अंदर सुरक्षा बलों को नहीं भेजा जाएगा.वेद मारवाह ने रणनीति का खुलासा करते हुए अपनी किताब ‘अनसिविल वार्स: पैथॉलॉजी ऑफ़ टेररिज़्म इन इंडिया’ में लिखा, “तय हुआ कि लंबी दूरी के सटीक स्नाइपर फ़ायर से चरमपंथियों को उनके छिपने की जगह पर रोक कर रखा जाए और फिर धीरे-धीरे आगे बढ़कर पहले सराय और फिर दूसरी महत्वपूर्ण जगहों पर नियंत्रण किया जाए.”लेकिन अभी तक ये तय नहीं था कि स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी कितने दिनों तक जारी रहेगी. स्वर्ण मंदिर की बिजली और पानी की आपूर्ति काटी जा चुकी थी.चरमपंथियों को गोली मारी गईइमेज स्रोत, Sondeep Shankar/Getty Imagesइमेज कैप्शन, 17 मई 1988 को पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर परिसर में भारतीय सेना की विशेष टुकड़ी (स्पेशल फोर्स) ने प्रवेश किया, जहां खालिस्तान आंदोलन के समर्थक सिख चरमपंथियों ने कब्ज़ा कर रखा था घेराबंदी के पाँचवें दिन गिल का धैर्य जवाब देने लगा था.जूलियो रेबेयरो लिखते हैं कि दिल्ली में हुई बैठक में “प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गिल के तर्कों को बहुत ध्यानपूर्वक सुना कि स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी को अनिश्चितकाल के लिए जारी नहीं रखा जा सकता. लेकिन उन्होंने आईबी के निदेशक नारायणयन के उस तर्क को भी माना कि अभी हम कुछ दिन और इंतज़ार कर सकते हैं. मैंने प्रधानमंत्री का ध्यान इस तरफ़ दिलाया कि एनएसजी को अभी तक दूर से स्नाइपर्स के ज़रिए कुछ कुख्यात चरमपंथियों को निशाना बनाने की अनुमति नहीं मिली है जो मंदिर परिसर में अपने हथियारों की नुमाइश करते हुए खुलेआम घूम रहे हैं.”प्रधानमंत्री ने रिबेयरो के सुझाव को मान लिया. जल्द ही चरमपंथी नेता जागीर सिंह और उनके दो साथियों पर दूर से गोली चलाई गई. उनके साथियों की नज़र के सामने परिक्रमा के रास्ते में उनके शव पड़े रहे, उनके साथियों को लगा कि शव अंदर ले जाने की कोशिश में उन पर भी गोली चल सकती है.मनोवैज्ञानिक दबाव और दहशत बढ़ाने के लिए एनएसजी ने तेज़ आवाज़ करने वाले हथियार इस्तेमाल करने शुरू कर दिए.10 मई को एक तरह का सीज़फ़ायर घोषित किया गया ताकि मंदिर में फँसे आम तीर्थयात्री बाहर आ सकें. चरमपंथियों ने उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं की. इस तरह से करीब 940 लोग सुरक्षित बाहर आ गए.शक था कि उनमें से करीब 20 लोग चरमपंथी थे इसलिए उन्हें पूछताछ के लिए रोक लिया गया.रमेश इंदर सिंह लिखते हैं, “ऑपरेशन ब्लैक थंडर एनएसजी की सीधी देखरेख में हो रहा था. केपीएस गिल के एनएसजी को उनके नियंत्रण में करने के अनुरोध को नहीं माना गया था. इसके बावजूद इस पूरे अभियान में गिल का महत्वपूर्ण योगदान था. इसकी वजह थी उनका रौबदार व्यक्तित्व. उनको ज़मीनी हक़ीक़त की पूरी जानकारी थी. वो इस अभियान के सार्वजनिक चेहरे के तौर पर उभर कर सामने आए और अभियान ख़त्म होते-होते उनके छह फ़ुट प्लस के क़द में कहीं और वृद्धि हो गई.”10 मई को एनएसजी के महानिदेशक वेद मारवाह ने भारतीय वायुसेना से अनुरोध किया कि वो मंदिर के ऊपर उड़ान भरकर ऊपर से चरमपंथियों की गतिविधियों पर नज़र रखें और उनके ठिकानों की तस्वीरें लेने की कोशिश करें.तस्वीरों से पता चला कि इस बार ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के दिनों की तुलना में चरमपंथियों की किलेबंदी काफ़ी कम है.10 मई को मंदिर में लगातार चलने वाले सबद में व्यवधान पड़ा. इससे प्रशासन को थोड़ी चिंता हुई क्योंकि इससे आम सिखों से प्रतिकूल प्रतिक्रिया आ सकती थी.कड़ी घेराबंदी और रह-रहकर हो रही फ़ायरिंग के बावजूद 13 मई तक चरमपंथियों ने आत्मसमर्पण का कोई संकेत नहीं दिया था.12 और 13 मई की रात छह चरमपंशियों ने सुरक्षाबलों की घेराबंदी तोड़ने की कोशिश की थी और उनमें से दो लोग भागने में कामयाब भी हो गए थे.’ब्लू स्टार’ के विपरीत जब सारी टेलीफ़ोन लाइनें काट दी गई थीं, इस बार लाइनों को चालू रखा गया और घिरे हुए चरमपंथियों के साथ बातचीत करने में उनका इस्तेमाल किया गया.15 मई को चरमपंथियों को अंतिम मौका देने के लिए एक और सीज़फ़ायर की घोषणा की गई. इसके बाद डिप्टी कमिश्नर सरबजीत सिंह ने चरमपंथियों से बाहर आने की अपील की.रमेश इंदर सिंह लिखते हैं, “अभी तक चुपचाप रहे लोग परिक्रमा में अपने कमरों से बाहर निकलने लगे. उनको गुरु रामदास सराय की तरफ़ बढ़ने का निर्देश दिया गया. कुल मिलाकर 146 चरमपंथी निर्धारित रास्ते पर चलते हुए बाहर आए लेकिन 47 चरमपंथियों ने पहले से तय किए गए रास्ते का अनुसरण नहीं किया. इन लोगों में सुरजीत सिंह पेंटा भी शामिल था जिस पर करीब 40 हत्याएं करने का आरोप था. उसकी पत्नी परमजीत कौर ने भी आत्मसमर्पण किया जिसकी पहचान आईबी के एक जासूस ने की. जब सुरक्षाकर्मी पेंटा के नज़दीक पहुंचे तो उसने सायनाइड का कैप्सूल खा लिया.”चरमपंथियों का आत्मसमर्पणPlay video, “गुरु गोबिंद सिंह ने जब औरंगज़ेब को लिखा- ‘हमारे बीच शांति संभव नहीं’- विवेचना”, अवधि 18,3618:36वीडियो कैप्शन, गुरु गोबिंद सिंह ने जब औरंगज़ेब को लिखा- ‘हमारे बीच शांति संभव नहीं’- विवेचना 47 चरमपंथियों ने गुरु रामदास सराय पहुंचने के निर्देश का पालन नहीं किया था. उन्होंने हरमंदिर साहब के अंदर प्रवेश कर लिया. सुरक्षा बलों को हरमंदिर साहब की तरफ़ गोली चलाने और यहाँ तक कि ब्लैंक कारतूस इस्तेमाल करने तक के आदेश नहीं थे.रमेश इंदर सिंह लिखते हैं, “बाद में चरमपंथियों से पूछताछ में पता चला कि एक चरमपंथी करताज सिंह ठंडे ने धमकी दी थी कि अगर वो लोग उसके पीछे नहीं आएंगे तो वो उन्हें गोली मार देगा. करताज सिंह पहले भारतीय सेना में काम करता था. ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद उसने सेना छोड़ दी थी. 18 मई को जब बाकी चरमपंथी बाहर आए तो उसने आत्महत्या कर ली.”18 मई को बाकी बचे हुए चरमपंथी हाथ ऊपर उठाए हुए एक लाइन बनाकर बाहर आए और पूरी दुनिया के लोगों ने अपनी स्क्रीन पर इस दृश्य को लाइव देखा.अपने-आप को सुरक्षाबलों के हवाले करने वाले चरमपंथियों से पूछताछ के बाद पता चला कि मंदिर के अंदर हत्या, यातना और जबरन वसूली जैसे कई अपराध किए गए.पंजाब के एक मुख्य अख़बार ‘अजीत’ ने भाई निरवैर सिंह का इंटरव्यू लिया जिन्होंने बताया कि परिक्रमा के आसपास के कमरों में इस तरह की कई घटनाएं हुईं थीं. बाद में हुए तलाशी अभियान मे 41 लोगों के शव पाए गए जिन्हें यातना देकर मारा गया था.बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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