Homeअंतरराष्ट्रीयट्रंप की विदेश नीति: ग़ज़ा शांति योजना से लेकर पाकिस्तान से नज़दीकी...

ट्रंप की विदेश नीति: ग़ज़ा शांति योजना से लेकर पाकिस्तान से नज़दीकी तक, भारत समेत दुनिया के लिए क्या मायने?



इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, चुनाव अभियान के दौरान से ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ की नीति पर ज़ोर देते रहे हैं35 मिनट पहलेग़ज़ा में जारी संघर्ष को ख़त्म करने के लिए बीते सप्ताह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 सूत्रीय योजना पेश की. इस पहल का कई देशों ने स्वागत किया.इसराइल के बाद हमास ने भी इन शर्तों को स्वीकार कर लिया है, हालांकि हमास का कहना है कि वह इस योजना की कुछ शर्तों पर बातचीत करना चाहता है.इस साल कई बार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की विदेश नीति अंतरराष्ट्रीय बहस के केंद्र में रही है.हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध, ग़ज़ा संघर्ष, यूरोपीय देशों की सुरक्षा संबंधी चिंताएं, चीन के साथ रिश्तों में उतार-चढ़ाव, मध्य पूर्व में सऊदी अरब की भूमिका और पूर्वी एशिया में जापान-दक्षिण कोरिया जैसे पुराने सहयोगियों के साथ अमेरिका के रिश्ते, इन सभी मुद्दों ने ट्रंप की विदेश नीति को लगातार चर्चा में बनाए रखा है.अब सवाल यह है कि क्या अमेरिका अब भी दुनिया के बड़े तबक़े का भरोसेमंद सहयोगी बना हुआ है? क्या वह अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिए अनजाने में नए रास्ते खोल रहा है? राष्ट्रपति ट्रंप की कार्यशैली अमेरिका के लिए लंबे समय में क्या मायने रखेगी? क्या भारत ट्रंप की विदेश नीति को समझने में चूक गया है या फिर उसके पास विकल्प ही सीमित हैं? और दुनिया के लिए ट्रंप की इस विदेश नीति के क्या सबक़ हैं?बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, ‘द लेंस’ में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब मुद्दों पर चर्चा की.इन सवालों पर चर्चा के लिए लंदन से बीबीसी के पूर्व संपादक और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नज़र रखने वाले पत्रकार शिवकान्त, और दिल्ली से कूटनीतिक विश्लेषक डॉ. श्वेता कुमारी शामिल हुए.Play video, “क्या ट्रंप को ख़ुश करना होगी देशों की विदेश नीति- द लेंस”, अवधि 32,1432:14वीडियो कैप्शन, क्या ट्रंप को ख़ुश करना होगी देशों की विदेश नीति- द लेंसट्रंप की विदेश नीति क्या है?इमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका की विदेश नीति में कई अहम बदलाव देखने को मिले हैंग्लोबल ट्रेड पर डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ की नीति रही है. अपने चुनाव अभियान के दौरान भी ट्रंप ने साफ़ किया था कि अगर वह सत्ता में आए तो अमेरिकी लोगों के हित में काम करेंगे.तभी से यह माना जा रहा था कि ट्रंप के आने के बाद अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव दिखेंगे और हुआ भी ऐसा ही.जानकारों का मानना है कि यही वजह है कि ट्रंप दुनिया भर के देशों पर टैरिफ़ लगा रहे हैं.इस पर कूटनीतिक विश्लेषक डॉ. श्वेता कुमारी का कहना है कि ट्रंप प्रशासन 2.0 में पुरानी नीतियों की ही निरंतरता दिखाई देती है, लेकिन उनका स्वरूप पहले से कहीं ज़्यादा आक्रामक है.उन्होंने कहा, “अगर हम ट्रंप प्रशासन 2.0 की विदेश नीति देखें तो इसमें यूनिलैटरलिज़्म (एकतरफ़ावाद), प्रोटेक्शनिज़्म (संरक्षणवाद) और ट्रांज़ैक्शनलिज़्म (लेन-देनवाद) पहले की तरह बने हुए हैं. लेकिन इस बार अंतर यह है कि यह नीति और भी ज़्यादा असीमित और आक्रामक नज़र आती है.”उनके मुताबिक़ इस कार्यकाल में टैरिफ़ को एक तरह से हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है. उन्होंने कहा, “चाहे सहयोगी हों या विरोधी, यह सब पर लागू हुआ है.”डॉ. श्वेता कुमारी का मानना है कि ट्रंप प्रशासन हर मसले को सुलझाने के लिए टैरिफ़ को एक छड़ी की तरह प्रयोग कर रहा है.उनका कहना है कि इस वजह से अमेरिका के सहयोगियों और साझेदारों के लिए भरोसा करना बेहद मुश्किल हो गया है.वहीं इस पर वरिष्ठ पत्रकार शिवकान्त का कहना है कि ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति का मक़सद पुराने ढांचे को तोड़कर नई दिशा देना है.उन्होंने कहा, “ट्रंप यह नहीं चाहते कि पिछले लगभग 50 से 70 साल से जिन देशों के साथ विदेश नीति के जो सिद्धांत चले आ रहे हैं, वो उसी तरह चलते रहें. इसलिए वे उसे तोड़कर एक नई दिशा देना चाहते हैं.”शिवकान्त के मुताबिक़, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के मूलभूत सिद्धांतों में संप्रभुता की रक्षा, अखंडता और मानवीय कल्याण शामिल थे.उन्होंने कहा, “अमेरिका संयुक्त राष्ट्र का संरक्षक माना जाता रहा है. जहां अमेरिका खड़ा होता था, वहां काम बन जाता था और जहां नहीं खड़ा होता था, वहां नहीं बनता था.”शिवकान्त ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन की नीतियों का भी ज़िक्र किया. उन्होंने कहा, “वैश्विक व्यापार व्यवस्था ने ग़रीबी घटाने, वैश्विकरण और आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन ट्रंप ने उस धारा को तोड़ा और लेन-देन की नीति लागू कर दी. जहां अमेरिका की मनमानी नहीं चलती थी, अब वहां भी वही चल रही है. एक तरह से पूरी व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया गया है. इस वक़्त मुझे कोई एक स्पष्ट विदेश नीति की धारा नज़र नहीं आती.”यूरोप पर असर की चर्चा करते हुए शिवकान्त ने कहा, “यूरोप तो अपने आप को अनाथ जैसा समझ रहा है क्योंकि अमेरिका का उसके साथ सबसे लंबा और भरोसेमंद रिश्ता था. लेकिन अब वह रिश्ता पूरी तरह टूट चुका है.”सऊदी-पाकिस्तान डील पर भारत को क्या सोचना चाहिए?इमेज स्रोत, Pakistan PM officeइमेज कैप्शन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफ़ेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हैंहाल ही में सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते का नाम “स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफ़ेंस एग्रीमेंट” रखा गया है.इस समझौते के तहत अगर इन दोनों देशों में से किसी भी देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा.सऊदी अरब और पाकिस्तान की हालिया डील पर शिवकान्त ने चेतावनी दी कि भारत को इसे गंभीरता से देखना चाहिए.उन्होंने कहा, “इस रक्षा सौदे से भारत को यह सोचना चाहिए कि इसके पीछे चीन है.”वरिष्ठ पत्रकार शिवकान्त का कहना है कि अमेरिका अब पूरी तरह अपने आत्महित के लिए काम कर रहा है.उन्होंने कहा, “हमेशा ही अमेरिका ने आत्महित में काम किया है, लेकिन उसके ऊपर एक मुखौटा था कि ये विश्व हित के लिए भी काम कर रहा है. अब वह मुखौटा हटा दिया गया है और वे सीधे कहते हैं कि हम अपने हित के लिए काम करेंगे. अगर किसी मित्र देश को रक्षा लेनी है तो उसके बदले में कुछ चुकाना होगा.”शिवकान्त ने अमेरिका के वैश्विक भूमिका के तीन प्रमुख अखाड़ों का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा, “सबसे बड़े तीन अखाड़े हैं, यूरोप, मध्य पूर्व और हिंद-प्रशांत. यूरोप से अमेरिका एक तरह से बाहर निकल गया है. अब यूरोप की मदद केवल इस लिहाज़ से की जा रही है कि अगर यूरोप अपनी रक्षा करना चाहे तो उसे हथियार बेचे जाएँ और इससे अमेरिका को लाभ मिले.”उनका कहना है कि यूरोप इस वक्त संशय में है कि अगर रूस लड़ाई को अगले स्तर तक ले जाता है, तो अमेरिका क्या क़दम उठाएगा.अमेरिका के भविष्य पर सवालइमेज स्रोत, Getty Imagesइमेज कैप्शन, ट्रंप के कई फ़ैसलों को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि ये अमेरिका के लिए लंबे समय में नुक़सानदेह साबित हो सकते हैंट्रंप के कार्यकाल में लिए गए कई फ़ैसले अमेरिकी हित में तो हैं, लेकिन इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जो अमेरिका को दीर्घकालीन तौर पर नुक़सान पहुंचा सकते हैं.विशेषज्ञ मानते हैं कि उनका “अमेरिका फ़र्स्ट” दृष्टिकोण कई अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को चुनौती दे रहा है.डॉ. श्वेता कुमारी का कहना है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका की विदेश नीति में इतनी आक्रामकता नहीं थी.उन्होंने कहा, “जब तक डोनाल्ड ट्रंप ऑफिस में आए नहीं थे या शुरुआत के कुछ महीने थे, तब तक इतनी आक्रामकता नहीं थी और उम्मीद थी कि कुछ तरह की कंटिन्यूटी बनी रहेगी.”वरिष्ठ पत्रकार शिवकान्त का कहना है कि ट्रंप को अमेरिका के दीर्घकालिक भविष्य की चिंता नहीं है.उन्होंने कहा, “अमेरिका का भविष्य में क्या होगा, इसकी ट्रंप को चिंता है ही नहीं. अगर उन्हें इसकी चिंता होती तो उन्होंने अब तक जो क़दम उठाए हैं, वे कभी नहीं उठाते.”शिवकान्त ने आगे कहा, “यह एक ऐसा सच है जो हर कोई जानता है कि उनकी जितनी तारीफ़ करो, उतना ख़ुश होकर उनसे कुछ न कुछ लिया जा सकता है. उन्हें अपनी तारीफ़ पसंद है, लेकिन उनकी नीति यह है कि हम समर्थन देंगे, पर केवल उसी का जो ख़ुद समर्थ है.”उन्होंने कहा, “भारत पर पहलगाम में हमला हुआ तो वह आतंकी हमला था. इसराइल पर हमला हुआ तो वह भी आतंकी हमला था. एक आतंकी घटना के लिए आप पूरी दुनिया से समर्थन लेकर किसी देश के साथ खड़े होने को तैयार हैं, लेकिन एक आतंकी हमले के लिए आप दो-तीन दिन का समय देते हैं, उसके बाद आप युद्ध विराम कराने को तैयार हैं, आप तमाम तरह के दबाव डालने को तैयार हैं, तो दोनों में अंतर है.” “भारत का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा था तो कहा जा रहा था कि उन्हें लड़ने दीजिए. लेकिन जैसे ही लड़ाई आगे बढ़ी और पाकिस्तान से टक्कर शुरू हुई तो दबाव डालना शुरू कर दिया गया.”शिवकान्त ने कहा, “अगर भारत आत्मनिर्भर और समर्थ हो जाए तो उसे वैसी ही ज़रूरत नहीं रहेगी. फिर चीन को अमेरिका की क्या ज़रूरत है? चीन तो स्वयं समर्थ है. संयुक्त राष्ट्र का सिद्धांत यह था कि आप केवल समर्थ के साथ नहीं खड़े होंगे, बल्कि हर देश की प्रभुसत्ता और अखंडता की रक्षा करेंगे और मानवता के कल्याण के लिए काम करेंगे. यह अब उल्टा होता जा रहा है.”अमेरिका की तकनीकी और शैक्षिक श्रेष्ठता पर भी चिंता जताते हुए शिवकान्त ने कहा, “आप पहले फ्यूचर टेक्नोलॉजी में दुनिया के नेता थे. आपकी विश्वविद्यालय और टैलेंट बेहतरीन थे. अब आपने उस पर ताले लगाने शुरू कर दिए हैं.”अमेरिका-पाकिस्तान रिश्तों में बढ़ती नज़दीकीइमेज स्रोत, GOVERNMENT OF PAKISTANइमेज कैप्शन, प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की बीते महीने अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ एक सप्ताह में दो बैठकें हुईं, जिसमें सेना प्रमुख फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर भी शामिल थेभारत और अमेरिका के संबंधों में जिस समय काफ़ी उतार-चढ़ाव नज़र आ रहे हैं, उसी समय अमेरिका, पाकिस्तान के साथ लंबे समय से चले आ रहे कूटनीतिक ठहराव के बाद सहयोग के रास्ते खोलता दिखाई दे रहा है.हालिया महीनों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में काफ़ी सुधार हुआ है और दोनों देशों के नेताओं के बीच मुलाक़ात का भी सिलसिला जारी है.हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और सेना प्रमुख फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से वॉशिंगटन में मुलाक़ात की. इससे ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने दोनों को ‘महान व्यक्तित्व’ बताया था.दूसरी तरफ़, पाकिस्तान सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने राष्ट्रपति ट्रंप से कहा कि वह दुनिया के ‘शांति दूत’ हैं.प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की एक हफ़्ते के भीतर अमेरिकी राष्ट्रपति से यह दूसरी मुलाक़ात थी. पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्ते ऐसे समय में मज़बूत हुए हैं, जब इसी साल भारत के साथ सैन्य संघर्ष हुआ था.मई में जब यह संघर्ष हुआ, तब अमेरिकी राष्ट्रपति ने युद्धविराम का एलान किया, जिसके बाद पाकिस्तान ने भी इसका श्रेय उन्हें दिया. हालांकि भारत दोनों देशों के बीच हुए इस युद्धविराम को लेकर कहता रहा है कि इसमें किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी.डॉ. श्वेता कुमारी का कहना है कि अमेरिका की वर्तमान विदेश नीति पूरी तरह व्यक्तिगत पसंद और प्राथमिकताओं पर आधारित है.उन्होंने कहा, “जो विदेश नीति अब चल रही है वह बहुत पर्सनैलिटी-बेस्ड और प्रेफ़रेंस-बेस्ड है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि डोनाल्ड ट्रंप को क्या पसंद है और उन्हें क्या सुनना अच्छा लगता है. पाकिस्तान के पास फ़िलहाल सब कुछ है जो ट्रंप को प्रभावित कर सकता है.”डॉ. श्वेता ने कहा कि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में भी एंटी-वॉर रहे हैं और वॉर पसंद नहीं करते थे. उन्होंने कहा, “उन्हें पीस मेकर की इमेज बनानी है और उनके वाइट हाउस प्रेस रिलीज़ेज़ में भी कहा गया कि औसतन उन्होंने हर महीने एक लड़ाई बंद कराई. अगर उन्हें यह दिखाया जा रहा है कि आपने इंडिया और पाकिस्तान के बीच कन्फ्रंटेशन को रोका, तो इससे अधिक प्लीजिंग ट्रंप के लिए क्या हो सकता है.”उन्होंने पाकिस्तान की रणनीति का भी ज़िक्र किया. “पाकिस्तान अभी एक रिसोर्सफुल पार्टनर बनने की कोशिश कर रहा है और देख रहा है कि वह ट्रंप को क्या-क्या दे सकता है. वह कह रहे हैं कि हम आपको प्रमोट करेंगे, नोबेल पीस प्राइज दिलाएंगे, आपको ईरान तक एक्सेस देंगे. यह सारी चीजें ट्रंप के प्रेफ़रेंसेज़ से मेल खाती हैं.”डॉ. कुमारी ने भारत के रवैये को लेकर ट्रंप के व्यक्तिगत ईगो पर भी टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “एक तरह से उनके मन में निराशा है कि भारत ने उनके क्लेम को सपोर्ट नहीं किया और किसी तीसरी पार्टी के दख़ल की बात नहीं मानी. इसने उनके पर्सनल ईगो को हिट किया है.”अमेरिका को जवाब कैसे दिया जा सकता है?डॉ. श्वेता कुमारी का कहना है कि अमेरिका के क़दमों का जवाब देने के लिए दुनिया को अपनी रणनीति तय करनी होगी.उन्होंने कहा, “जो ट्रेंड इसके बाद शुरू होगा, वह यह होगा कि जैसे ट्रंप ने प्रोटेक्शन पॉलिसी अपनाई है, हम देखेंगे कि बाकी दुनिया के देश भी इसी तरह इनवर्ड-लुकिंग अप्रोच या मिनी-लैटरल अरेंजमेंट अपनाएँगे. इससे सबक यह रहेगा कि आपको अपने बारे में सोचना होगा. चीन के अपने स्ट्रैटेजिक इंटरेस्ट हैं, अमेरिका के अपने हैं. आपको यह तय करना होगा कि आपके इंटरेस्ट कैसे अलाइन होते हैं और आप अपनी रक्षा कैसे करते हैं.”डॉ. कुमारी का कहना है कि सभी देश इस अप्रोच को अपनाएँगे कि उनका नेशनल इंटरेस्ट किस तरह पूरा किया जा सकता है.”वरिष्ठ पत्रकार शिवकान्त का कहना है कि वर्तमान वैश्विक व्यवस्था के लिए बहुत बुरा समय चल रहा है.उन्होंने कहा, “डोनाल्ड ट्रंप के ये जो चार साल हैं, इन्हें दुनिया कम से कम नुक़सान उठाकर काटने की कोशिश करे. दूसरी बात यह है कि भविष्य में सिर्फ़ अमेरिका पर भरोसा रखना बंद कर देना चाहिए. अब तक जब भी अंतरराष्ट्रीय कोई विवाद हुआ है, ख़ासकर सीमा संबंधी विवाद, बिना अमेरिका की मदद के वह सुलझा नहीं है.””विश्व को ऐसी व्यवस्था बनाने की ज़रूरत है कि अगर अमेरिका साथ न भी हो तो भी विश्व व्यवस्था बनाए रखी जा सके. कोई ऐसा सिद्धांत या तरकीब हो जिससे ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाला सिद्धांत पूरी दुनिया में लागू न हो.”बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments