इमेज स्रोत, Andrew Harnik/Gettyइमेज कैप्शन, काबुल पर हमले के टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं (फ़ाइल फ़ोटो)12 अक्टूबर 2025अफ़ग़ानिस्तान के सीमाई प्रांत में पाकिस्तान की ओर से हुए हवाई हमले के बाद तालिबान के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि उसके सैन्य बलों ने शनिवार रात ‘जवाबी कार्रवाई’ की है.तालिबान के रक्षा मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि अगर पाकिस्तान दोबारा अफ़ग़ानिस्तान की हवाई सीमा का उल्लंघन करता है तो ‘दृढ़तापूर्वक जवाब’ दिया जाएगा.पाकिस्तान की ओर से इस मामले में अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. लेकिन समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने दोनों देशों के सुरक्षा अधिकारियों के हवाले से कहा कि शनिवार रात सीमा पर कई स्थानों पर झड़पें हुई हैं. पाकिस्तान में सैन्य सूत्रों ने बीबीसी उर्दू से भी इन झड़पों की पुष्टि की.अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच उपजे तनाव की वजह से क्षेत्र में अशांति और अस्थिरता को लेकर जानकार चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं. जानकारों का कहना है कि इस तनाव को बड़े संघर्ष में तब्दील होने से पहले ‘प्रभावशाली देशों को पाकिस्तान पर दबाव’ बनाने की ज़रूरत है.बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंइस बीच सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए रक्षा समझौते की भी चर्चा है. इस समझौते के तहत इन दोनों देशों में किसी एक पर भी हमला होने की स्थिति में उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा.सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में चल रहे तनाव और झड़पों पर गंभीर चिंता जताई है और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है.सऊदी अरब ने कहा कि वह इस मामले पर नज़र रख रहा है.कुछ जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान ने चरमपंथ के मुद्दे पर तालिबान पर दबाव बनाने के लिए काबुल पर एयर स्ट्राइक की. लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे चरमपंथ को रोकने में पाकिस्तान को कोई सफलता मिलेगी?दोनों देशों के बीच एक मुद्दा डूरंड लाइन को लेकर भी है, जिससे यह तनाव और बढ़ जाता है.अफ़ग़ानिस्तान अंग्रेज़ों के शासन के दौरान खींची गई अफ़ग़ानिस्तान और ब्रिटिश इंडिया के बीच इस सीमा-रेखा को स्वीकार नहीं करता है. डूरंड लाइन के अस्तित्व में आने के बाद काबुल पर हुकूमत करने वाली हर सरकार ने इस लाइन को मंज़ूर करने से इनकार किया है.काबुल पर पाकिस्तान का हमला ‘ग़लत’इमेज स्रोत, Indian Ministry of External Affairs / Handout /Anadolu via Gettyइमेज कैप्शन, जानकारों का कहना है कि भारत के साथ अफ़ग़ानिस्तान की बढ़ती नज़दीकी को लेकर पाकिस्तान में ‘बेचैनी’ हैबीबीसी संवाददाता स्नेहा से बातचीत में भारत की पूर्व राजनयिक वीना सीकरी कहती हैं कि इस हमले के ज़रिए पाकिस्तान, तालिबान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा को लेकर अफ़ग़ानिस्तान के प्रति अपनी नाराज़गी दिखा रहा है.साथ ही उन्होंने पाकिस्तान के इस क़दम को ‘ग़लत’ बताया.वीना सीकरी कहती हैं, “जब इसराइल ने दोहा पर हमला किया था तो मध्य-पूर्व के देशों समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बहुत ग़ुस्सा था, तो यह सवाल ही नहीं उठता कि पाकिस्तान काबुल पर हमला करे. पाकिस्तान ने काबुल पर हमला करके ग़लत किया है. इसका पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.”वह कहती हैं, “पाकिस्तान एक तरह से अफ़ग़ानिस्तान के प्रति अपनी नाराज़गी भी जता रहा है कि वहां के विदेश मंत्री भारत क्यों आए. भारत और अफ़ग़ानिस्तान ने संयुक्त बयान भी जारी किया है.”वीना सीकरी से सवाल पूछा गया कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल ही में एक रक्षा समझौता हुआ है, इस तनाव पर सऊदी अरब किस तरह से प्रतिक्रिया देगा?इस पर वह कहती हैं कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा संबंध काफ़ी पुराने हैं, तो दोनों देशों के बीच हुए रक्षा समझौते को अलग तरीक़े से नहीं देखना चाहिए. इसे एक ‘आर्थिक लेनदेन’ के समझौते के तरह ही देखना चाहिए.उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि सऊदी अरब अपनी तरफ़ से कोई ऐसा क़दम उठाएगा, क्योंकि भारत और सऊदी अरब के बीच रिश्ते हैं. इसके अलावा सऊदी अरब के अन्य देशों के साथ अपने रिश्ते हैं. सऊदी अरब की सरकार ने कहा भी है कि भारत और सऊदी अरब के रिश्तों पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा.”‘पाकिस्तान पर दबाव’ बनाने की ज़रूरतइमेज स्रोत, Getty Imagesअफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के पूर्व राजदूत ज़ल्मय ख़लीलज़ाद ने कहा कि काबुल में पाकिस्तान के हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान में जवाबी कार्रवाई की मांग हो रही है. ऐसे में ‘संघर्ष और अस्थिरता’ की आशंका बढ़ गई है.ख़लीलज़ाद कहते हैं, “पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने और आईएसआई प्रमुख ने काबुल जाने की इच्छा जताई है, तो मुझे संदेह है कि क्या यह ‘अफ़ग़ानिस्तान या तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से बातचीत की इच्छा’ का संकेत है?”उन्होंने कहा कि अगर इमरान ख़ान सत्ता से नहीं हटे होते तो टीटीपी से समझौता आगे बढ़ सकता था और पाकिस्तान के हज़ारों लोगों की ज़िंदगी बच सकती थी.पूर्व अमेरिकी राजदूत ने कहा, “अब भी इस्लामाबाद के लिए कूटनीति अपनाने के लिए देर नहीं हुई है. हालांकि, इसकी संभावना कम लगती है.”ख़लीलज़ाद यह भी कहते हैं कि बड़े संघर्ष को रोकने के लिए प्रभावशाली देशों को ‘पाकिस्तान पर दबाव’ बनाने की ज़रूरत है.दक्षिण एशिया मामलों के विश्लेषक माइकल कुगलमैन ने पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच वर्तमान स्थिति को ‘जटिल’ बताया है.उन्होंने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के हमले और तालिबान की जवाबी कार्रवाई ने हालात को बहुत जटिल बना दिया है.”कुगलमैन कहते हैं, “इसमें अगर यह तथ्य जोड़ दिया जाए कि अफ़ग़ानिस्तान इस सीमा (डूरंड रेखा) को नहीं मानता और वर्तमान संकट को लेकर फैल रहीं भ्रामक सूचनाओं को देखें तो स्थिति काफ़ी अस्थिर हो जाती है.”काबुल पर हमले से पाकिस्तान को फ़ायदा या नुक़सान?इमेज स्रोत, Carolyn Van Houten/The Washington Post via Gettyइमेज कैप्शन, जानकारों के मुताबिक़, पाकिस्तान को लेकर तालिबान सैन्य बलों में ‘नफ़रत और ग़ुस्सा’ बढ़ रहा है (फ़ाइल फ़ोटो)डॉ. दाऊद आज़मी अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के सीनियर जर्नलिस्ट हैं. उन्होंने बीबीसी पश्तो के एक लेख में लिखा है कि इस तरह के हमले के ज़रिए टीटीपी को लेकर पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार पर दबाव बनाना चाहता है.दाऊद आज़मी कहते हैं, “पाकिस्तान के मुताबिक़, टीटीपी अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय है और भारत की मदद से वहां से पाकिस्तान में हमले कर रहा है.”तालिबान सरकार इन आरोपों से इनकार करती है और पाकिस्तान में हमलों को उसका आंतरिक मामला बताती है. साथ ही तालिबान सरकार इस बात पर भी ज़ोर देती है कि पाकिस्तान को ख़ुद ही इसका समाधान ढूंढना होगा.डॉ. आज़मी लिखते हैं, “पाकिस्तान में सुरक्षा बलों पर बार-बार हो रहे हमलों के कारण देश के अधिकारी दबाव में हैं और वे अपने लोगों को यह दिखाना चाहते हैं कि वे अफ़ग़ानिस्तान में हमले करके जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं. लेकिन ऐसे हमलों के पाकिस्तान के लिए कई नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं.”वह कहते हैं कि इससे न केवल अफ़ग़ानिस्तान के आम नागरिकों में, बल्कि तालिबान सैन्य बलों में भी ‘पाकिस्तान के प्रति नफ़रत और ग़ुस्सा’ बढ़ रहा है.उनका कहना है, “पाकिस्तान के इन क़दमों से अफ़ग़ानों के बीच पाकिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध की प्रेरणा बढ़ रही है और इससे पाकिस्तानी तालिबान के लिए अफ़ग़ान तालिबान के वॉलंटियर्स का समर्थन भी बढ़ सकता है.””दूसरी ओर, इससे उन अफ़ग़ान लोगों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी जो तालिबान सरकार के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के साथ सहयोग करना चाहते हैं.”डॉ. आज़मी कहते हैं, “अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार पाकिस्तानी तालिबान के साथ सहयोग के दावों से इनकार करती है, लेकिन पाकिस्तान के ऐसे हमले अफ़ग़ान और पाकिस्तानी तालिबान को क़रीब ला सकते हैं.”वह कहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान पर पाकिस्तान के हमले भारत के लिए किसी ‘तोहफ़े’ से कम नहीं हैं.उन्होंने कहा, “पाकिस्तान और भारत के बीच पहले से ही तनाव जारी है. अब अफ़ग़ानिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बाद पाकिस्तान एक साथ दो मोर्चों पर दबाव और अस्थिरता का सामना कर रहा है. यह पाकिस्तान की कूटनीति, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए कई चुनौतियां पेश करेगा.”काबुल पर पाकिस्तान के हमले के समय को लेकर चर्चाइमेज स्रोत, Sefa Karacan/Anadolu via Gettyइमेज कैप्शन, तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी छह दिवसीय भारत दौरे पर हैं (फ़ाइल फ़ोटो)पाकिस्तान ने काबुल पर उस दिन हमला किया, जब तालिबान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी ने भारत दौरे की शुरुआत की थी. यह उनके भारत दौरे का पहला दिन था.मुत्तक़ी की दिल्ली यात्रा के दौरान इन हमलों के समय को लेकर अफ़ग़ान विश्लेषकों में चिंता बढ़ी है. उनका कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान दो परमाणु-संपन्न पड़ोसी देशों, भारत और पाकिस्तान के बीच एक ‘प्रॉक्सी संघर्ष’ का मैदान बन सकता है.अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री डॉ. रंगीन ददफ़र स्पांता ने एक्स पर लिखा, “मुत्तक़ी की दिल्ली यात्रा से पहले ही मैंने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत और पाकिस्तान की नीति शांति की दिशा में नहीं, बल्कि प्रॉक्सी ताक़तों को आगे बढ़ाने की दिशा में है.”उन्होंने कहा, “पाकिस्तान पहले तालिबान का वफ़ादार सहयोगी था और अब भारत सरकार के समर्थकों का एक अहम हिस्सा तालिबान का समर्थन कर रहा है. इस लड़ाई में हमारे लोग ही सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं.”अफ़ग़ानिस्तान के पत्रकार बिलाल सरवरी ने भी पाकिस्तान के हमले के समय पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि पाकिस्तान पर जिन ड्रोन हमलों का आरोप लगता रहा है, उनकी तुलना में इस बार का हमला “राजधानी के केंद्र” में हुआ है.उन्होंने एक्स पर लिखा, “इस समय को चुनकर पाकिस्तान शायद एक सीधा संदेश देना चाहता है. वह अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पहुंच और काबुल की भारत के साथ बढ़ती नज़दीकी को लेकर अपनी बेचैनी का संकेत दे रहा है.”बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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